पुरुषों के रोने के बारे में अब तक जो अध्ययन हुए हैं उसके मुताबिक शोधकर्ताओं की राय अलग अलग है. कुछ शोधकर्ता कहते हैं कि यह अब भी एक पहेली की तरह है. सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि जब भावनात्मक तौर पर किसी भी समय कमजोर होते हैं तो उसकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया रोने में होती है.
महिलाओं और पुरुषों के रोने के ट्रेंड पर अध्ययन में पाया गया कि महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में रोने की दर कम पायी जाती है. अगर पुरुष रोते भी हैं तो उनके रोने की अवधि कम होती है. महिलाओं में रोने के लिए प्रोलेक्टीन हार्मोन को जिम्मेदार माना गया. जहां एक प्रोलैक्टीन हार्मोन को महिलाओं के लिए जिम्मेदार माना गया वहीं टेस्टोस्टेरोन के बढ़ते स्तर को पुरुषों को कम रोने के लिए जिम्मेदार माना गया.
रिसर्च के मुताबिक पुरुषों को जब प्रोस्टेट कैंसर उपचार के लिए एंटी टेस्टोस्टेरोन की दवाएं दी जाती हैं तो उसका असर उनके रोने की प्रवृत्ति पर साफ दिखाई देती है लेकिन जब ट्रांसजेडर महिलाओं को वही दवा दी जाती है तो उनमें रोने की बढ़ती प्रवृत्ति पायी गई. इसका मतलब यह है कि रोने और टेस्टोस्टेरोन में कोई संबंध है.
अगर पुरुष रोते हैं तो उसकी वजह से उन्हें शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है लिहाजा पुरुष रोने से बचते हैं लेकिन यह रोने या ना रोने के पीछे कोई पुख्ता वजह नहीं है, शोधकर्ताओं के मुताबिक इस विषय पर अभी अध्ययन करने की जरूरत है.
शोधकर्ता बताते हैं कि पुरुषों के रोने या ना रोने के पीछे सिर्फ और सिर्फ टेस्टोस्टेरोन को अकेले जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. हार्मोन के अतिरिक्त भी वजहें होती हैं. इन वजहों को समझने की और अधिक जरूरत है ताकि पुरुषों की भावना और उनके व्यवहार को और गहराई से समझा जा सके.
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