American Base in Indian Ocean: रूस और चीन से अमेरिका की तनातनी जगजाहिर है लेकिन क्या आप जानते हैं कि अमेरिका ने अपनी सेना को भारत के करीब हिंद महासागर क्षेत्र में तैनात कर रखा है. इसका मकसद क्या है और क्या यह भारत के लिए चिंता की बात है? आपको जानना चाहिए.
हिंद महासागर, भारत के दक्षिण में विशाल समुद्री क्षेत्र है. इस पर चीन ही नहीं, अमेरिका और दुनिया के दूसरे देशों की नजर रहती है. व्यापार मार्ग भी इधर से होकर गुजरता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि 20,000 किमी से भी ज्यादा दूर होने के बावजूद अमेरिका ने भारत के करीब इस क्षेत्र में अपना अड्डा बना रखा है. जी हां, यहां अमेरिका का सैन्य बेस है. पिलास की तरह दिखने वाले छोटे से द्वीप का नाम डिएगो गार्सिया है.
वैसे, डिएगो गार्सिया पर ब्रिटेन का कब्जा रहा है. 1966 में अमेरिका ने डील के तहत 50 साल के लिए इस क्षेत्र को ले लिया. अब इसे 2036 तक बढ़ा दिया गया है. यहां की आबादी को बेदखल कर अमेरिका ने अपने खतरनाक जेट और युद्धक सामग्री इकट्ठा करके रखी है. यहां किसी भी बाहरी को आने की इजाजत नहीं है. रिपोर्टों में दावा किया जाता है कि अफगानिस्तान और इराक पर बमबारी करने के लिए अमेरिका के लड़ाकू विमान यहां से उड़ चुके हैं. यूएन का स्पेशल कोर्ट भी कह चुका है कि यह क्षेत्र मॉरीशस का है लेकिन अमेरिका और यूके इसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं.
यह समझना जरूरी है कि अमेरिका का यह सैन्य बेस इतना महत्वपूर्ण क्यों है? 1965 में मॉरीशस को आजादी तो मिली लेकिन ब्रिटेन ने हिंद महासागर में मौजूद चागोस द्वीपसमूह को अलग कर दिया. इसी का एक हिस्सा है डिएगो गार्सिया. विवाद आज भी चलता है. 1966 से यहां अमेरिका चौधरी बनकर बैठ गया. अब यहां अमेरिका और ब्रिटेन ने मिलकर एयरफोर्स और नेवी का बड़ा बेस बना लिया है. इस इलाके के बदले यूके अमेरिका से कोई किराया भी नहीं लेता है. अप्रैल में अमेरिका ने अपने दो B-52 बॉम्बर यहां लाकर तैनात किए थे. कहा गया कि हिंद महासागर में ये ट्रेनिंग प्रोग्राम के तहत लाए गए. यूं समझिए अमेरिका यहां से एशिया खासतौर से चीन, ईरान-इराक, अफ्रीका समेत एक बड़े भूभाग में किसी भी एक्शन के लिए तैयार रहता है.
1971 में जब भारत और पाकिस्तान की सेनाएं लड़ रहीं थीं तब भारतीय रणनीतिकारों ने डिएगो गार्सिया में अमेरिका की मौजूदगी पर चिंता जताई थी. दरअसल, तब हालात ऐसे थे कि शीतयुद्ध के उस कालखंड में अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा था. आशंका यह भी थी कि वह अपना सैन्य बेड़ा पाकिस्तान की मदद के लिए भेज सकता है. युद्ध में भारत की जीत हुई लेकिन वो खतरा कहीं न कहीं बना रहता है.
हां, जब अमेरिका में राजनीतिक या वैश्विक स्तर पर सवाल पूछे जाते हैं तो वह यह कहकर अपनी पोजीशन को सही ठहराता है कि अगर यह क्षेत्र मॉरीशस के पास चला गया तो स्कीम के तहत वह डिएगो गार्सिया चीन की सेना को सौंप देगा. इसका नुकसान आसपास के देशों को ही नहीं, उन सभी को होगा जिनके हित हिंद महासागर से जुड़े हैं. वैसे सच्चाई यह है कि मॉरीशस के लंदन, वॉशिंगटन और नई दिल्ली के साथ अच्छे रिश्ते हैं. मॉरीशस और चीन के बीच ऐसा कोई सिक्योरिटी डील भी नहीं है. हालांकि अमेरिका की रणनीति अलग है. वह यहां से बैठकर नजर रखन चाहता है.
हिंद महासागर में 33 देश हैं और करीब 3 अरब आबादी आसपास रहती है. दुनिया का दो तिहाई ऑयल शिपमेंट इधर से ही होकर जाता है. डिएगो गार्सिया की लोकेशन ऐसी है कि यह एशिया और अफ्रीका के बीच ट्रेड रूट पर पड़ता है. यह क्षेत्र मॉलदीव से 300 मील की दूरी पर है. 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने कथित तौर पर इस बेस का इस्तेमाल आतंकियों के डिटेंशन सेंटर के तौर पर भी किया था. यही वजह है कि अमेरिका हिंद महासागर में कुंडली मारकर बैठा हुआ है.
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