अंतरिक्ष में तमाम उल्का (Meteor) और क्षुद्रग्रह (Asteroid) तैर रहे हैं. कभी ये पृथ्वी से टकराते हैं तो कभी चंद्रमा से. चंद्रमा आकार में पृथ्वी का लगभग एक-चौथाई है. यानी पृथ्वी, चंद्रमा से करीब चार गुना चौड़ी है. ऐसे में पृथ्वी से ज्यादा संख्या में उल्का और एस्टेरॉयड की टक्कर होनी चाहिए. इन टक्करों से क्रेटर्स यानी गड्ढे बनते हैं. हमें पृथ्वी पर ऐसे सिर्फ 190 क्रेटर्स के बारे में पता है. लेकिन चंद्रमा पर तो एक किलोमीटर से ज्यादा चौड़ाई वाले 13 लाख से ज्यादा क्रेटर्स हैं. जानिए ऐसा क्यों है.
अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA के अनुसार, धरती और चंद्रमा का इतिहास करीब 4.5 बिलियन साल पुराना है. इतने लंबे समयकाल में ग्रह-उपग्रह की इस जोड़ी से बहुत सारे क्षुद्रग्रह और उल्का टकराए हैं. इन टक्करों को 'इम्पैक्ट' कहा जाता है. धरती पर चांद के बीच में सबसे बड़ा अंतर यह है कि पृथ्वी पर ऐसी प्रक्रियाएं हैं जो पिछले इम्पैक्ट्स के लगभग सभी सबूत मिटा सकती हैं. चंद्रमा पर ऐसा नहीं है. NASA के मुताबिक, चंद्रमा की सतह पर बना कोई भी छोटा सा निशान वहीं रह जाएगा. (Photo : NASA)
1971 में अपोलो 14 के अंतरिक्ष यात्रियों के ट्रैक आज भी चंद्रमा पर मौजूद हैं. 2011 में चंद्रमा की कक्षा में मौजूद नासा के अंतरिक्ष यान के जरिए उन्हें आसानी से देखा जा सकता था (ट्रैक को पीले रंग से हाइलाइट किया गया है).
चंद्रमा की सतह पर बहुत सारे क्रेटर्स हैं और वे सभी किसी उल्का या एस्टेरॉयड की टक्कर से बने हैं. International Astronomical Union (IAU) अभी चंद्रमा के 9,137 क्रेटरों को मान्यता देता है. हालांकि, चंद्रमा पर एक किलोमीटर से ज्यादा व्यास वाले कम से कम 13 लाख क्रेटर मौजूद हैं. इनमें से 83,000 का साइज 5 किलोमीटर से ज्यादा है् 6,972 क्रेटर्स ऐसे हैं जिनका व्यास 20 किमी से ज्यादा है. (Photo : NASA/JPL/USGS)
धरती पर तीन तरह की प्रक्रियाएं ऐसी हैं जो उसे क्रेटर्स से मुक्ति दिलाती हैं. इनमें से पहला है Erosion यानी क्षरण. पृथ्वी पर मौसम, पानी और पौधे हैं. ये सब मिलकर जमीन को तोड़ते हैं और घिसते जाते हैं. आखिर में क्षरण से गड्ढा लगभग नष्ट हो सकता है. चंद्रमा पर ऐसा कुछ हो ही नहीं सकता क्योंकि उसका कोई वायुमंडल नहीं है. धरती से उलट, चंद्रमा पर हवा नहीं है, मौसम नहीं है, कोई पौधे नहीं हैं.
दूसरी प्रक्रिया है टेक्टॉनिक्स. इनके जरिए हमारे ग्रह की सतह पर नई चट्टानें बनती हैं, पुरानी चट्टानों से मुक्ति मिलती है. ये चट्टानें करोड़ों सालों तक शिफ्ट होती रहती हैं. टेक्टॉनिक्स की वजह से धरती की सतह कई बार रिसाइकल हो चुकी है. यही वजह है कि पृथ्वी पर बेहद कम चट्टानें ऐसी बची हैं जो चंद्रमा की चट्टानों जितनी पुरानी हैं. चंद्रमा पर अरबों सालों से टेक्टॉनिक्स नहीं है.
तीसरी प्रक्रिया को ज्वालामुखी कहते हैं. ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा इम्पैक्ट क्रेटर्स को भर सकता है. हमारे सौरमंडल में अन्य कहीं इम्पैक्ट क्रेटर्स के भरने के पीछे यही कारण है. चंद्रमा पर बहुत पहले ज्वालामुखी फूटते थे और उन्होंने कई बड़े इम्पैक्ट क्रेटर्स को भरा भी लेकिन पिछले करीब तीन बिलियन साल से वहां कोई ज्वालामुखी नहीं है. (Photo : NASA/GSFC/LaRC/JPL/MISR Team)
चंद्रमा से भले ही अंतरिक्ष की चट्टानें धरती से कम टकराती हों, लेकिन वह टक्कर के बाद बने गड्ढों का कुछ नहीं कर सकता. जब कोई चीज चंद्रमा से टकराती है, तो वह घटना समय के साथ स्थिर हो जाती है. दूसरी तरफ, पृथ्वी इन इम्पैक्ट क्रेटर्स को आसानी से मिटा देती है. (Photo : NASA/JPL-Caltech
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