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भारत से 13,659 किमी दूर इस देश में क्यों मां नहीं बनना चाहतीं महिलाएं? जवाब जानकर यकीन नहीं होगा

Iceland Declining Population: भले ही आइसलैंड में लैंगिक समानता बढ़ने से महिलाएं निसंतान रहने का फैसला कर सकती हैं लेकिन इससे मां बनने का सामाजिक दबाव उन पर कम नहीं हुआ है. आइसलैंड अपने प्रगतिशील सामाजिक नीतियों के लिए जाना जाता है जहां ज्यादा से ज्यादा महिलाएं बच्चे पैदा नहीं करना चाहतीं. महिलाओं में यह चलन लैंगिक समानता में बढ़ोत्तरी को दिखाता है लेकिन इससे सामाजिक दबाव, निजी आजादी और पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं की पुष्टि के दबाव को लेकर बहस भी छिड़ गई है.

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भले ही मातृत्व को पारंपरिक रूप से महिलाओं के लिए आदर्श भूमिका माना जाता रहा है, लेकिन लैंगिक समानता में इजाफे ने अधिकतर महिलाओं को निसंतान जीवन चुनने का अधिकार दिया है. हालांकि यह विकल्प अक्सर महिलाओं को परीक्षा के दायरे में लाता है जो समाज की अपेक्षाओं और व्यक्तिगत आजादी के बीच लगातार तनाव पैदा करता है.

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प्रजननवादी दृष्टिकोण का मानना है कि जो महिलाएं माताएं बनती हैं वे सुपरवुमन के मिथक को बढ़ावा देती हैं. लैंगिक समानता में इजाफे के बावजूद ज्यादातर महिलाओं पर अपना करियर बनाए रखते हुए घर और परिवार चलाने का दबाव रहता है.

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आइसलैंड एवं अन्य नॉर्डिक देश लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए मजबूत पितृत्व अवकाश नीतियों की पेशकश करते हैं जिसमें माता और पिता दोनों को छह-छह महीने की छुट्टी मिलती है. यह व्यापक अपेक्षा कि महिलाएं अनिवार्य रूप से मां बनेंगी, ऐसा माहौल बना सकती है जहां जो महिलाएं मां नहीं बनने का विकल्प चुनती हैं, उन्हें अक्सर सवालों के दायरे में लाया जाता है और उन्हें स्वार्थी या परिवार विरोधी के रूप में गलत तरीके से पेश किया जाता है.

 

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इस तरह के सामाजिक नियम अक्सर महिलाओं के निसंतान रहने के फैसले को अनुचित ठहराते हैं और उन्हें पूर्वाग्रह का शिकार होना पड़ता है.

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लैंगिक समानता के मामले में ग्लोबल लेवल पर आगे होने के बावजूद आइसलैंड में दोनों तरह के विचार हैं, जिसके तहत महिलाओं को सफल करियर और प्राथमिक देखभालकर्ता के रूप में सम्मानित किया जाता है. 

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इसमें यह गलत सामाजिक धारणा भी शामिल है कि जिन महिलाओं के बच्चे नहीं होते, वे असफल होती हैं या उन्हें बच्चे न होने का पछतावा होगा. यह धारणा इन महिलाओं को अपने निर्णयों के बारे में दुविधाग्रस्त बना सकती है.

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इस तरह की गलत धारणा न केवल समाज में उनके योगदान को कम करती है, बल्कि कई महिलाओं को ऐसे निर्णय लेने के लिए मजबूर करती है जो उनकी आकांक्षाओं के मुताबिक नहीं होते. कुछ महिलाएं, जिन्होंने बच्चे नहीं पैदा करने का फैसला लिया है, वे फिर भी दुविधा में हैं और अपने अंडों को फ्रीज कराने पर विचार करके इस प्रक्रिया को टाल रही हैं. 

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नारीत्व को मातृत्व से जोड़ने वाले, गहराई से जड़ जमाए सांस्कृतिक मानदंड, महिलाओं को अपने परिवार, साथी या समुदाय की अपेक्षाओं के कारण बच्चे पैदा करने के लिए बाध्य कर सकते हैं.

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आइसलैंड जैसे छोटे देशों में जहां आबादी को बनाए रखना चिंता का विषय है, वहां बच्चे पैदा करने की अपेक्षा विशेष रूप से तीव्र हो सकती है. शोध से पता चलता है कि पारिवारिक अपेक्षाएं माता-पिता की दादा-दादी बनने की इच्छा और इस चिंता से उत्पन्न होती हैं कि बच्चे न होने से निसंतान महिलाओं की बुढ़ापे में देखभाल करने वाला कोई नहीं होगा.

 

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 अगर दंपति में से कोई माता पिता बनने की इच्छा रखता है, तब भी महिलाएं दबाव महसूस करती हैं. उन्हें इस बात का डर रहता है कि अगर वे उनकी इच्छा नहीं मानती हैं तो रिश्ता टूट सकता है. इस तरह की उम्मीद महिलाओं को मातृत्व का विकल्प चुनने के लिए विवश करती है. इससे महिलाओं को कई भूमिकाओं को संतुलित करने के मानसिक और भावनात्मक बोझ से जूझना पड़ता है.

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