Anant Chaturdashi: युधिष्ठिर ने किया था अनंत चतुर्दशी का व्रत, महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त कर पाया खोया हुआ राज्य
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Anant Chaturdashi: युधिष्ठिर ने किया था अनंत चतुर्दशी का व्रत, महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त कर पाया खोया हुआ राज्य

Anant Chaturdashi 2022: जुए में जब सबकुछ हारकर पांडवों को अज्ञातवास सहना पड़ा. तब एक दिन दुखी युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण का आह्वान किया, तब श्रीकृष्ण ने अनंत भगवान का व्रत रखने के लिए कहा. 

 

अनंत चतुर्दशी

Anant Chaturthi 2022 Date: महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ में विभिन्न देशों के राजाओं के अलावा अपने अनुज और धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन को भी आमंत्रित किया. दुर्योधन युधिष्ठिर के महल की शिल्पकला देखकर आश्चर्यचकित था. महल में एक स्थान पर घूमते हुए दुर्योधन ने साधारण फर्श समझकर पैर डाल दिया, जो वास्तव में एक तालाब था. तालाब में गिरने से वह लज्जित हुआ, तभी द्रौपदी ने टिप्पणी कर दी कि अंधे का पुत्र अंधा. इससे वह और भी अपमानित हुआ. अपमान का बदला लेने के लिए ही उसने हस्तिनापुर लौटकर जुआ खेलने के लिए युधिष्ठिर को आमंत्रित किया. फिर जुए में अपना राजपाट, स्त्री, भाई सब हारने के बाद युधिष्ठिर सहित सभी पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास सहना पड़ा. वन में रहते हुए पांडवों ने असंख्य दुख सहे. दुखी अवस्था में ही युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण का आह्वान किया तो वह उपस्थित हो गए और उन्होंने युधिष्ठिर का दुख सुनने के बाद कहा कि वह विधिपूर्वक अनंत भगवान का व्रत रखें तो सभी संकट दूर हो जाएंगे और हारा हुआ राज्य भी मिल जाएगा.

यह है अनंत चतुर्दशी की कथा

युधिष्ठिर के कहने पर श्रीकृष्ण ने कथा सुनाते हुए कहा कि सतयुग में सुमन्तु नाम के ब्राह्मण की सुशीला नाम की सुंदर और धर्मपरायण कन्या थी. बड़ी होने पर ब्राह्मण ने उसका विवाह कौडिन्य ऋषि से कर दिया. ऋषि सुशीला को लेकर अपने आश्रम की ओर चले तो रात हो गई. वह एक नदी के तट पर बैठकर संध्या करने लगे. सुशीला ने देखा कि वहां पर बहुत सी स्त्रियां सुंदर वस्त्र पहनकर किसी देवता की पूजा कर रही हैं. सुशीला के पूछने पर उन महिलाओं ने अनंत व्रत की विधि और महिमा बता दी. सुशीला ने वहीं उस व्रत का अनुष्ठान करके चौदह गांठों वाला धागा हाथ की बाजू में बांधा और अपने पति के पास आ गई.

कौडिन्य ऋषि के पूछने पर उसने सारी बात बता दी, किंतु प्रसन्नता की बजाय नाराज ऋषि ने उस डोरे को तोड़कर आग में जला दिया. अनंत भगवान इससे रुष्ट हो गए, जिसके परिणाम स्वरूप ऋषि कौडिन्य बीमार रहने लगे. उनका सबकुछ नष्ट हो गया तो सुशीला ने बताया पीला डोरा तोड़ने के कारण ही यह दशा हुई है. पश्चाताप में ऋषि अनंत भगवान की प्राप्ति के लिए जंगल की ओर निकल पड़े. चलते-चलते थक और निराश होकर वह गिर पड़े तो अनंत भगवान ने प्रकट होकर कहा कि मेरे तिरस्कार के कारण ही तुम्हारी यह दशा हुई है, लेकिन तुम्हारे पश्चाताप से मैं प्रसन्न हूं. घर जाकर विधिपूर्वक 14 वर्ष तक व्रत करो तो तुम्हारे सभी दुख दूर हो जाएंगे. व्रत करने से कौडिन्य ऋषि को सभी कष्टों से मुक्ति मिल गई. भगवान श्र कृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने इस व्रत को किया तो महाभारत के युद्ध में उनकी विजय हुई और उन्होंने राजपाट हासिल किया. 

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