Kalpvas 2025 Date: सृष्टि की रचना के बाद जहां ब्रह्मा ने किया ‘कल्प वास’, एक तपस्या से मिलता 4 युगों का पुण्य; जानें प्रयागराज में कब से हो रहा प्रारंभ
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Kalpvas 2025 Date: सृष्टि की रचना के बाद जहां ब्रह्मा ने किया ‘कल्प वास’, एक तपस्या से मिलता 4 युगों का पुण्य; जानें प्रयागराज में कब से हो रहा प्रारंभ

Kalpvas 2025 Starting Date: प्रयागराज में अगले साल 13 जनवरी को महाकुंभ शुरू हो जाएगा. इसके साथ ही कल्पवास का आरंभ भी हो जाएगा. यह कल्पवास क्या होता है और इसका पौराणिक महत्व क्या है. आज हम इस बारे में विस्तार से बताते हैं. 

 

Kalpvas 2025 Date: सृष्टि की रचना के बाद जहां ब्रह्मा ने किया ‘कल्प वास’, एक तपस्या से मिलता 4 युगों का पुण्य; जानें प्रयागराज में कब से हो रहा प्रारंभ

What is the importance of Kalpvas: कलियुग में ज्योतिष में कल्प का विधान अब कोई रहस्य नहीं है, बल्कि एक वैज्ञानिक गणना साबित हो चुकी है. कल्प का मतलब होता है, ब्रह्मा का एक दिन. यानी पृथ्वी का 4.32 बिलियन इयर यानी 4 अरब 32 करोड़ साल. लेकिन इस गणना से अलग एक दिलचस्प रहस्य है इन पूरे कल्प वर्षों का पुण्य एक मास, यानी एक महीने में प्राप्त होने का. धरती पर इसे कल्पवास कहा जाता है. यानी वो समय, जब देवता भी चाहते हैं, काश वो मानव रूप में होते, तो उन्हें संगम तट पर कल्पवास का मौका मिलता. उस पावन कल्वपास का पहला संयोग 21वीं सदी के 25वें साल में बन रहा है. तीर्थराज प्रयाग में गंगा यमुना सरस्वती के दिव्य संगम तट पर. आज की स्पेशल रिपोर्ट में समझिए, कलियुग में कल्पवास का पूरा रहस्यमयी विधान.

जैसे स्वास्थ्य विज्ञान कहता है, तन शुद्धि के लिए स्नान जरूरी है, वैसे ही सनातन धर्म का ये पौराणिक श्लोक बताता है, तन-मन की शुद्धि के लिए स्नान के साथ अपने ईश्वर के प्रति संपूर्ण समर्पण जरूरी है. ईश्वर यानी ओम. ओम यानी ब्रह्मांड का स्वरूप और ध्वनि. ये हमारी वैदिक मान्यता है. अगर आप इस सृष्टि के प्रति समर्पित हैं, तो आप चाहे पवित्र हों या अपवित्र, ये सृष्टि आपके लिए चलयमान है. 

2025 के महाकुंभ में दुर्लभ संयोग, कल्पवास में 4 युगों का पुण्य!

इस आस्था के साथ आपका स्वागत है प्रयाग राज के संगम पर, जहां 2025 के महाकुंभ में एक रहस्यमयी संयोग बन रहा है. दुनिया के सभी धर्मों में पाप और पुण्य की अवधारणा अलग अलग शब्दों में वर्णित है, लेकिन हमारे वैदिक ग्रंथों में इसकी आध्यात्मिक परिभाषा बेहद दिलचस्प है. 

13 जनवरी से यहां महाकुंभ शुरू हो रहा है. इसमें एक खास विधान होता है कल्पवास का. कल्पवास की अवधारणा आपकी दैहिक, मानसिक शुद्धि से जुड़ी हुई है. आसान भाषा में समझें, तो पाप का मतलब वो कर्म, जिससे सृष्टि के किसी भी दूसरे अंश को पीड़ा पहुंचती हो. और पुण्य हर वो कर्म, जिससे सृजन होता हो, जिससे कुछ नया बनता हो. ये पूरा ब्रह्मांड सृजन के इसी विधान से लगातार आगे बढ़ रहा है. 

अब आपके जेहन में सवाल उठ रहा होगा कि क्या महाकुंभ में संगम तट पर कल्पवास और इसके विधान के मुताबिक स्नान से पाप नष्ट हो जाते हैं...? 

महाकुंभ में कल्पवास और स्नान से ‘पाप मुक्ति’ का रहस्य!

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी बताते हैं कि पाप पुण्य जो है ये आप पर निर्भर करता है कि आप क्या सोचते हो अपने बारे में. आपने गंगा जी में डुबकी लगाई और सोचो कि मेरे पाप खत्म हो गए, पुण्य की प्राप्ति हो गई. ये हम पर ही डिपेंड करता है कि हम अपने मन को कैसे रख सकते हैं. 

पाप और पुण्य को लेकर हमारी वैदिक मान्यता की तरह विज्ञान भी ये मानता है, कि इंसान का दिमाग उसके कर्मों का पूरा बही खाता है. इस बही खाते में जो भी चीज दर्ज होगी, हमारा व्यावहार उसी तरह का होगा. लेकिन विज्ञान ऐसे नकारात्मक व्यावहार से मुक्ति का रास्ता नहीं बताता. लेकिन हमारे वैदिक अध्यात्म में इसका उपाय है. वो है प्रकृति के साथ वास और इसके विधान के मुताबिक व्यावहार. 

इलाहाबाद विश्वविद्यालय (मीडिया स्टडीज) के को-ऑर्डिनेटर डॉ. धनंजय चोपड़ा कहते हैं कि पूरे जीव जगत में स्वंय को रिजुवेनेट करने का प्रोसेस होता है, अपने आप को नया कर लेना. इसी के लिए आते हैं. नया क्या, शरीर तो बदल नहीं सकते, जाहिर सी बात है हम बदल रहे हैं अपनी मानसिक शक्तियों को. 

क्या है कल्पवास की वैदिक अवधारणा?

डॉक्टर धनंजय चोपड़ा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में मीडिया स्टडीज के संयोजक है और महाकुंभ से जुडे कई आध्यात्मिक पहलुओं पर किताबें लिख चुके हैं. कल्पवास का पूरा कॉन्सेप्ट समझने के लिए जब हमने इनसे संपर्क किया, तो कई ऐसी बातें बताईं, जो हमारी धार्मिक आस्था से जुड़ी होते हुए भी, पूरी तरह मनोवैज्ञानिक हैं. यानी तन से लेकर मन तक पूरा शुद्धिकरण. 

तो क्या वो शुद्धिकरण संगम पर स्नान से समंव है? इस सवाल के जवाब से पहले कल्पवास की वैदिक अवधारणा समझ लीजिए. पौष मास की पूर्णिमा से शुरु होती है कल्पवास की अवधि. कुंभ, अर्धकुंभ और महाकुंभ में कल्पवास का खास महत्व माना जाता है. 1 दिन से लेकर पूरे कुंभ अवधि तक के कल्पवास का विधान है. कल्पवास के पौराणिक विधान में 21 नियम हैं, जो हर कल्पवासी को बरतने होते हैं. इस दौरान जमीन पर सोना, खुद खाना बनाकर खाने का विधान है. नियम के मुताबिक कल्पवासी को दिन में 1 बार भोजन, 3 बार स्नान करना होता है. इसके साथ कल्पवासी को भागवत पाठ, राम कथा और संध्या आरती करनी होती है. 

कल्पवास पर वैज्ञानिक शोध, 42 दिन में कैसे होती है शुद्धि?

ये तो हुई महाकुंभ और कल्पवास को लेकर धार्मिक मान्यता, मगर इसका पूरा वैज्ञानिक विश्लेषण है. इलाहाबाद से लेकर ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी तक इस पर शोध हो चुका है. 

विज्ञान कहता है हमारी धरती ब्रह्मांड में ग्रहों की एक वैज्ञानिक व्यवस्था का हिस्सा है. इस नाते ये सूर्य से जुड़ी हुई है और अपना संतुलन सौरमंडल के दूसरे ग्रहों के साथ बनाकर रखती है. धरती को मिलने वाला सूर्य का प्रकाश और बृहस्पति जैसे ग्रह का सुरक्षा कवच इसी संतुलन का हिस्सा है. यही बात हमारे वैदिक श्लोक बताते हैं. 

मेषराशिगते जीवे मकरे चन्द्रभास्करौ।

अमावस्या तदा योगः कुंभख्यस्तीर्थ नायके। 

प्रयागराज में 12 साल बाद कब होता है महाकुंभ?

ये श्लोक बताता है प्रयागराज में हर 12 साल पर महाकुंभ का संयोग तब बनता है, जब अमावस्या की तिथि पर जब बृहस्पति मेश राशि में और चंद्रमा र सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं. वैसे तो कुंभ का आयोजन 4 जगहों पर होता है. हरिद्वार, उज्जैन नासिक और प्रयागराज. लेकिन महाकुंभ प्रयागराज को छोड़कर कहीं और नहीं होता. दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे पावन मानव मेला प्रयागराज के संगम तट पर ही लगता है. इसी वजह से प्रयागराज के तट पर कल्पवास का खास विधान है. जानकार कहते हैं, कि प्रयागराज में महाकुंभ के लिए ग्रहों की खास स्थिति गंगा यमुना और सरस्वती के संगम जल को अपने असर से ऊर्जावान बनाती है. 

वैज्ञानिक शोधों के मुताबिक सौरमंडल में सबसे शक्तिशाली सूर्य और सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति का आकर्षण संगम तट पर वैसे ही पड़ता है, जैसे समुद्र का जल चंद्रमा की बदलती स्थिति वजह से उद्धेलित होता है. हमारी वैदिक गणना बताती है, पानी हमारे मन का प्रतीक है. ये भी इसी वजह से ग्रहों की खास स्थिति में रुपांतरित होता है.

महाकुंभ में कल्पवास का तप, मस्तिष्क को साधने का मंत्र?

यानी कल्पवास की परिकल्पना पूरी तरह खुद को साधने की प्रक्रिया है. अगर इस साधना को वैज्ञानिक तरीके से देखें, तो जैसे शांतिपूर्ण जीवन के लिए आधुनिक मनोविज्ञान 5 H की अवधारणा बताता है, उसी तरह हमारी वैदिक परंपरा में भी सुकर्म यानी अच्छे कर्तव्य के 5 अंग माने गए हैं...

कल्पवास साधना का अध्यात्म और विज्ञान

मनोविज्ञान वेदों में वर्णन

Head                            मस्तिष्क

Hand                            हस्तकर्म 

Heart                           शुद्ध हृदय

Habit                            शिष्टाचार

Health                          निरोगी काया

10 करोड़ कल्पवासियों के आने का अनुमान

मनोविज्ञान 5 एच थ्योरी में हैंड, हेड, हार्ट, हैबिट और हेल्थ को प्राथमिकता दी जाती है, उसी तरह वेदों में आत्म शुद्धि के लिए 5 अंगों को प्राथमिकता दी गई है. इंसान के दिमाग से लेकर हाथों से सुनिश्चित किए जाने वाले अच्छे कर्म, साफ हृदय, शिष्ट व्यावहार और बिना व्याधि वाला शरीर बेहद अहम है.

अगर कल्पवास का पूरा विधान देखें, तो इसमें जो दिनचर्या तय की गई है, उसका असर पूरी तरह मनोवैज्ञानिक होता है. वेद और विज्ञान दोनों के जानकार मानते हैं, कि महीने भर से ज्यादा की अवधि वाला कल्पवास आपको एक ऐसी शुद्धि की तरफ ले जाता है, जहां आपका दिमाग नए तरीके से फंक्शन करना शुरू कर देता है. इस बदलाव के लिए स्नान से लेकर खान पान, संगम का तट, नियमति ध्यान और दान की परंपरा खास तौर जिम्मेदार मानी जाती है.

मिलता है 4 युगों की तपस्या जितना फल

युगों युगों से चली आ रही कल्पवास की ये परंपरा आज भी इतनी बलवती है, कि इस महाकुंभ में 10 करोड़ कल्पवासियों के आने का अनुमान है. इस बार के महाकुंभ 10 करोड़ लोगों के लिए पूरी टेंट सिटी बनाई गई है. अनुमान है कि पूरे महाकुंभ के दौरान 45 करोड़ लोग प्रयागराज के संगम तट पर जमा होंगे. अब तक जितने कुंभ हुए हैं, उनमें अगर कल्पवासियों की तादाद देखें, तो ये 20 से 25 फीसदी होते हैं. संगम तट के किनारे एक छोटी सी कुटिया, पौस माघ की कड़ाके की ठंड, लेकिन आत्मबल ऐसा, देखने वाले हैरान रह जाते हैं. स्पेशल रिपोर्ट के इस हिस्से में देखिए कठिन साधना का साक्षात रूप. 

अगर आस्था न हो, तो आत्मबल भी नहीं रहता- ये मनोविज्ञान भी कहता है और अध्यात्म भी. इसी आत्मबल की बदौलत तप का विधान है. ये तब आपकी उसी आंतरिक शक्ति का इम्हितान होता है. अब आस्था ये है, कि महाकुंभ में कल्पवास 4 युगों की तपस्या जितना फल एक बार में दे जाता है. जैसा कि हमने पहले बताया, कल्प का मतलब सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का एक दिन होता है.

‘कल्प’ की वैदिक गणना

इस कल्प की पूरी गणना विष्णु पुराण और भागवत पुराण में खासतौर पर मिलती है. इसके मुताबिक, एक कल्प- सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग में कुल वर्षों के बराबर होता है. एक कल्प की अवधि ब्रह्मा के एक दिन यानी 4.32 अरब साल होती है. हर कल्प के बाद प्रलय होता है, यानी पूरी सृष्टि की रचना नए सिरे से होती है. वेदों में ब्रह्मा की उम्र 100 साल बताई गई है. इसके मुताबिक, पूरे ब्रह्मांड की उम्र 311.04 लाख साल है. 

इस दौरान 3600 कल्प और 3600 प्रलय होंगे. अभी हम ब्रह्मा के 51वें साल के पहले दिन में हैं.

अगर इस वैदिक गणना को मानें, तो हमारी सृष्टि आधी उम्र पूरी कर चुकी है. कल्पवास की साधना के पीछे इसी सृष्टि से सीधे संपर्क और संवाद स्थापित करने की अवधारणा है. सनातनी परंपरा में सृष्टि के प्रति इसी सपर्पण को ईश्वरीय आस्था से जोड़ा गया है. इस तरह देखें, तो कल्पवास का तप सिर्फ स्वयं कल्याण के लिए नहीं, बल्कि इसमें प्रार्थना सर्वे भवंतु सुखिनः वाली होती है. 

सर्वे भवन्तु सुखिनः 

सर्वे सन्तु निरामया।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा 

कश्चित् दुःखभाग् भवेत्

खुद को बेहतर बनाने ये आस्था ही है, जो साल 1954 में कुंभ मेले में भारत के सबसे पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को खींच लाई थी. राजेन्द्र प्रसाद ने अकबर के किले में कल्पवास किया था. उनके कल्पवास के लिए खास तौर पर किले की छत पर कैंप लगाया गया था. यह जगह प्रेसिडेंट व्यू  के नाम से जानी जाती है. इस बार प्रयागराज में महाकुंभ है, तो कल्पवासियों का मेला अब तक का सबसे बड़ा होने वाला है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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