बुल टेंपल के द्वारपाल का ऊंचा स्थान, महादेव से पहले इन्हें मनाना जरूरी
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बुल टेंपल के द्वारपाल का ऊंचा स्थान, महादेव से पहले इन्हें मनाना जरूरी

बुल टेंपल को दोड़ बसवन गुड़ी मंदिर भी कहा जाता है. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार नंदी शिव का न सिर्फ बहुत बड़े भक्त हैं, बल्कि उनका सवारी भी हैं. मंदिर को सन 1537 में विजयनगर साम्राज्य के शासक केंपेगौड़ा ने बनवाया था.

भगवान शिव के सेवक की महिमा भी अपरंपार हैं....

बेंगलुरु : दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य स्थित बेंगलुरु का एक और लोकप्रिय आकर्षण, बुल मंदिर है. यह भगवान शिव के वाहन नंदी का मंदिर है. इस मंदिर में पवित्र बैल, नंदी की विशाल प्रतिमा है. कहा जाता है इस मंदिर में नंदी के दर्शन से भोले भंडारी के भक्तों की गुहार नंदी भगवान शिव तक पहुंचाते हैं.


  1. अद्भुत हैं बसवनगुडी स्थित शिव के सेवक 
  2. बिना इनकी मर्जी के नहीं मिलते हैं भगवान
  3. भक्त और भगवान के बीच सेतु हैं नंदी जी

हर शिवालय के बाहर उनकी मूर्ति जरूर रहती है और उनके दर्शन करके ही भक्त शिव मंदिर में प्रवेश करते हैं. लेकिन यहां वर्णण शिव के द्वारपाल नंदी का जो भक्ति और शक्ति का प्रतीक हैं. उनका विशाल स्वरूप देखने को मिलता है बेंगलुरु के बसवनगुडी में बिग बुल मंदिर में जहां प्रवेश करते ही नंदी की विशालकाय प्रतिमा महादेव के भक्तों को भरोसा दिलाती है कि भोले भंडारी तक अर्जी पहुंचाने के बाद मन्नत पूरी हो जाएगी. 

वैसे तो महादेव के हर मंदिर के बाहर नंदी विराजमान रहते हैं, उनकी आज्ञा लेकर ही भक्त मंदिर में प्रवेश करते हैं. वहीं बिग बुल मंदिर में नाम के अनुरूप नंदी की एक ही पत्थर की काली रंग की विशालकाय प्रतिमा है, जो 15 फीट ऊंची और 20 फीट चौड़ी है. 

द्रविड शैली की कारीगरी
बुल टेंपल को दोड़ बसवन गुड़ी मंदिर भी कहा जाता है. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार नंदी शिव का न सिर्फ बहुत बड़े भक्त हैं, बल्कि उनका सवारी भी हैं. मंदिर को सन 1537 में विजयनगर साम्राज्य के शासक केंपेगौड़ा ने बनवाया था. कहा जाता है नंदी की इस मूर्ति को ग्रेनाइट के सिर्फ एक चट्टा के जरिए बनाया गया है. बुल टेंपल को द्रविड शैली में बनाया गया है और ऐसा माना जाता है कि विश्वभारती नदी प्रतिमा के पैर से निकलती है. 

मूंगफली मेले का आयोजन
पौराणिक कथा के अनुसार यह मंदिर एक बैल को शांत करने के लिए बनवाया गया था. जो कि मूंगफली के खेत में चरने के लिए चला गया था, वहीं मंदिर बनाया गया. आज भी मंदिर के पास एक मूंगफली के मेले का आयोजन किया जाता है. नवंबर-दिसंबर में लगने वाला मेला मूंगफली की फसल के दौरान आयोजित होता है.

महादेव के विशालकाय द्वारपाल
इस मन्दिर के साथ एक और किंवदंती जुड़ी है. कहते है नंदी के मस्तक पर लगी स्टील की प्लेट को खुद भगवान शिव ने आ कर नंदी के मस्तक पर लगाया था क्योंकि भक्तों के भोग और पूजा के बाद नंदी का कद यहां हर साल बढ़ता जा रहा था. हांलाकि इस तथ्य की कोई पुष्टि नहीं है.

मंदिर की देख रेख और संचालन की जिम्मेदारी सरकारी विभाग करता है. सदियों बाद भी लोगों की श्रद्धा और विश्वास इस मंदिर के प्रति पहले जैसा है. माना जाता है किसी भी नये काम की शुरुआत से पहले मंदिर में दर्शन करने से काम सफल होता है.

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