Dharma: नल नील को बुलाकर बनाई जाने लगी रामसेतु की योजना, रोचक है कहानी
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Dharma: नल नील को बुलाकर बनाई जाने लगी रामसेतु की योजना, रोचक है कहानी

Ram Setu: रामायण के किस्से-कहानियां तो हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं. लेकिन क्या आपको नल नील को बुलाकर बनाई जाने वाली रामसेतु की योजना (Ram Setu's Plan) के बारे में पता है? अगर नहीं तो इस रोचक कहानी को जरूर पढें...

Dharma: नल नील को बुलाकर बनाई जाने लगी रामसेतु की योजना, रोचक है कहानी

Interesting Story: लंका की अशोक वाटिका में सीता माता की स्थिति को जानकर प्रभु श्री राम को अपार दुख हुआ. सुग्रीव जी (Sugriv Ji) के आदेश पर भालू-वानरों की भारी सेना एकत्र हो गई. अब समस्या थी कि किस तरह समुद्र के उस पार जाकर लंका में रावण को युद्ध में पराजित कर सीता माता को लाया जाए. धनुष पर बाण चढ़ाते ही समुद्र ने प्रभु से क्षमा मांगते हुए विनयपूर्वक कहा कि आपके यहां नल नील नामक दो भाई हैं, ये दोनों समुद्र पर सेतु बना सकते हैं क्योंकि इनके स्पर्श से भारी पत्थर भी समुद्र (Sea) में तैरने लगेंगे. समुद्र के जाने के बाद जाम्बवन्त जी ने हाथ जोड़कर प्रभु से कहा कि हे सूर्यकुल के ध्वजा वाहक श्री राम, सेतु तो आपका ही नाम है जिनका सहारा पाकर मनुष्य संसार रूपी समुद्र को पार कर जाता है. तो फिर यह तो बहुत छोटा सा समुद्र है. जाम्बवन्त जी (Jamwant Ji) ने नल नील दोनों भाइयों को बुलाकर पूरी बात विस्तार से बताते हुए कहा कि श्री राम जी के प्रताप को स्मरण कर सेतु तैयार करो, इसमें कुछ भी परिश्रम नहीं लगेगा.

देखते ही देखते समुद्र पर तैयार होने लगा पुल

जाम्बवन्त जी ने भालू और वानरों के समूह को बुलाकर कहा कि आप लोग जाइए और बड़े-बड़े पर्वतों (Mountains) के पत्थर तथा वृक्षों को उखाड़ कर ले आइए. बस फिर क्या था, भालू-वानर दौड़ पड़े और देखते ही देखते विशाल वृक्षों और पहाड़ों को तोड़कर नल-नील को देने लगे. नल नील भी मन ही मन श्री राम (Lord Ram) का नाम लेकर उन पत्थरों को गेंद की तरह समुद्र में डाल देते, जो डूबने के बजाय तैरने लगते. देखते ही देखते सौ योजन के समुद्र पर पुल तैयार होने लगा.

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श्री राम ने की रामेश्वर शिवलिंग की स्थापना

सेतु की सुंदर रचना देखकर कृपासिंधु श्री राम बहुत ही प्रसन्न हुए और हंसकर बोले कि यहां की भूमि बहुत ही रमणीय है. यहां का वातावरण अत्यंत प्राकृतिक और मनोहारी है. यहां पर मैं शिवलिंग (Shivling) की स्थापना करूं, ऐसा संकल्प मेरे हृदय में आ रहा है. सुग्रीव जी ने श्री राम की बातें सुनकर तुरंत ही बहुत से दूत भेजकर श्रेष्ठ मुनियों को सम्मान पूर्वक बुलावा भेजा. मुनियों (Sages) के आने पर उन्हें श्री राम के हृदय का संकल्प बताया गया तो वे भी बहुत प्रसन्न हुए. विधिपूर्वक शिवलिंग की स्थापना कर उनका पूजन किया गया. प्रभु श्रीराम ने कहा कि शिवजी के समान मुझे दूसरा कोई प्रिय नहीं है.

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रामेश्वर के दर्शन मात्र से कल्याण

प्रभु श्री राम ने रामेश्वर शिवलिंग (Rameshwar Shivling) की महिमा का बखान करते हुए कहा कि जो शिव जी से द्रोह रखता है और मेरा भक्त कहलाता है, वह मनुष्य स्वप्न में भी मुझे नहीं पा सकता. शंकर जी से विमुख होकर जो मेरी भक्ति (Devotion) चाहता है, वह नरकगामी, मूर्ख और अल्पबुद्धि है. उन्होंने यहां तक कहा कि जो मेरे द्वारा स्थापित इन रामेश्वर शिवलिंग के दर्शन करेंगे वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएंगे और जो गंगाजल (Gangajal) लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह तो मेरे साथ एक हो जाएगा. जो छल छोड़कर निष्काम श्री रामेश्वर की सेवा करेंगे, उन्हें शंकर जी मेरी भक्ति देंगे और जो इस सेतु के दर्शन करेगा, वह बिना परिश्रम ही संसार रूपी समुद्र से तर जाएगा.    

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