हिंदू पंचांग की ग्यारहवीं तिथि एकादशी (Ekadashi) कहलाती है. हर माह में दो एकादशी होती हैं. एक एकादशी शुक्ल पक्ष के बाद और दूसरी कृष्ण पक्ष के बाद आती है.
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नई दिल्ली: हिंदू पंचांग की ग्यारहवीं तिथि एकादशी (Ekadashi) कहलाती है. हर माह में दो एकादशी होती हैं. एक एकादशी शुक्ल पक्ष के बाद और दूसरी कृष्ण पक्ष के बाद आती है.
इस वर्ष हैं 26 एकादशी
आमतौर पर एक वर्ष में 24 एकादशी होती हैं. वहीं इस वर्ष पुरुषोत्तम मास के होने के कारण एकादशी भी दो बढ़ गई हैं, जिससे अब ये 26 हो गई हैं. इस पुरुषोत्तम मास को मलमास या अधिकमास (Adhikmaas) के नाम से भी जाना जाता है. इस अधिकमास में पड़ने वाली एकादशी को पद्मिनी एकादशी (Padmini Ekadashi) या कमला एकादशी (Kamla Ekadashi) कहा जाता है. इस मास में आने वाली एकादशी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. हिंदू कैलेंडर के हिसाब से पद्मिनी एकादशी का व्रत व पूजन लीप महीने पर निर्भर करता है. यही कारण है कि इसका चंद्र मास निश्चित नहीं है. ये भगवान विष्णु के अतिप्रिय दिवस हैं. 18 सितंबर से अधिकमास शुरू हो चुका है. एकादशी भी दूर नहीं है तो आइए जानते हैं एकादशी के मुहूर्त, व्रत, पूजा तथा महत्व के बारे में.
किस तिथि को मनाई जाएगी कमला एकादशी
मलमास में आने वाली दो एकादशी की तिथियां-
1. 27 सितंबर, 2020: दिन - रविवार : अधिक मास - आश्विन शुक्ल पक्ष - पुरुषोत्तमा एकादशी (पद्मिनी एकादशी)
2. 13 अक्तूबर, 2020: दिन - मंगलवार : अधिक मास - आश्विन कृष्ण पक्ष - पुरुषोत्तमा एकादशी (परमा एकादशी)
पुरुषोत्तमा एकादशी व्रत का महत्व
एक समय की बात है. धर्मराज युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से पद्मिनी एकादशी के महत्व के विषय में पूछा. तब प्रभु श्री कृष्ण ने कहा कि यह एकादशी सभी पापों को हरने वाली और समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली होती है. मान्यता है कि जो लोग प्रभु पुरुषोत्तम का सच्चे मन से पूजन व मनन करते हैं, वे कलियुग में भी धन्य होते हैं. यह व्रत पुण्यों की प्राप्ति कराता है. सभी मासों में पुरुषोत्तम मास, पक्षियों में गरुड़ तथा नदियों में गंगा श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार तिथियों में एकादशी तिथि सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है. पद्मिनी एकादशी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है. इस एकादशी को व्रत रखने वाला प्राणी विष्णु लोक का गमन करता है और हर प्रकार के यज्ञ, व्रत और ध्यान (तपस्या) का फल प्राप्त करता है.
पुरुषोत्तमा एकादशी व्रत की विधि
1. इस दिन निर्जल उपवास किया जाता है.
2. इस दिन उपवास करने वाले को सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए.
3. तत्पश्चात् एक शुद्ध व स्वच्छ चौकी पर प्रभु विष्णु जी की तस्वीर या प्रतिमा को भक्तिभाव से स्थापित करना चाहिए.
4. फिर भगवान विष्णु जी को पीले पुष्प, पीले वस्त्र और नैवेद्य अर्पण करने चाहिए.
5. अब विष्णु जी के समक्ष धूप व दीपक जलाएं.
6. इसके बाद विधिवत पूजा व आरती करें.
7. अब विष्णु जी को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाकर विष्णु पुराण और शिव पुराण का जाप करें.
पुरुषोत्तमा एकादशी की व्रतकथा
इस एकादशी के व्रत के संबंध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है. इस कथा के अनुसार, त्रेतायुग में एक महान राजा था, जिसका नाम था- कृतवीर्य. इस राजा की कई रानियां थीं. इनमें से किसी भी रानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई थी. इस वजह से राजा और रानियां बहुत दुखी रहते थे. खूब पूजा-पाठ के बाद भी जब उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई तो राजा ने जंगल जाकर तपस्या की. बहुत वर्षों तक तपस्या करने के बाद भी जब कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई तो राजा और भी निराश हो गए. तब राजा की एक रानी ने देवी अनुसूया से अपने दुख का कारण बताया. साथ ही इसका समाधान करने की प्रार्थना भी की. तब देवी अनुसूया ने रानी को शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने की सलाह दी. तभी से रानी ने एकादशी का व्रत करना आरंभ कर दिया. रानी के व्रत तथा तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने दर्शन दिए और वरदान मांगने के लिए कहा. तब रानी ने भगवान विष्णु से कहा कि यदि आप वरदान देना ही चाहते हैं तो मेरे पति को दीजिए. विष्णु जी ने राजा से वरदान मांगने के लिए कहा. राजा ने भगवान से एक वीर, बुद्धिमान, शक्तिशाली व तीनों लोकों में सम्मान प्राप्त करने वाला पुत्र प्रदान करने की प्रार्थना की.वरदान मिलने पर राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई, जो आगे चलकर बहुत प्रसिद्ध हुआ था. तभी से यह मलमास की एकादशी का व्रत व पूजा का महत्व बढ़ गया और जन-जन में प्रसिद्ध हो गया.
(पंडित शिवकुमार तिवारी शास्त्री से बातचीत पर आधारित)
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