होली वसंत ऋतु में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है.
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नई दिल्ली: फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक की अवधि को शास्त्रों में होलाष्टक कहा गया है. ज्योतिर्विद् मदन गुप्ता सपाटू ने बताया कि होलाष्टक शब्द दो शब्दों का संगम है. होली तथा आठ अर्थात 8 दिनों का पर्व .यह अवधि इस साल 3 मार्च से 9 मार्च तक अर्थात होलिका दहन तक है. इन दिनों गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार, विवाह संबंधी वार्तालाप, सगाई, विवाह , किसी नए कार्य, नींव आदि रखने , नया व्यवसाय आरंभ या किसी भी मांगलिक कार्य आदि का आरंभ शुभ नहीं माना जाता. इस बीच 16 संस्कार भी नहीं किए जाते.
इसके पीछे ज्योतिषीय एवं पौराणिक ,दोनों ही कारण माने जाते हैं. एक मान्यता के अनुसार कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग कर दी थी. इससे रुष्ट होकर उन्होंने प्रेम के देवता को फाल्गुन की अष्टमी तिथि के दिन ही भस्म कर दिया था. कामदेव की पत्नी रति ने शिव की आराधना की और कामदेव को पुनर्जीवित करने की याचना की जो उन्होंने स्वीकार कर ली . महादेव के इस निर्णय के बाद जन साधारण ने हर्शोल्लास मनाया और होलाश्टक का अंत दुलंहडी को हो गया. इसी परंपरा के कारण यह 8 दिन शुभ कार्यों के लिए वर्जित माने गए.
होली वसंत ऋतु में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय पर्व/त्योहार है. वस्तुतः यह रंगों का त्योहार है. यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है. पहला दिन होलिका दहन किया जाता है उसके दूसरे दिन रंग खेला जाता है. फाल्गुन मास में मनाए जाने के कारण होली को फाल्गुनी भी कहते हैं.
शुभ कार्य करने से बचें
होलाष्टक से जुडी मान्यताओं को भारत के कुछ भागों में ही माना जाता है. इन मान्यताओं का विचार सबसे अधिक पंजाब में देखने में आता है. होली के रंगों की तरह होली को मनाने के ढंग में विभिन्न है. होली उत्तरप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडू, गुजरात, महाराष्ट्र, उडिसा, गोवा आदि में अलग ढंग से मनाने का चलन है. देश के जिन प्रदेशो में होलाष्टक से जुडी मान्यताओं को नहीं माना जाता है. उन सभी प्रदेशों में होलाष्टक से होलिका दहन के मध्य अवधि में शुभ कार्य करने बन्द नहीं किये जाते है.
होलाष्टक की पौराणिक मान्यता
फाल्गुण शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन अर्थात पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है. इस दिन से मौसम की छटा में बदलाव आना आरम्भ हो जाता है. सर्दियां अलविदा कहने लगती है, और गर्मियों का आगमन होने लगता है. साथ ही वसंत के आगमन की खुशबू फूलों की महक के साथ प्रकृ्ति में बिखरने लगती है. होलाष्टक के विषय में यह माना जाता है कि जब भगवान श्री भोले नाथ ने क्रोध में आकर काम देव को भस्म कर दिया था, तो उस दिन से होलाष्टक की शुरुआत हुई थी.
ये हैं शुभ मुहूर्त
होलिका दहन मुहूर्त - 18:23 से 20:50
मुहूर्त की अवधि - 2 घंटे 30 मिनट
भद्रा पूँछ - 09:37 से 10:38
भद्रा मुख - 10:38 से 12:19
रंगवाली होली तिथि - 10 मार्च 2020
पूर्णिमा तिथि आरम्भ - 9/3/2020 को 03:00 बजे से
पूर्णिमा तिथि समाप्त - 9 /3/2020 को 23:18 बजे तक