Kamika Ekadashi Katha: इसे कामिका, कामदा या पवित्रा एकादशी कहा जाता है. यह व्रत जाने अनजाने हुए पापों से मुक्ति दिलाकर व्रती को पवित्र कर देता है.
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Kamika Ekadashi Vrat Katha: प्रत्येक मास की एकादशी को व्रत करने की परंपरा है, किंतु देवशयनी, देवोत्थान और निर्जला एकादशी की तरह ही सावन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का भी काफी महत्व है. इसे कामिका, कामदा या पवित्रा एकादशी कहा जाता है. यह व्रत जाने अनजाने हुए पापों से मुक्ति दिलाकर व्रती को पवित्र कर देता है. इस दिन प्रातः स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराके भोग लगाना चाहिए. आचमन के पश्चात धूप, दीप, चंदन आदि सुगंधित पदार्थों से आरती उतारनी चाहिए और दिन भर व्रत रखना चाहिए. ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और मृत्यु के बाद अपने भक्त को अपने लोक में स्थान देते हैं. इस बार यह 13 जुलाई को होगा.
कथा
प्रचलित कथा के अनुसार, प्राचीन काल में किसी गांव में एक ठाकुर साहब रहते थे. वह बहुत ही क्रोधी स्वभाव के थे और बात-बात पर क्रुद्ध हो जाते थे. एक बार उनकी उसी गांव के एक ब्राह्मण से तकरार हो गयी. ठाकुर साहब उनकी बात नहीं बर्दाश्त कर सके और पिटाई कर दी, जिसमें ब्राह्मण की मृत्यु हो गयी. इस घटना से ठाकुर बहुत दुखी हुआ और अपनी गलती मान ठाकुर ने अपनी तरफ से उनका तेरहवीं भोज करना चाहा, किंतु सभी ब्राह्मणों ने उनका भोजन करने से इनकार कर दिया.
उन्होंने सभी ब्राह्मणों से हाथ जोड़कर विनम्रता के साथ पूछा कि उनका यह पाप कैसे दूर हो सकता है. इस पर उन लोगों ने कामिका एकादशी का व्रत करने की सलाह दी और उनकी सलाह पर ठाकुर ने विधि-विधान से एकादशी का व्रत किया. उस दिन श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी थी.
व्रत के दिन ही रात में वह विष्णु भगवान की मूर्ति के पास ही भूमि पर सो रहा था, तभी उसे सपना आया. सपने के अनुसार भगवान ने उससे कहा, हे ठाकुर अब तेरा पाप दूर गया है. अब तू ब्राह्मण की तेरहवीं कर सकता है. तेरे घर का सूतक खत्म हो गया है. इस तरह ठाकुर ने तेरहवीं का भोज किया और गांव के ब्राह्मणों ने आकर भोजन प्रसाद ग्रहण किया. इस तरह ठाकुर के ऊपर लगा ब्रह्म हत्या का पाप धुल गया और अंत में वह विष्णु लोक को गया. इस एकादशी का व्रत करने से ठाकुर पापमुक्त होकर पवित्र हो गया, इसलिए इसे पवित्रा एकादशी भी कहते हैं.