Karma Puja: भाई की उन्नति और अच्छी फसल के लिए करते हैं करमा पूजा, जानें पूजा विधि
Advertisement
trendingNow11882657

Karma Puja: भाई की उन्नति और अच्छी फसल के लिए करते हैं करमा पूजा, जानें पूजा विधि

Karma Puja 2023: बिहार और झारखंड का प्रमुख पर्व करमा पूजा, इस वर्ष 25 सितंबर को मनाया जाएगा. भारतीय संस्कृति में यह एक परंपरागत त्योहार है, जिसे भाई-बहन के प्यार और उनकी सुख-समृद्धि की कामना के लिए मनाया जाता है. इस पूजा में विभिन्न पारंपरिक रीतियां होती हैं, जिससे इसका महत्व और भी बढ़ जाता है. इस पर्व पर अच्छे कर्म की महत्व को बढ़ावा देने वाली पौराणिक कथाओं को सुनने की मान्यता है. 

Karma Puja 2023

Karma Puja 2023: करमा पर्व एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है, जिसका मुख्य उद्देश्य है कि बहनें अपने भाइयों की सुख-समृद्धि और अच्छी फसल की कामना के लिए व्रत रखें. इस वर्ष यह व्रत 25 सितंबर को रखा जाएगा. इसे विशेष रूप से बिहार और झारखंड में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. करमा पूजा की प्रक्रिया में तीज का डाला नदी में विसर्जित किया जाता है और उसी दिन शाम को करमा का डाला स्थापित किया जाता है. यह पर्व रात्री भर के गीत और नृत्य के साथ समाप्त होता है. कुंवारी युवतियां और विवाहित महिलाएं इस त्योहार का बेसब्री से इंतजार करती हैं, शादीशुदा महिलाएं अपने मायके में इस पर्व को मनाती हैं.

पूजा विधि
घर की सफाई कर, एक विशेष स्थान को गाय का गोबर से लीपना चाहिए. पूजा के समय ऐसा करने से स्थान शुद्ध होता है. इसके बाद करमा डाली को गाड़ा जाता है, और फिर बहनें पूजा का थाली सजाकर करम देव की पूजा करती हैं. पूजा के समय बहनें अपने भाई की सुख- समृद्धि और उन्नति के लिए प्रार्थना करती हैं. पूजा के बाद, करमा और धरमा की पौराणिक कथाएं सुनाई जाती हैं, जिसमें अच्छे कर्म करने का महत्व और उसके फल समझाया जाता है. शादीशुदा महिलाएं इस पर्व को अपने मायके में मनाती हैं, जो इस त्योहार का अनूठा पहचान है. इस पर्व के अंत में, भाई अपनी बहनों से पूछता है कि उन्होंने व्रत क्यों रखा, और उसके बाद वह खीरा लेकर अपनी बहनों को आशीर्वाद देते हैं.

हजारीबाग का करमा पूजा
हजारीबाग जिले के बड़कागांव में इस पर्व को बेहद अलग अंदाज में मनाया जाता है. तीज का डाला विसर्जन करने से पहले ही कई प्रतिष्ठानिक और पारंपरिक रीतियां संपन्न होती हैं, जैसे गांव की एक विशेष महिला जिसे भक्ताइन कहा जाता है, उनके द्वारा भूत भरनी की रश्में की जाती है. इसके बाद, पूजा के लिए करमा डाली को गाड़ा जाता है. और फिर सात दिनों तक उस डाली को जगाने की परंपरा है. आखिरी दिन सभी युवतियां करमा डाली को गले लगाती हैं, और रात भर गांव के पारंपरिक गीत और नृत्य कर त्योहार मनाती हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

Trending news