15 साल से आसमान की तरफ उठा है हाथ.. महाकुंभ पहुंचे ये साधु कौन हैं?
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15 साल से आसमान की तरफ उठा है हाथ.. महाकुंभ पहुंचे ये साधु कौन हैं?

Urdhva Bahu: महंत सोमेश्वर गिरी की यात्रा केवल एक आध्यात्मिक यात्रा नहीं है बल्कि यह उनकी समर्पण और संघर्ष की कहानी भी है. वह भारत के तमाम तीर्थ स्थलों और मंदिरों की यात्रा करते हैं, जहां उन्हें श्रद्धालुओं से अपार सम्मान मिलता है.

15 साल से आसमान की तरफ उठा है हाथ.. महाकुंभ पहुंचे ये साधु कौन हैं?

Mahant Someshwar Giri: भारत की संस्कृति और आध्यात्मिकता में तपस्या की जड़ें गहरी हैं. यहां इसे तपस्या के नाम से जाना जाता है, जो आत्म-नियंत्रण और सांसारिक भोगों से परे रहने की एक कठिन साधना है. यह तपस्या भी कई तरह की होती हैं. भारत में ऐसी अनेक कहानियां हैं, जहां साधु-संत अपनी कठोर साधनाओं से गहरे आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त करते हैं. कुंभ में भी लाखों साधु और श्रद्धालु एकत्रित होकर आध्यात्मिक अनुष्ठान करते हैं. इन साधुओं में एक नाम महंत सोमेश्वर गिरी का भी है जो चर्चा में हैं. उन्होंने पिछले 15 सालों से अपने एक हाथ को ऊपर उठाया हुआ है.

कठोर योगाभ्यास और ध्यान की साध..
दरअसल, इस कठिन साधना को 'उर्ध्व बाहु' कहा जाता है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक महंत सोमेश्वर गिरी ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत बचपन में ही की थी. उन्होंने कठोर योगाभ्यास और ध्यान की साधना की. उनके गुरु ने उन्हें सांसारिक जीवन का त्याग करने और एक बाल योगी बनने की प्रेरणा दी. उन्होंने जीवन को पूरी तरह से आध्यात्मिक मार्ग पर समर्पित कर दिया.

रिपोर्ट के मुताबिक 20 साल की उम्र में, सोमेश्वर गिरी ने 'उर्ध्व बाहु' अभ्यास को अपनाने का निर्णय लिया. उन्होंने अपने दाहिने हाथ को ऊपर उठाकर रखा और यह शपथ ली कि वे इसे कभी नहीं नीचे लाएंगे. और फिर ऐसा ही हुआ. महंत सोमेश्वर गिरी की तपस्या और कठिन साधनाओं ने उन्हें एक लोकप्रिय और प्रेरणास्त्रोत व्यक्ति बना दिया है. वे जहां भी जाते हैं उनका हाथ ऊपर उठा हुआ रहता है. 

समर्पण और संघर्ष की कहानी..
महंत सोमेश्वर गिरी की यात्रा केवल एक आध्यात्मिक यात्रा नहीं है बल्कि यह उनकी समर्पण और संघर्ष की कहानी भी है. वह भारत के तमाम तीर्थ स्थलों और मंदिरों की यात्रा करते हैं, जहां उन्हें श्रद्धालुओं से अपार सम्मान मिलता है. महंत जी की उर्ध्व बाहु की मुद्रा उन्हें एक प्रतीक बना चुकी है. 

उर्ध्व बाहु का अभ्यास शारीरिक कठिनाई से कहीं अधिक है. यह एक मानसिक और आध्यात्मिक चुनौती है, जिसमें साधक अपने शरीर और मन की सीमाओं को पार करने की कोशिश करता है. यह अभ्यास व्यक्ति को मानसिक शांति, ध्यान में गहरी एकाग्रता और आत्म-ज्ञान की ओर अग्रसर करता है. यही कारण है कि महंत सोमेश्वर गिरी और उनके जैसे अन्य साधु, समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं. 

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