Margashirsha Month 2024 Importance: सनातन धर्म में हिंदू पंचांग का नौवां महीना मार्गशीर्ष माह कहा जाता है. यह माह भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित माना जाता है.
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Margashirsha Month 2024 Shri Krishna Chalisa: सनातन धर्म दुनिया की प्राचीनतम संस्कृति है, जो हजारों साल बाद भी अपने मूल को संजोए हुए है. हिंदू पंचांग में वर्ष के कुल 12 महीने माने जाते हैं. इनमें से 9वां महीना मार्गशीर्ष माना जाता है. इसे अगहन का महीना भी कहा जाता है. यह महीना नवंबर और दिसंबर के मध्य में आता है. इस बार यह महीना 16 नवंबर को शुरू हो चुका है और इसका समापन 25 दिसंबर को होगा.
भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित माह
धार्मिक विद्वानों के मुताबिक, यह महीना भगवान श्रीकृष्ण की आराधना के लिए समर्पित है. इस दौरान कान्हा जी की पूजा अर्चना कर उनका नाम सिमरन किया जाता है. कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि 'मैं ही मार्गशीर्ष हूं' यानी बंसी वाले ने संकेत कर दिया था कि मार्गशीर्ष माह में मैं ही पृथ्वी पर मौजूद रहता हूं. ज्योतिष शास्त्रियों के मुताबिक अगर अगहन माह में प्रतिदिन श्रीकृष्ण चालीसा का पाठ किया जाए तो पूरे परिवार को इसके लाभ मिलते हैं. उनके बिगड़ रहे काम अपने आप बनने लग जाते हैं.
प्रतिदिन करें श्रीकृष्ण चालीसा का वंदन
जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।
जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।
जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नट-नागर नाग नथैया।
कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।
आओ दीनन कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरी तेरी।
होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो।
आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।
मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
रंजित राजिव नयन विशाला।
मोर मुकुट वैजयंती माला॥
कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।
कटि किंकणी काछन काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे।
छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।
आओ कृष्ण बाँसुरी वाले॥
करि पय पान, पुतनहि तारयो।
अका बका कागासुर मारयो॥
मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला।
भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई।
मसूर धार वारि वर्षाई॥
लगत-लगत ब्रज चहन बहायो।
गोवर्धन नखधारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।
मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो।
कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।
चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा।
सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहारयो।
कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।
उग्रसेन कहं राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो।
मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी।
लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भिन्हीं तृण चीर सहारा।
जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥
असुर बकासुर आदिक मारयो।
भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥
दीन सुदामा के दुःख टारयो।
तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे।
दुर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखि प्रेम की महिमा भारी।
ऐसे श्याम दीन हितकारी॥
भारत के पारथ रथ हांके।
लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाये।
भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥
मीरा थी ऐसी मतवाली।
विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा सांप पिटारी।
शालिग्राम बने बनवारी॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो।
उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करी तत्काला।
जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।
दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहिं वसन बने नन्दलाला।
बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥
अस नाथ के नाथ कन्हैया।
डूबत भंवर बचावत नैया॥
सुन्दरदास आस उर धारी।
दयादृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो।
क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै।
बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)