Ramayan Story: लंका के सुबेर पर्वत पर आखिर श्री राम ने सेना के साथ क्यों डाला डेरा,रामकथा में जानें
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Ramayan Story: लंका के सुबेर पर्वत पर आखिर श्री राम ने सेना के साथ क्यों डाला डेरा,रामकथा में जानें

Ramayan Story in Hindi: पत्नी मंदोदरी और पुत्र प्रहस्त ने सीता को लौटा कर सारा विवाद खत्म करने का सुझाव लंकाधिपति रावण को दिया किंतु उसने किसी की एक न सुनी और दरबार में मंत्रियों से संभावित युद्ध की मंत्रणा करने के बाद सीधे अपने महल में पहुंच गया जहां वह किन्नरों के गायन और अप्सराओं के नृत्य में डूब गया. इधर सुबेल पर्वत पर श्री राम ने सेना सहित डेरा डाला और प्रकृति का आनंद लेने लगे.      

 

Ramayan Story: लंका के सुबेर पर्वत पर आखिर श्री राम ने सेना के साथ क्यों डाला डेरा,रामकथा में जानें
Ramayan Story of Ravana Drowned in the Melody of Kinnar & Apsara: रावण को समझाने का उसकी पत्नी मंदोदरी ने लाख प्रयास किया कि सीता को लौटा कर अपनी लंका को सुरक्षित कर लीजिए किंतु रावण ने एक न सुनी और वह सीधे दरबार में जाकर अपने मंत्रियों से संभावित युद्ध की रणनीति का परामर्श करने पहुंच गया. दरबार में मंत्री पद पर सुशोभित राक्षसों ने लंबी चौड़ी डींगे मारते हुए कहा कि श्री राम के पास तो वानर रीछ आदि की सेना है जो वास्तव में राक्षसों का आहार हैं. इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है इन लोगों को तो राक्षस यूं ही खत्म कर डालेंगे. इस पर रावण के पुत्र प्रहस्त ने अपने पिता को नीतिगत बात बताते हुए कहा कि इन राक्षसों का बल उस समय कहां चला गया था जब एक वानर आया और पूरी लंका को जला कर चला गया. उसने अपने पिता लंकाधिपति रावण से कहा कि वह श्री राम को सीता लौटा दें तो शायद युद्ध ही न हो. इससे रावण ने क्रोधित होते हुए प्रहस्त को फटकारा तो वह अपने घर को लौट गया. गोस्वामी तुलसीदास जी राम चरित मानस में लिखते हैं कि हित की बात किसी पर वैसे ही असर करती है जैसे मृत्यु शैय्या पर लेटे हुए रोगी पर दवा का कोई प्रभाव नहीं होता है. रावण पर प्रहस्त की बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह अपनी बीसों भुजाओं को देखता हुआ महल में चला गया. महल में सारे तनाव भूल कर सजी महफिल में पहुंचा जहां ताल पखावज और वीणा की ध्वनि के बीच किन्नर गाने लगे और अप्सराएं नाचने लगीं.
 
प्रभु श्री राम ने वानरराज सुग्रीव की गोद में सिर रख दिया
 
इधर लंका के महल में रावण राग रंग में मस्त है तो सुबेल पर्वत पर श्री राम बड़ी भारी सेना के पहुंचे. पर्वत के एक ऊंचे. परम रमणीय, समतल और विशेषरूप से उज्जवल शिखर को देखकर लक्ष्मण जी ने अपने हाथों से पेड़ों के कोमल पत्ते और सुंदर फूल एक स्थान पर सजा दिए, उसके ऊपर मृगछाला बिछा दी जिस पर श्री रघुनाथ जी को विराजमान कर दिया गया. प्रभु श्री राम ने वानरराज सुग्रीव की गोद में अपने सिर रख दिया, उन्होंने बाएं ओर धनुष तथा दाएं ओर तरकस रख दिया. विभीषण जी भी उनके कानों से लगकर सलाह कर रहे हैं. परम भाग्यशाली युवराज अंगद और हनुमान जी प्रभु के पैरों को दबा रहे हैं. लक्ष्मण जी धनुष बाण लिए पीछे की ओर मौजूद हैं.
 
श्री राम ने उदित होते चंद्रमा को देख सबसे किया सवाल
 
तुलसीदास जी ने अपनी कथा में वहां के सुंदर दृश्य का वर्णन करते हुए लिखा कि पूर्व दिशा की ओर से उदित होते चंद्रमा को देख कर प्रभु श्री राम ने कहा कि देखो चंद्रमा किस तरह सिंह के समान निडर है. आकाश में बिखरे हुए तारे मोतियों के समान हैं जो रात्रि रूपी स्त्री का श्रृंगार है. प्रभु ने आसपास खड़े लोगों की ओर इशारा करते हुए पूछा कि चंद्रमा में जो कालापन है, वह क्या है, आप लोग अपने तरीके से इसके बारे में बताएं.

 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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