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Ram Vanvas story in hindi: अपने पिता महाराज दशरथ के वचन को निभाने के लिए जब प्रभु श्रीराम वनवास पर निकले तो वे काफी समय तक अपनी पत्नी सीता जी और भाई लक्ष्मण जी के साथ चित्रकूट में रहे. कुछ समय के बाद उन्हें लगा कि धीरे-धीरे यहां पर लोग मेरा परिचय जान गए हैं इसलिए आने जाने वालों की संख्या बढ़ रही है. यदि यहां पर अधिक भीड़ हो गई तो यहां के ऋषि मुनियों को बड़ी परेशानी होगी. बस इसी विचार से उन्होंने चित्रकूट छोड़ने का निर्णय कर लिया और वहां के मुनियों से एक एक कर भेंट करते हुए विदा की आज्ञा मांगी.
इसी क्रम में जब वे अत्रि मुनि के आश्रम में पहुंचे और जैसे ही मुनिश्री को प्रभु के आगमन की जानकारी हुई तो खुशी में आश्रम के द्वार की ओर दौड़ने लगे. महामुनि को दौड़ते हुए आते देख प्रभु भी बड़े-बड़े पग भरते हुए उनके नजदीक पहुंचे. जैसे ही प्रभु ने उन्हें दंडवत प्रणाम किया, मुनि ने उन्हें उठाकर हृदय से लगा लिया और प्रेम के आंसू बह निकले, इन आंसुओं से दोंनो भाई (राम व लक्ष्मण) नहा से गए.
श्री राम को माता जानकी और लक्ष्मण जी के साथ मुनि निहारते ही रहे. फिर वे उन्हें आदरपूर्वक अपने आश्रम के भीतर ले गए. पूजन करने के बाद मुनि जी ने उन्हें खाने के लिए मूल और फल दिए. आसन पर विराजमान प्रभु को देख मुनिश्रेष्ठ हाथ जोड़ कर उनकी स्तुति करते हुए बोले, 'हे भक्तवत्सल, हे कृपालु, हे कोमल स्वभाव वाले, मैं आपको नमस्कार करता हूं. आप नितांत सुंदर श्याम, आवागमन रूपी सागर को मथने के लिए मंदराचल रूप, फूले हुए कमल के समान नेत्रों वाले मद आदि दोषों को छुड़ाने वाले हैं.' मुनि ने आगे कहा कि आप तरकस और धनुषबाण धारण करने वाले तीनों लोकों के स्वामी हैं. आप महादेव जी के धनुष को तोड़ने वाले, मुनिराजों और संतों को आनंद देने वाले तथा देवताओं के शत्रु असुरों के समूह का नाश करने वाले हैं. अत्रि मुनि ने कई प्रकार से उनकी प्रशंसा करते हुए आग्रह किया कि वे अपने चरण कमलों की भक्ति प्रदान करें.
इधर सीता जी ने अत्रि मुनि की पत्नी अनसूया जी के चरण पकड़ कर भेंट की, उन्होंने सीता जी को आशीष देते हुए अपने बगल में बैठा लिया. इसके बाद उन्होंने स्त्री धर्म का उपदेश देते हुए कहा, हे राजकुमारी, माता पिता भाई सभी हित करने वाले होते हैं किंतु ये सब एक सीमा तक ही सुख देते हैं. हे जानकी, पति तो असीम सुख देने वाला होता है. वह स्त्री अधम है जो ऐसे पति की सेवा नहीं करती है.
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उन्होंने कहा धैर्य, धर्म, मित्र और स्त्री, इन चारों की विपत्ति के समय ही परीक्षा होती है. उन्होंने कहा कि वृद्ध, रोगी, मूर्ख, निर्धन, नेत्रहीन, बहरा, क्रोधी और अत्यंत ही दीन पति का अपमान करने से स्त्री यमपुर में भांति भांति के दुख पाती है. माता अनसूया ने कहा, स्त्री के लिए एक ही व्रत, नियम और धर्म है कि वह शरीर, वचन और मन से पति के चरणों में प्रेम करे. उन्होंने स्त्री के धर्म की व्याख्या करते हुए कहा कि वह नारी श्रेष्ठ है जो अपने पति के अलावा पराये पुरुष को स्वप्न में भी नहीं देखतीं. दूसरी पतिव्रता वे हैं जो पराये पुरुष को अपने भाई, पिता या पुत्र के समान देखती हैं, तीसरी वे हैं जो अपने पति को धोखा देकर पराये पति से प्रेम करती हैं वह तो घोर नरक में पड़ी रहती हैं. चौथी वे होती हैं जो पति के प्रतिकूल चलती हैं. पतिव्रत धर्म के कारण ही तुलसी जी पवित्र हैं. जानकी जी ने उनसे जीवन की सीख प्राप्त कर परम सुख पाया और उनके चरणों में सिर नवाकर आशीर्वाद लिया.