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Ramayan Story of Hurdle in Sri Ram Rajyabhishek: श्री राम के राज्याभिषेक का निर्णय होने के बाद गुरु वशिष्ठ स्वयं उनके महल में पहुंचे उन्हें बताया कि किस तरह से उपवास हवन आदि का संयम करना है ताकि विधाता इस कार्य को कुशलता पूर्वक सम्पन्न करा दें. गुरु जी ने श्री राम को युवराज के दायित्व बताते हुए कहा कि उन्हें इसके लिए तैयार रहना है. गुरुजी के जाते ही श्री राम विचार मग्न हो गए कि वह तो अपने अन्य तीनों भाइयों के साथ ही खेलते कूदते और पढ़ते हुए बड़े हुए हैं फिर युवराज के पद के लिए उन्हें ही क्यों चुना गया है. यह तो बड़ी अजीब बात है कि सूर्यवंश में सिर्फ बड़े पुत्र को ही युवराज बनाया जाता है.
तभी लक्ष्मण जी ने उनके पास पहुंच कहा कि पूरा नगर इस बात का इंतजार कर रहा है कि कब सीता जी सहित श्री रामचंद्र सुवर्ण सिंहासन पर विराजेंगे, जिसे देख कर उनके उनके नेत्र तृप्त होंगे. पूरे नगर में राज्याभिषेक की तैयारियों के बीच भरत जी का इंतजार होने लगा कि वह भी इस अवसर पर उपस्थित होकर अपनी आंखों से यह दृश्य देख आनंदित हों.
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राज्याभिषेक की तैयारियों के बीच देवता सरस्वती जी के पास पहुंचे और उनके पैर पकड़ कर कुचक्र रचने का आग्रह किया. देवताओं ने सरस्वती जी से कहा कि वे ऐसा कुछ करें कि श्री राम चंद्र जी राज्य को त्याग कर वन को चले जाएं ताकि देवताओं के सारे कार्य सिद्ध हो जाएं. देवताओं की बात सुनने के बाद भी सरस्वती जी तैयार नहीं हुईं क्योंकि वे जानती थीं कि यह उचित नहीं है, तब देवताओं ने पुनः आग्रह करते हुए कहा कि आप तो जानती हैं कि श्री रघुनाथ जी तो विषाद और हर्ष से रहित हैं, आप श्री राम जी के प्रभाव को भी जानती हैं. जीव तो अपने कर्मवश ही दुख और सुख का भागी होता है इसलिए आप अयोध्या जाकर देवताओं के हित में कार्य कीजिए.
सरस्वती जी का मन तो बिल्कुल भी नहीं था किंतु देवताओं का आग्रह और श्री राम जी के वन में जाने के बाद दुष्ट राक्षसों के वध का विषय जान कर वह हर्षित होते हुए अयोध्या पहुंच गईं. यहां आकर उन्होंने सबसे पहले महारानी कैकेयी की मंदबुद्धि दासी को तलाशा और उसकी बुद्धि को फेर (बदल) कर चली गईं. मंथरा में नगर की सजावट और बधाई गीतों को सुन लोगों से पूछा कि यह कैसा उत्सव हो रहा है और जैसे ही जनमानस ने प्रसन्नता पूर्वक बताया कि श्री राम के राज्याभिषेक की तैयारियां हो रही हैं तो उसका हृदय जल उठा.
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दासी मंथरा विचार करने लगी कि किस तरह यह काम रातो रात ही बिगड़ जाए और राम का राज्याभिषेक न होने पाए. तभी अचानक उसके मन में एक विचार आया और वह दुखी उदासी का चेहरा बना कर भरत जी की माता कैकेयी के भवन में पहुंची. महारानी कैकेयी ने हंसकर कहा कि तू क्यों उदास है तो भी वह कुछ नहीं बोली और त्रिया चरित्र करते हुए लंबी लंबी सांस लेने लगी.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)