Shiv Mandir: केदारनाथ में बैल के पिछले भाग की होती है पूजा, जानें कारण और भगवान शिव से जुड़े इसके पीछे की रोचक कहानी
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Shiv Mandir: केदारनाथ में बैल के पिछले भाग की होती है पूजा, जानें कारण और भगवान शिव से जुड़े इसके पीछे की रोचक कहानी

Kedarnath Temple: हिंदू धर्म में कई ऐसी पौराणिक कथा है जिनका सीधा संबद्ध सत्य घटनाओं से जुड़ा हुआ है. ठीक वैसी ही एक पौराणिक कथा आपके सामने लेकर आए हैं, जिसमें पूरे भारत में भगवान शिव का एक मात्र ऐसा शिवलिंग है जहां पर बैल के पिछले भाग की पूजा की जाती है.

 

kedarnath mandir story

Kedarnath Dham Jyotirlinga ki Kahani: हिंदू धर्म में केदारनाथ का अपना एक विशेष महत्व है. सावन महीने में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है. बता दें कि यहां पर साल में मात्र 6 महीने के लिए कपाट खोले जाते हैं. बाकी के महीनों में श्रद्धालुओं के लिए कपाट बंद कर दिए जाते हैं. लेकिन इस दौरान भी मंदिर में भगवान की पूजा आराधना चलती रहती है.
 
केदारनाथ में हर साल लाखों श्रद्धालुओं का हुजूम देखने को मिलता है. सावन महीने में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग का महत्व और भी बढ़ जाता है. मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग के मात्र दर्शन भर से ही भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. भारत के अलग अलग हिस्सों के अलग अलग ज्योतिर्लिंगों का अपना खास महत्व है. इन्हीं में से एक ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा और उसके महत्व के बारे में आज जानेंगे.

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केदारनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा और महत्व

हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद पांडवों पर अपनों की हत्या का दोष लग गया था. जिसके बाद इस पाप से मुक्ति पाने के लिए पांडवों ने भगवान शिव के शरण में जाने के बारे में सोचाए जिसके लिए वह हिमालय की ओर निकल पड़े. बता दें कि इस दौरान भगवान शिव अंतर्ध्यान हो कर केदारनाथ चले गए. जिसके परिणामस्वरूप पांडव भी उनका पीछा करते हुए केदारनाथ पहुंच गए. 

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भगवान शिव उन्हें चकमा देने के लिए बैल का रूप धारण कर लिएए जिसके बाद वह पशुओं के बीच चले गए. पांडवों में से भीम ने उन्हें पहचान लिया और अपने दोनों पैरों से केदार पर्वत को घेर लिया. भीम के इस रूप को देख सभी पशु उनके पैरों के बीच से बाहर की ओर निकल आए पर भगवान शिव जो बैल का रूप धारण किए हुए थे वह वहीं रुक गए. 

जिसके बाद  बैल के रूप में ही भगवान शिव धरती में समाने लगे. तुरंत ही भीम ने बैल  के पिछले भाग को अपने हाथों से कस कर पकड़ लिया. पांडवों की इस भक्ति को देख भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देने के बाद दोष से मुक्त कर दिया. यही कारण है कि यहां पर भगवान शिव की बैल पीठ की आकृति के रूप में पूजा की जाती है.
बता दें कि बैल  का मुख नेपाल में निकला था, जहां पर आज भी पशुपतिनाथ के रूप में भगवान शिव की पूजा आराधना की जाती है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

 

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