तुलसी रामायण: रामचरित मानस एहि नामा… सुनने से मन की चिंताएं हो जाती हैं शांत!
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तुलसी रामायण: रामचरित मानस एहि नामा… सुनने से मन की चिंताएं हो जाती हैं शांत!

Tulsi Ramayan: गोस्वामी श्री तुलसीदास कृत रामचरितमानस हिंदी भाषा की विलक्षण रचना है. रामचरितमानस एक धार्मिक काव्य ग्रंथ है. इसके अध्ययन व पाठ से लोग आध्यात्मिक लाभ लेते हैं. मानस की हर पंक्ति मंत्र है यदि इसको समझकर अपने जीवन में उतार लेते हैं तो ईश्वर की बेशुमार कृपा व्‍यक्ति पर बरसती है. हम यहां पर क्रम से सभी दोहों, सोरठों, चौपाइयों एवं छंदों के अर्थ व भाव को समझाने का प्रयास करेंगे. सबसे पहले हम लोग तुलसी बाबा के भावों को समझते हुए बालकाण्ड में उतरते हैं… 

फाइल फोटो

Tulsi Ramayan in hindi: रामचरित मानस की विधिवत शुरुआत होती है तीर्थराज प्रयाग से. गोस्वामी तुलसीदास जी भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती का स्मरण करने के बाद राम जी के चरण कमलों को हृदय में लाते हैं, फिर उनका प्रसाद पाकर कथा प्रारंभ करते हैं.

भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। 
तिन्हहिं राम पद अति अनुरागा।।
तापस सम दम दया निधाना।
परमारथ पथ परम सुजाना ।।

भरद्वाज मुनि प्रयाग में बसते हैं, उनका राम जी के चरणों में अत्यन्त प्रेम है. वे तपस्वी, निगृहीतचित्त, जितेंद्रिय, दया के निधान हैं. वे भलीभांति जानते हैं कि जीवन का परम अर्थ क्या है और उस परमार्थ के मार्ग पर कैसे चला जाता है.

माघ मकरगत रबि जब होई।
तीरथपतिहि आव सब कोई।।
देव दनुज किंनर नर श्रेनीं।
सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं।। 

माघ महीने में जब सूर्य मकर राशि पर जाते हैं तब इस पुनीत अवसर पर देवता, दैत्य, किंनर और मनुष्यों के समूह तीर्थराज प्रयाग आकर आदरपूर्वक त्रिवेणी में स्नान करते हैं.

पूजहिं माधव पद जलजाता। 
परसि अखय बटु हरषहिं गाता।।
भरद्वाज आश्रम अति पावन। 
परम रम्य मुनिबर मन भावन।।

श्री वेणीमाधव जी के चरणकमलों को पूजते हैं. अक्षयवट इतना पुनीत है कि उसका स्पर्श करते ही उनके शरीर पुलकित हो उठते हैं. मुनियों के मन को भाने वाला भरद्वाज जी का आश्रम बहुत पुनीत और रमणीक है. 

तहां होहि मुनि रिषय समाजा। 
जाहिं जे मज्जन तीरथराजा।।
मज्जहिं प्रात समेत उछाहा। 
कहहिं परस्पर हरि गुन गाहा।।

तीर्थराज में स्नान के लिए आने वाले ऋषियों का समाज इसी आश्रम में रुकता है. ये ऋषि-मुनि बहुत सबेरे उठकर गंगा, यमुना और सरस्वती के पावन जल में स्नान करते हैं और फिर एक दूसरे को प्रभु हरि के गुण बताने लगते हैं. 

ब्रह्म निरूपन धरम विधि बरनहिं तत्व बिभाग।
कहहिं भगति भगवंत कै संजुत ज्ञान बिराग।।

वे सभी अपने-अपने अनुभव के आधार पर एक दूसरे को बताते हैं कि ब्रह्म कौन है, कैसा है, धर्म क्या है, मूल तत्व की कितनी शाखाएं हैं. भगवान की भक्ति क्या होती है. उसे किस प्रकार किया जाता है, ज्ञान वैराग्य की कथाएं भी कहते हैं.

एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं। 
पुनि सब निज निज आश्रम जाहीं
प्रति सबंत अति होहि अनंदा। 
मकर मज्जि गवनहिं मुनिबृंदा।।

इसी दिनचर्या के साथ ऋषिगण पूरे माघ महीने त्रिवेणी में स्नान के बाद अपने अपने आश्रम चले जाते हैं. यहां हर साल ऋषि मुनि चारों ओर उमड़ते घुमड़ते आनंद के समुद्र में गोते लगाकर जाते हैं. 

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