आज सनातन धर्म के शीर्ष विद्वान महर्षि वाल्मीकि (Maharshi Valmiki) की जयंती है. सनातन धर्म परंपरा की भक्ति व ज्ञानमार्गी दोनों ही शाखाओं के महान ऋषियों में महर्षि वाल्मीकि का नाम आदर से लिया जाता है.
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नई दिल्ली: सनातन धर्म के शीर्षस्थ विद्वान महर्षि वाल्मीकि (Maharshi Valmiki) की आज जयंती है. सनातन धर्म परंपरा की भक्ति व ज्ञानमार्गी दोनों ही शाखाओं के महान ऋषियों में महर्षि वाल्मीकि का नाम आदर से लिया जाता है. वैष्णव संप्रदाय में उन्हें विष्णु भगवान (Lord Vishnu) का प्रिय कहा गया है और उन्हें ही राम नाम को पूरी दुनिया में पहुंचाने का श्रेय जाता है.
डाकू रत्नाकर और हृदय परिवर्तन
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक महर्षि वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप (Maharshi Kashyap) और अदिति के पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के घर हुआ था. लेकिन बचपन में ही उन्हें एक भील ने चुरा लिया था. इसीलिए उनका लालन पालन भील परिवार में हुआ और वो उस परिवार की परंपरा के मुताबिक डाकू बन गए. उन्हें भील परिवार ने रत्नाकर (Ratnakar) नाम दिया था. उनके आतंक का आलम यह था कि उनके इलाके से होकर लोग गुजरने से भी डरते थे. एक बार उन्होंने जंगल से गुजर रहे नारद मुनि को बंधक बना लिया था.
इसी दौरान नारद मुनि ने उन्हें खूब फटकार लगाई और पूछा कि क्या तुम्हारे इस काम से अर्जित पाप का भागीदार तुम्हारा परिवार बनना चाहेगा या इन पापों की सजा तुम्हें अकेले ही भुगतनी पड़ेगी? नारद मुनि के इस सवाल का जवाब उनके पास नहीं था. उन्होंने नारद मुनि को वहीं पर बंधक अवस्था में छोड़कर घर का रुख किया, लेकिन परिवार ने पाप में भागीदार बनने से सबने इनकार कर दिया. तब उनका हृदय परिवर्तन हुआ. इसके बाद उन्होंने पाप का मार्ग छोड़ दिया. एक कथा के मुताबिक हनुमान (Hanuman) जी ने उन्हें राम राम का पाठ सिखाया, लेकिन वो मरा मरा ही बोलते थे. लेकिन निरंतरता की वजह से मरा शब्द बारंबार आने से वो राम में परिवर्तित होने लगा और महर्षि वाल्मीकि को राम नाम का बोध हुआ.
वाल्मीकि रामायण की कथा
कहा जाता है कि महर्षि वाल्मीकि भगवान राम के समय के थे और उन्होंने रामायण में भगवान राम के जीवन को उकेरा है. रामचरितमानस (Ramcharitamanas) के आखिरी अध्याय में भी इसका उल्लेख है. खासकर लव-कुश के जन्म और माता सीता को आश्रय देने की कथा में.
भारत में वाल्मीकि जयंती का अहम स्थान
महर्षि वाल्मीकि की जयंती 31 अक्टूबर को मनाई जा रही है. आज के दिन श्रद्धालु महर्षि वाल्मीकि से आशीर्वाद लेते हैं और पूरे परिवार को सद्ज्ञान की प्राप्ति का फल मांगते हैं. देश के अलग अलग हिस्सों में शोभायात्रा भी निकाली जाती है.