Islam Teachings: सच्चे और ईमानदार लोगों को आज समाज का सबसे बेवकूफ शख्श माना जाता है. धोखा, मक्कारी, अय्यारी, वादों पर खरा न उतरना, बात बात में झूठ बोलना इस दौर की खासियतों में शामिल है. इसलिए ऐसा काम करने वालों को समय रहते संभल जाने की जरूरत बताई गई है.
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Who is munafiq: जिंदगी में दोहरा किरदार निभाने वालों को लेकर इस्लाम में साफ हिदायत दी गई है. ऐसा करने वालों को मुनाफिक कहा जाता है. दोहरा चरित्र निभाने वाले लोग यानी उनके मुंह पर कुछ होता है पीठ पीछे कुछ और चल रहा होता है. कुरान में सूरह हज की आयत नंबर 38 में कहा गया है कि यकीनन सच्चे लोगों के दुश्मनों को अल्लाह खुद हटा देता है. दरअसल बुरा काम करने वाला ना शुकरा अल्लाह को हरगिज पसंद नहीं है. अमानत में खयानत करने को नबी अकरम ने निफाक की अलामत करार दिया है. निफाक ऐसी खतरनाक बीमारी है कि आदमी इसमें डूबा रहता है इसके बावजूद उसे इस बात का एहसास नहीं होता है.
मुनाफिक के लक्षण
जब कोई आदमी दोहरा चरित्र जीता है तो उसमें चुगलखोरी, पीठ पीछे साज़िश, मुंह पर दोस्ताना और दिलों में नफरत जैसी चीजें अपने आप आ जाती हैं. इसके चक्कर में फसे शख्स को खुद के बारे में ये घमंड होने लगता है कि वो बहुत होशियार है इसलिए बहुत बड़ा काम कर रहा है. लोगों की मदद कर रहा है. समाज की सेवा कर रहा है. ऐसे लोगों के बारे में कुरान में भी बताया गया है. कुछ इस्लामिक स्कॉलर्स का मानना है कि क़ुरान पढ़ने वाली कौम का एक बड़ा हिस्सा इस बीमारी का सबसे ज़्यादा शिकार है. क्योंकि जरुरतों के मुताबिक रिश्तों को अहमियत दी जाती है. किसी भी शख़्स की खामियों, कमियों और बुराईयों को नजरअंदाज करके उसकी सामाजिक हैसियत, ओहदा, दौलत और रुतबे को अहमियत दी जाती है.
समाज में क्या चल रहा है?
मोमिन, मेहनतकश, ईमानदार और सच्चे शख्श को हमारे समाज का सबसे बेवकूफ शख्श बना दिया गया है. धोखा, मक्कारी, अय्यारी, वादे पर खरा न उतरना, बात बात में झूठ बोलना इस दौर की ख़ासियतों में शामिल हो गया है. दूसरों को अच्छी अच्छी बातों का रात दिन पाठ पढ़ाया जाता है. लेकिन उन्ही बातों पर ख़ुद अमल नहीं किया जाता. अपने बच्चों को झूठ न बोलने का सबक़ दिया जाता है. लेकिन ख़ुद झूठ बोलना आदत बनी चुकी है. दूसरों को करप्शन न करने की हिदायत तो बड़ी आसान है. लेकिन अपने आप को करप्शन से दूर रखना मुश्किल है. दूसरों को कह दिया जाता है कि अपने मां बाप से अच्छा सुलूक करो. लेकिन खुद का रवैय्या अपने मां बाप के लिए बहुत ही ख़राब होता है. जुबान से अल्लाह की नाम तो लिया जाता है. लेकिन उसकी सीख पर अमल नहीं होता. अपने हुज़ूर की शिक्षाओं को पढ़ते हैं. लेकिन उनकी सुन्नतों पर अमल नहीं करते. लोग कुरान को अपनी किताब तो मानते हैं लेकिन कुरान में जो लिखा है उसे नहीं मानते. इसी को मुनाफिक़ कहते हैं और ऐसे ही लोगों को दुनिया में कामयाब समझा जा रहा है.
मस्जिदों में चंदा देना. मदरसों की मदद करना. यतीमों को सहारा देना. विधवाओं की मदद इस नीयत से नहीं की जाती कि ये हमारा दीनी और सामाजिक फर्ज है. ये काम बल्कि इस नीयत से किए जाते हैं कि इससे अपनी हैसियत और दौलत का प्रदर्शन होगा. आज बहुत से लोगों के दिल में कहीं भी किसी के लिए रहम नहीं है. बस सब कुछ दिखावे के लिए हो रहा है. ये सब चीजें ही मुनाफ़िक़त का हिस्सा होती हैं. ऐसे लोगों का इबादत और अक़ीदत से कुछ लेना देना नहीं है. लोग ये भूल जाते हैं कि परवरदिगार हमारे दिलों के हाल जानता है. किसको ये याद है कि हमारा अल्लाह हमारी नीयतों को समझता है. हम तो अपनी धुन में मस्त हैं. ऐसे में कहा जाता है कि अगर हमारे दिल में ये भरम आ गया है तो आगे हम चाहे जितने सजदे कर लें. वो सजदा नहीं हमारे नसीब का टक्कर ही साबित होगा. हम जितने रोजे रख लें वो फाका रहेगा. हम चाहे जितना कुरान पढ़ लें. इसका कोई फायदा हमें नहीं मिलने वाला. क्योंकि हमारी नीयत में खोट है.
क्या कहता है कुरान
हुज़ुरे अकरम (स.अ.) ने फ़रमाया कि अगर चार चीजें किसी में पाई जाए तो वो मुनाफ़िक़ होगा. पहला जब अमानत दी जाए तो उसमे ख़यानत करे. यानी किसी ने कोई क़ीमती चीज़ आपको भरोसे पर दी और आप या तो उसे लेकर मुकर जाएं या उसमे चोरी कर लें. दूसरी बात ये कि जब बात करे तो झूठ बोले. तीसरी बुराई ये है कि वादा करें तो उसे तोड़े नहीं. चौथी अलामत ये बताई गई है कि जब किसी से झगड़ा करे तो गालिया बकने लगें. इसलिए अल्लाह ने क़ुरान में ऐसे लोगों का पर्दाफ़ाश किया है. उनके ऊपर चढ़ी क़लई को खोल कर रख दिया है और लोगों को ऐसी हरकत करने वालों से सावधान रहने की तालीम दी गई है.
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