Bhagwan Shiv ki Pauranik Katha: भगवान शिव का श्रृंगार काफी खास माना जाता है. भगवान शिव के गले में सांपों की माला, सिर पर गंगा और मस्तक पर चंद्रमा विराजमान हैं. क्या आप जानते हैं भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा क्यों विराजमान हैं, इसके पीछे का क्या कारण है.
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Lord Shiva Story: महाकाल, आदिदेव, किरात, शंकर, चन्द्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय, त्रयम्बक, महेश, विश्वेश समेत कई नामों से भगवान शिव कहलाए जाते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवों के देव महादेव की पूजा करने से सुख-समृद्धि, धन-दौलत का आशीर्वाद मिलता है. भोलेनाथ की कृपा जिस भी व्यक्ति पर रहती है उसको सफलता जरूर मिलती है.
भगवान शिव के मस्तक पर क्यों विराजते हैं चंद्रमा?
भगवान शिव का श्रृंगार काफी खास माना जाता है. भगवान शिव के गले में सांपों की माला, सिर पर गंगा और मस्तक पर चंद्रमा विराजमान हैं. क्या आप जानते हैं भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा क्यों विराजमान हैं, इसके पीछे का क्या कारण है. शिव पुराण में इसके बारे में बताया गया है. आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह.
भगवान शिव ने किया विष का पान
शिव पुराण में वर्णित एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब समुद्र मंथन से विष निकला तो सभी देवी-देवता चिंतित हो गए थे. तब भगवान शिव ने विष का पान कर सृष्टि की रक्षा की थी. शंकर भगवान ने इस विष को गले से नीचे नहीं उतारा था इस कारण से उनका कंठ नीला पड़ गया. इसके बाद से उन्हें नीलकंठ के नाम से भी जाना जाने लगा.
इस कारण से शिव जी के मस्तक पर हैं चंद्रमा
समुंद्र मंथन में से चंद्रमा भी उत्पन्न हुआ था. चंद्रमा अपनी शीतलता के लिए जाना जाता है, और सृष्टि में संतुलन बनाए रखने में मदद करता है. देवताओं का मानना था कि चंद्रमा को धारण करने से भगवान शिव के शरीर की शीतलता बनी रहेगी. भगवान शिव ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार कर ली और अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण कर लिया. इसके बाद से चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विराजते हैं,
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दूसरी कहानी
क्षय रोग का श्राप
पौराणिक कथाओं के अनुसार, चंद्रमा देव की 27 पत्नियां थीं, जिन्हें नक्षत्र भी कहा जाता है. इनमें से रोहिणी नामक नक्षत्र चंद्रमा के सबसे करीब थी. इससे बाकि पत्नियां ईर्ष्या से जलने लगीं और उन्होंने अपने पिता प्रजापति दक्ष से शिकायत कर दी. गुस्से में आकर दक्ष ने चंद्रमा को "क्षय रोग" का श्राप दे दिया. इस श्राप के कारण चंद्रमा की कलाएं धीरे-धीरे कम होने लगीं.
चंद्रमा ने की शिव जी की अराधना
तब चंद्रमा ने देवर्षि नारद जी ने उनकी सहायता की. उन्होंने चंद्रमा को भगवान शिव की आराधना करने का सुझाव दिया. चंद्रमा ने तुरंत भगवान शिव की तपस्या शुरू कर दी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन पर दया की और उनका श्राप दूर कर दिया. इसके बाद चंद्रमा के अनुरोध पर शिवजी ने उन्हें अपने शीश पर धारण कर लिया.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)