दिवाली पर इस वजह से की जाती है मां लक्ष्मी की पूजा, बनते हैं सभी बिगड़े काम
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दिवाली पर इस वजह से की जाती है मां लक्ष्मी की पूजा, बनते हैं सभी बिगड़े काम

 इस साल 14 नवंबर को दिवाली (Diwali) का त्योहार मनाया जाएगा. दिवाली के दिन देवी लक्ष्मी और भगवान श्रीराम की प्रमुख तौर पर पूजा की जाती है.

दिवाली में मां लक्ष्मी की पूजा का महत्व

नई दिल्ली: हिंदू धर्म में दिवाली (Diwali) के त्योहार का विशेष महत्व है. दिवाली का त्योहार (Festival) काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन देवी लक्ष्मी, श्रीगणेश और भगवान श्रीराम की पूजा की जाती है. इस साल 14 नवंबर को दिवाली का त्योहार मनाया जाएगा. माना जाता है कि दिवाली के दिन मां लक्ष्मी धरतीलोक पर आती हैं और अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं. आज के अपने आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि आखिर क्यों मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है.

  1. हिंदू धर्म में दिवाली के त्योहार का विशेष महत्व है
  2. इस दिन मुख्य तौर पर मां लक्ष्मी और श्रीगणेश की पूजा की जाती है
  3. इसके पीछे एक पौराणिक कथा काफी प्रचलित है

लक्ष्मी पूजा का महत्व
एक पौराणिक कथा के मुताबिक, एक गांव में साहूकार रहा करता था. उसकी बेटी रोजाना पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने के लिए जाती थी. साहूकार की बेटी जिस पीपल पर वह जल चढ़ाने जाती थी, उस पेड़ पर मां लक्ष्मी का वास था. एक दिन लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी को साक्षात दर्शन दिए और कहा कि वे उसकी मित्र बनना चाहती हैं. इसके जवाब में लड़की ने अपने पिता से पूछकर बताने को कहा. वहां से लौटकर साहूकार की बेटी ने सारी बात पिता को बताई. पिता की हां के बाद अगले दिन वह लक्ष्मी जी की मित्र बन गई.

फिर एक दिन लक्ष्मीजी साहूकार की बेटी को अपने घर ले आईं और उसको पकवान खिलाए. इसके बाद लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से पूछा कि वो उन्हें अपने घर पर आने का कब निमंत्रण देगी. लेकिन साहूकार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी इसलिए उसकी बेटी लक्ष्मीजी को बुलाने से घबरा रही थी. एक दिन साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी को अपने घर बुला लिया.

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साहूकार ने अपनी बेटी को बत्ती वाला दीया लक्ष्मी जी के नाम से जलाने के लिए भी कहा. उसी समय एक चील किसी रानी का नौलखा हार लेकर साहूकार के घर आ गया. साहूकार की बेटी ने उस हार को बेचकर अच्छा भोजन बनाया. कुछ देर बाद मां लक्ष्मी भगवान गणेश के साथ साहूकार के घर आईं और साहूकार के स्वागत से प्रसन्न होकर उस पर अपनी कृपा बरसाई.

लक्ष्मी जी की कृपा से साहूकार के पास किसी चीज की फिर कभी कोई कमी न हुई. तब से ही दिवाली पर मां लक्ष्मी और श्रीगणेश का स्वागत-सत्कार करने के लिए दीए जलाने और पूजा करने की परंपरा शुरू हो गई.

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