आसमान में तारे ही तारे फिर भी रात में रोशनी नहीं,जानें- क्या है इसके पीछे का रहस्य
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आसमान में तारे ही तारे फिर भी रात में रोशनी नहीं,जानें- क्या है इसके पीछे का रहस्य

Stars In Universe: आपके मन में सवाल उठता होगा कि रात में असंख्य तारें टिमटिमाते रहते हैं लेकिन उजाला क्यों नहीं होता. आखिर इसके पीछे की वजह क्या है, इस सवाल के बारे में सदियों से मंथन जारी है. कुछ जवाब भी मिले हालांकि रहस्य अभी भी कायम है.

आसमान में तारे ही तारे फिर भी रात में रोशनी नहीं,जानें- क्या है इसके पीछे का रहस्य

No Light in Night: आसमान में असंख्य तारे फिर भी रात में अंधेरा क्यों होता है. इस सवाल का जवाब आज तक रहस्यों के चादर में लिपटा है. यह सवाल इसलिए भी है क्योंकि जब अंधेरे कमरे में छोटे दीए की रोशनी से उजाला भर जाता है तो इतनी बड़ी संख्या में तारों की मौजूदगी से उजाला क्यों नहीं होता है. आखिर इसके पीछे की वजह क्या है. क्या इसका कोई ठोस जवाब है. यहां पर हम इसी रहस्य को समझने की कोशिश करेंगे. लेकिन सबसे पहले आप दिन और रात के विज्ञान को समझिए.

दिन-रात के पीछे का विज्ञान

दरअसल धरती अपने अक्ष पर घूमने के साथ साथ सूरज का चक्कर लगाती है, 365 में सूरज का एक चक्कर धरती लगा लेती है लिहाजा एक साल में 365 दिन होते हैं अगर लीप ईयर हो तो 366 दिन होता है. वहीं सूरज अपने अक्ष पर 24 घंटे में घूम जाती है लिहाजा धरती का वो हिस्सा जो सूरज की रोशनी में आता है उन हिस्सों में दिन और जो हिस्से सूरज की ओट में रहते हैं वहां रात हो जाती है. लेकिन सवाल वही मौजूं है कि अगर रात होती भी है तो भी अंतरिक्ष में असंख्य तारे टिमटिमाते रहते तो राज में प्रकाश क्यों नहीं होता.

 

क्या कहते हैं वैज्ञानिक

इस सवाल के जवाब में शोधकर्ताओं, खगोलविदों की अलग अलग राय है. जो पूरी तरह से व्याख्या कर पाने में सक्षम नहीं है. सवाल यह है कि जब रात में धरती के कुछ हिस्सों पर उजाला नहीं होता तो स्कैंडिनेवियन देशों में तो अंधेरा बहुत ही कम होता है या ना के बराबर है. इस संबंध में एडगर एलन पो नाम के साइंटिस्ट ने बताया कि अंतरिक्ष का घेरा बहुत विशाल है और उसकी वजह से रोशनी हम तक नहीं पहुंच पाती. हालांकि इस तर्क को सही नहीं माना गया. शोध का सिलसिला आगे बढ़ा और 19वीं सदी में यह थ्योरी दी गई कि तारों के चारों तरफ बड़ी मात्रा में धूल होता है और वो धूल प्रकाश की किरणों को सोखने का काम करते हैं. लेकिन यह भी सिद्धांत खरा नहीं उतरा.

इन दोनों सिद्धांत के बाद एक तर्क यह भी पेश किया गया कि दूरी की वजह से प्रकाश की किरणें खुद के वजूद को खो देती हैं और हमारी आंखे उस प्रकाश को महसूस नहीं कर पातीं. इसके साथ ही यह भी कहा गया कि खुद प्रकाश में कोई प्रकाश नहीं होता है. हमें उजाले का अहसास इसलिए होता है कि प्रकाश की किरणों को परावर्तित या अपवर्तित होने के लिए माध्यम की जरूरत होती है. इस संबंध में कुछ लोगों ने दिलचस्प जवाब दिये जैसे हम उजाले का अहसास तभी कर सकते हैं जब उसके कुछ हिस्से को आंख अवशोषित करने का काम करे.

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