Doomsday Clock: प्रलय से दुनिया महज 90 सेकेंड दूर ! वैज्ञानिक बार बार कर रहे हैं आगाह
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Doomsday Clock: प्रलय से दुनिया महज 90 सेकेंड दूर ! वैज्ञानिक बार बार कर रहे हैं आगाह

What is Doomsday Clock:  इसमें दो मत नहीं कि मौजूदा समय में वैश्विक स्तर पर अशांति बनी हुई है. एक तरफ यूक्रेन-रूस जंग तो दूसरी तरफ इजरायल-हमास युद्ध. इन सबके बीच क्लाइमेट चेंज, बॉयोलोजिकल वॉरफेयर का खतरा. इसे देखकर द बुलेटिन ग्रुप ऑफ एटॉमिक साइंस ने प्रलय घड़ी की सुई को मिडनाइट के 90 सेकेंड और करीब कर दिया है.

Doomsday Clock: प्रलय से दुनिया महज 90 सेकेंड दूर ! वैज्ञानिक बार बार कर रहे हैं आगाह

Doomsday Clock News: क्या दुनिया महाविनाश से सिर्फ 90 सेकेंड दूर है. यह हम नहीं कह रहे बल्कि प्रलय घड़ी बता रही है. अब सवाल ये है कि आखिर प्रलय घड़ी क्या है और यह कैसे संकेत दे  रही है कि हम प्रलय के बेहद नजदीक बढ़ रहे हैं. यहां एक सवाल यह भी है आज हम इसकी चर्चा क्यों कर रहे हैं. दरअसल वैश्विक स्तर पर हम जिन भी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं उसके आधार पर प्रलय घड़ी की सुई को एडजस्ट किया जाता है. यानी खतरे को भांप कर इसे आगे पीछे करते हैं. साल की शुरुआत में ही इसे मिडनाइट से सिर्फ 90 सेकेंड पहले एडजस्ट किया गया है. इससे पहले साल 2023 में भी रूस- यूक्रेन युद्ध के बीच संभावित न्यूक्लियर अटैक के चलते एडजस्ट किया गया था.

1947 में हुई थी स्थापना
1947 में  इसकी स्थापना में एटॉमिक बम के ऑर्किटेक्ट जे रॉबर्ट ओपहाइमर और अल्बर्ट आइंस्टीन ने की थी और इसे द बुलेटिन ग्रुप के नाम से जाना जाता है. शुरुआती समय में यानी 1940 के दशक में न्यूक्लियर खतरे से संभावित खतरे के बारे में बताया जाता था. हालांकि अब इसमें दो देशों के बीच सीमा पर तनाव, क्लाइमेट चेंज और ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को भी शामिल किया गया है. 

द बुलेटिन ग्रुप के प्रेसिडेंट और सीइओ रैचेल ब्रानसन बताते हैं कि मौजूदा समय में खतरा अब सिर्फ परमाणु हथियारों से नहीं है. बल्कि जिस तरह से क्लाइमेट चेंज के मामले सामने आ रहे हैं. जिस तरह से ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और बॉयोलोजिकल रिसर्च की वजह से फायदे की जगह नुकसान का खतरा बढ़ गया है. द बुलेटिन का यह भी मानना है कि वैश्विक चुनौतियां ना सिर्फ एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं बल्कि वो तेज रफ्तार से नुकसान पहुंचाने पर आमादा हैं.

प्रलय घड़ी में क्या है मिडनाइट

प्रलय घड़ी की सुई को खतरे के लिहाज से मिडनाइट यानी प्रलय के पल से दूर या करीब किया जाता है. मान लीजिए कि खतरा अधिक है तो सुई, मिडनाइट के करीब होगी. यदि खतरा कम है को इसे मिडनाइट से दूर किया जाता है. इसका अर्थ यह है कि सुई अगर मिडनाइट के करीब है तो हम हर पल तबाही के बीच जी रहे हैं. अगर सुई की दूरी मिडनाइट से दूर है तो तबाही से बचने की गुंजाइश अधिक होगी.

2023 में भी प्रलय घड़ी की सुई में बदलाव

इससे पहले साल 2023 में प्रलय घड़ी की सुई को मूव किया गया था. जिस तरह से यूक्रेन के साथ जंग में रूस अपने तेवर तल्ख कर रहा है. वैश्विक नियमों की अवहेलना कर रहा है.उसकी वजह से खतरा बढ़ गया है. परमाणु बम के खतरे के साथ साथ द बुलेटिन का मानना है कि साल 2023 सबसे गर्म साल रहा है. इसके अलावा वैश्विक स्तर असामान्य तौर बारिश, बाढ़,सूखा और भूकंप के मामले सामने आ रहे हैं. इसकी वजह से हम प्रलय की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं. ये बात सच है कि क्लाइमेट चेंज को लेकर दुनिया के देश चिंतित हैं, दुबई में सीओपी की बैठक में क्लीन एनर्जी के लिए .7 ट्रिलियन डॉलर के निवेश पर सहमति बनी है. लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. अभी भी क्लीन और फॉसिल फ्यूल के बीच गैप बहुत अधिक है.

द बुलेटिन ग्रुप ने चेताया

वैसे तो प्रलय घड़ी की सुई को मिडनाइट के करीब रखा जाता है लेकिन इस दफा ये मिडनाइट यानी प्रलय से महज 90 सेकेंड दूर है जिसकी वजह से चिंता बढ़ गई है. इसका सामना करने के लिए वैश्विक स्तर पर दुनिया के देशों को एक होना पड़ेगा. हमें यह देखना होगा कि प्रलय घड़ी की सुई को मिडनाइट के और करीब ले जाना होगा या हम सब प्रलय के साक्षी होंगे.

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