Gunaikurnai: 500 पीढ़ियों से चला आ रहा अनुष्‍ठान, सबसे पुरानी जीवित संस्‍कृति की हुई पहचान!
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Gunaikurnai: 500 पीढ़ियों से चला आ रहा अनुष्‍ठान, सबसे पुरानी जीवित संस्‍कृति की हुई पहचान!

Aboriginal Australian: ऑस्‍ट्रेलिया में की गई एक नई रिसर्च में पाया गया कि किसी जातीय समूह की मौजूदा परंपराएं कमोबेश वैसी ही हैं जैसी हजारों साल पहले उनके पुरखों के समय में थीं.  

Gunaikurnai: 500 पीढ़ियों से चला आ रहा अनुष्‍ठान, सबसे पुरानी जीवित संस्‍कृति की हुई पहचान!

Gunaikurnai of Australia: दुनिया की सबसे पुरानी जीवित संस्कृतियों में से एक होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि सहस्राब्दियों के सांस्कृतिक नवाचारों के बावजूद पुराने पूर्वजों ने भी पीढ़ी दर पीढ़ी सांस्कृतिक ज्ञान और जानकारी प्रदान करना जारी रखा, और पिछले हिम युग और उसके बाद से ऐसा किया है. हम अक्सर सुनते हैं कि आदिवासी लोग 65,000 वर्षों से ऑस्ट्रेलिया में हैं जो 'दुनिया की सबसे पुरानी जीवित संस्कृतियां' हैं. यह देखते हुए कि पृथ्वी पर सभी जीवित लोगों की एक वंशावली है जो समय की धुंध के पार तक जाती है? वैज्ञानिक पत्रिका नेचर ह्यूमन बिहेवियर में नई खोजों ने इस प्रश्न पर नई रोशनी डाली है. 

ऑस्‍ट्रेलिया के पुरातत्वविदों ने स्‍थानीय गुनाईकुर्नई आदिवासी समूह के पुरखों के बारे में अध्‍ययन करने के लिए विक्टोरिया के पूर्वी गिप्सलैंड में बर्फीली नदी के पास पहाड़ों की तलहटी में बुकान के पास क्लॉग्स गुफा में खुदाई की.

गुफा की गहराई में राख और गाद की परतों के नीचे दबी हुई ट्रॉवेल की नोक से दो असामान्य अग्निकुंड (फायरप्लेस) दिखाई दिए. उन दोनों में राख के एक छोटे टुकड़े से जुड़ी एक ही छंटी हुई छड़ी थी. 69 रेडियोकार्बन तिथियों का अनुक्रम एक फायरप्लेस को 11,000 साल पहले का बताते हैं और दूसरे को जो अधिक गहरा है उसे 12,000 साल पहले यानी पिछले हिमयुग के अंत का बताते हैं. 19वीं शताब्दी के गुनाईकुर्नाई एंथ्रोपॉलोजी रिकॉर्ड के साथ फायरप्लेस की देखी गई भौतिक विशेषताओं का मिलान करने से पता चलता है कि इस प्रकार की फायरप्लेस कम से कम 12,000 वर्षों से निरंतर उपयोग में है.

चर्बी से सनी रहस्यमयी छड़ियां
ये कोई साधारण फायरप्लेस नहीं थे. उसके बीच से एक छड़ी निकली हुई थी जिसका थोड़ा जला हुआ सिरा अभी भी आग की राख के बीच में फंसा हुआ था. आग बहुत देर तक नहीं जली थी, न ही कोई खास गर्मी तक पहुंची थी. भोजन का कोई भी अवशेष फायरप्लेस के आसपास नहीं था.

दो छोटी टहनियां जो कभी छड़ी से उगी थीं, काट दी गई थीं इसलिए तना अब सीधा और चिकना हो गया था. छड़ी पर सूक्ष्म और जैव रासायनिक विश्लेषण करने पर पता चला कि यह पशु वसा के संपर्क में आया था. छड़ी के कुछ हिस्से लिपिड -फैटी एसिड से ढके हुए थे जो पानी में नहीं घुल सकते और इसलिए लंबे समय तक वस्तुओं पर बने रह सकते हैं.

छड़ी की सजावट और लेआउट, आग का छोटा आकार, भोजन के अवशेषों की अनुपस्थिति, और छड़ी पर जमी हुई चर्बी की उपस्थिति से पता चलता है कि फायरप्लेस का उपयोग खाना पकाने के अलावा किसी और चीज के लिए किया जाता था.

500 पीढ़ियां
ये लघु फायरप्लेस 500 पीढ़ियों से चली आ रही दो अनुष्ठानिक घटनाओं के उल्लेखनीय रूप से संरक्षित अवशेष हैं. धरती पर इसके अतिरिक्‍त कहीं और एंथ्रोपॉलोजी से ज्ञात बहुत ही विशिष्ट सांस्कृतिक अभ्यास की पुरातात्विक अभिव्यक्तियां नहीं हैं जो अभी तक खोजी जा सकी हों.

ऑस्‍ट्रेलिया में गुनाईकुर्नई जातीय समूह के पूर्वजों ने लगभग 500 पीढ़ियों तक देश को बहुत विस्तृत, बहुत विशिष्ट सांस्कृतिक ज्ञान और अभ्यास प्रसारित किया था. जब फायरप्लेस की खुदाई की गई तो गुनाईकुर्नई के बुजुर्ग रसेल मुलेट साइट पर थे. जैसे ही पहला फायरप्लेस सामने आया, वह चकित रह गये. उन्‍होंने कहा कि इसका जीवित रहना अद्भुत है. यह हमें एक कहानी बता रहा है. यह काफी समय से यहां इंतजार कर रहा है कि हम इससे सीखें. हमें याद दिलाते हुए कि हम एक जीवित संस्कृति हैं जो अभी भी अपने प्राचीन अतीत से जुड़ी हुई है. यह हमारे पूर्वजों के संस्मरणों को पढ़ने और उन्हें अपने समुदाय के साथ साझा करने का एक अनूठा अवसर है.

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