हम बचपन में खूब कहानियां सुनते, पढ़ते हैं. कहानी के आखिर में यह भी पूछते हैं कि इससे क्‍या शिक्षा मिली. सुनने वाला उसमें अपना निष्‍कर्ष मिलाकर हमारे मन को एक दिशा देने की कोशिश करता था…


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

लेकिन यह क्‍या जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, उन कहानियों से दूर निकलते जाते हैं, जिनकी छांव में हमें उत्‍साह, उमंग, आशा और ऊर्जा के बीज मिले थे. आपको नहीं लगता कि हम जैसे-जैसे अपने बचपन से दूर होते जाते हैं, किस्‍से कहानियों से दूर होते जाते हैं. असल में हमारे भीतर की कोमलता भी हमसे उतनी ही दूर होती जाती है.


बड़े होने का अर्थ समझदार होने से है, लेकिन हम समझदार होने की जगह ‘कैलकुलेटर’ होने की ओर अधिक बढ़ रहे हैं. हर चीज़ में हिसाब!


ये भी पढ़ें- डियर जिंदगी : तुम आते तो अच्‍छा होता!


अरे! यह भी जीने का कोई तरीका हुआ. माना कि गणित पढ़ना और सीखना जिंदगी के लिए जरूरी बताया जाता है, लेकिन अति तो हर चीज़ की मनाही है ना! तो हमेशा खुद को गणना\हिसाब में खपाए रहने से कुछ नहीं होने वाला.


ऐसा करना वास्‍तव में क‍हीं न कहीं प्रकृति (आप यहां समझने के लिए ‘ईश्‍वर’ पढ़ सकते हैं) की अवमानना करने जैसा है. प्रकृति के नियम बहुत ही स्‍पष्‍ट, सुंदर और वैज्ञानिक हैं. यह हो सकता है कि आपको उन्‍हें समझने में असुविधा हो रही हो, लेकिन वह कोई ‘पाइथागोरस’ प्रमेय थोड़े ही हैं, जिनको समझने के लिए आपका गणित में विशेषज्ञ होना जरूरी है.  


आप अपना काम ईमानदारी से करिए. उस श्रेष्‍ठता से करिए, जितनी श्रेष्‍ठता से एक मां अपने गर्भस्‍थ शिशु का ख्‍याल रखती है. उस आशा की कोमलता मन में रखिए जितनी आशा एक किसान अपने मन में रखता है. 


ये भी पढ़ें: डियर जिंदगी : दुख का संगीत!


जब कोई रास्‍ता न दिख रहा हो तो उस मल्‍लाह की मनोदशा रखिए, जिसकी नौका सब ओर से तूफान में घिरी रहती है.


आपने गोल्डन ग्लोब रेस के भारतीय प्रतिनिधि कमांडर अभिलाष टॉमी का नाम तो सुना ही होगा, जो हिंद महासागर में समुद्र की लहरों के बीच करीब 70 घंटे तक चोटिल अवस्‍था में जिंदगी और मौत से जूझने के बाद सुरक्षित लौट आए हैं. अभिलाष समुद्री तूफान में फंस गए थे और उनका लकड़ी का बना जहाज बुरी तरह से बर्बाद हो गया था. समुद्र में फंसे रहने के दौरान अभिलाष ने सबसे जरूरी बात कही थी कि 14 मीटर तक ऊंची लहरें मेरी हिम्‍मत नहीं तोड़ सकतीं.


ऐसे हौसले की जरूरत केवल हिंद महासागर में नहीं होती, हर दिन की जिंदगी इससे कम मुश्किल वाली नहीं होती. हमारे आसपास बिखरा तनाव, निराशा और डिप्रेशन समुद्री तूफान जितना ही जानलेवा है.


ये भी पढ़ें: डियर जिंदगी : कितना सुनते हैं!


इसमें भी हमें अभिलाष जैसी हिम्‍मत और सोच के साहस की दरकार है. तभी हम खुद और उनको जो हमारी छाया में हैं, उनको मुश्किलों से भरी दुनिया में सकुशल रख पाएंगे.  


जिंदगी की मुश्किल उतनी आसान होती जाएगी, जितनी उसे ग्रहण करने के लिए हमारे भीतर कोमलता बची रहेगी. यह कुछ-कुछ ऐसा है, जैसे गाड़ी कितनी ही बड़ी क्‍यों न हो, उसका इंजन कितना ही शक्तिशाली क्‍यों न हो, लेकिन वह बिना ‘लुब्रिकेशन’ के काम नहीं करता.


प्रेम और स्‍नेह हमारी जिंदगी का लुब्रिकेशन हैं. इनके बिना हमारी जिंदगी की नींव खोखली रहेगी, चाहे बाहर से दिखने में वह कितनी ही बुलंद इमारत क्‍यों न हो.


ये भी पढ़ें: डियर जिंदगी : ‘बलइयां’ कौन लेगा…


तो अपने भीतर के लुब्रिकेशन यानी स्‍नेहन की आशा के साथ आज की बात यहीं खत्‍म होती है. जाते-जाते रूमी के साथ आपको छोड़े जा रहा हूं. वह कहते हैं, ‘अपने शब्‍दों को ऊंचा करें, आवाज को नहीं. फूल बारिश में खिलते हैं, तूफानों में नहीं.’


गुजराती में डियर जिंदगी पढ़ने के लिए क्लिक करें...


मराठी में डियर जिंदगी पढ़ने के लिए क्लिक करें...


ईमेल dayashankar.mishra@zeemedia.esselgroup.com


पता : डियर जिंदगी (दयाशंकर मिश्र)
Zee Media,
वास्मे हाउस, प्लाट नं. 4, 
सेक्टर 16 A, फिल्म सिटी, नोएडा (यूपी)


(लेखक ज़ी न्यूज़ के डिजिटल एडिटर हैं)


(https://twitter.com/dayashankarmi)


(अपने सवाल और सुझाव इनबॉक्‍स में साझा करें: https://www.facebook.com/dayashankar.mishra.54)