डियर जिंदगी : जब कोई बात बिगड़ जाए…
दोस्तों और परिवार की छांव की ओर लौटिए, उनसे दिल का हाल साझा कीजिए. बात कितनी भी क्यों न बिगड़ जाए, उसे संभाला जा सकता है. यह बात अपने दिल, दिमाग और दीवार पर साफ-साफ लिख दीजिए.
उसका कोई दोस्त नहीं था! अगर दोस्त होता तो वह ऐसा काम कभी नहीं करता. लेकिन उसने तो न्यूयार्क जाने के बाद दोस्तों से बात ही बंद कर दी. उसने अपने आसपास एक ऐसी दुनिया बुन ली, जिसमें दूसरों का प्रवेश तो मना था ही दूसरों तक उसका ‘जाना’ भी बंद हो गया.
अमेरिका की एक लोकप्रिय कंपनी में काम करने वाले अपने एक सीनियर साथी की आत्महत्या पर बात करते हुए कैफे कॉफी डे में उन्होंने मुझसे यह बातें कहीं.
कहने वाले थे, भारत की एक बड़ी आईटी कंपनी के सीनियर मैनेजर गौरव कुमार सिंह. ‘डियर जिंदगी’ के नियमित पाठक गौरव ने बताया कि उनका यह दोस्त अपने दोस्तों की तुलना में बेहद तेजी से प्रोफेशनल तरक्की के रास्ते पर था. उसने एक ऐसी नौकरी अमेरिका में इतनी जल्दी हासिल कर ली, जो दूसरों के लिए ईर्ष्या का प्रश्न थी.
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उसके काम करने का तरीका कुछ यूं था कि उसमें दूसरों के लिए करुणा, प्रेम, स्नेह और आत्मीयता की कोई जगह नहीं थी. उसने यह मान लिया था कि तरक्की के रास्ते में दोस्ती, दूसरों के साथ समस्या साझा करना सही नहीं है. उसने अपने भीतर यह तय कर लिया कि वह सर्वश्रेष्ठ है, उससे अच्छा कोई नहीं. उसने अपने आसपास एक ऐसी दीवार खड़ी कर ली, जिसमें दरवाजा तो दूर कोई ‘खिड़की’ तक न थी.
फिर उसके जीवन में एक ऐसा मोड़ आया जब अचानक उसकी भारतीय मूल की पत्नी ने उसे क्रूर, असहनशील और स्वार्थी, धोखेबाज बताते हुए तलाक का नोटिस भेज दिया. इतना नहीं, उसने तलाक की घोषणा सोशल मीडिया पर कर दी. इससे उसे काफी गहरा धक्का लगा.
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अमेरिकन समाज में यह कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन गौरव के इस दोस्त का एक पांव अमेरिका और एक भारत में था. यह एक प्रेम विवाह था. घर वालों की मर्जी के खिलाफ. इसके साथ ही यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि गौरव के इस दोस्त की पत्नी ने इस शादी के लिए भारत में इंफोसिस जैसी कंपनी में जमी जमाई नौकरी छोड़ दी.
अमेरिका में जाकर भी उसने नौकरी की कोशिश नहीं की, क्योंकि उनकी जिंदगी चलाने के लिए एक व्यक्ति की नौकरी ही काफी थी.
हम यहां इतने विस्तार में बात इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि भारत में भी बड़ी-बड़ी कंपनियों के अफसर, सीनियर सीईओ जैसे लोग आत्महत्या की ओर बढ़ रहे हैं. क्यों? जबकि उनके पास वह तमाम चीजें हैं, जिनके न होने पर दूसरों के मन में ऐसे निगेटिव ख्याल आते हैं.
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तो लोगों से घिरे हुए लोग, सैकड़ों हजारों की टीम को लीड करने वाले आखिर अकेलेपन, उदासी और निराशा के रास्ते जाते हुए कैसे आत्महत्या की ओर बढ़ जाते हैं.
इस बारे में विस्तार से जानने के लिए मैं पिछले दो महीने में लगभग दस सीईओ से मिला. बीस ऐसे लोगों से संवाद हुआ जो कंपनियों में शीर्ष स्तर पर हैं. इनसे जो बातें सामने आई, वह इस प्रकार हैं…
टॉप पर पहुंचते ही लोग सोचने लगते हैं कि उनमें कुछ ऐसा है, जो दूसरों में नहीं. वह अपने पद को कुछ ज्यादा ही गंभीरता से लेने लगते हैं. जबकि उन्हें अपने काम को गंभीरता से लेना चाहिए, खुद को नहीं.
लीडर बनते ही, टॉप लेवल पर जाते ही हंसना, मुस्कुराना बंद हो जाता है. चेहरे पर प्लास्टिक की मुस्कान आ जाती है. ऐसे लोग जीवन को पीछे छोड़ते जाते हैं और करियर को जिंदगी समझने लगते हैं. दोस्ती, यारी बंद.
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ऐसे लोग विशेषकर भारत में कुछ इस तरह के कोटेशंस में फंस जाते हैं, ‘लीडर किसी का दोस्त नहीं होता. टॉप पर बैठने वाले का कोई दोस्त नहीं होता. पहाड़ की चोटी पर किसी एक के लिए ही जगह होती है.'
इस तरह के विचारों का कचरा इकट्ठा होता जाता है. ऐेसे लोगों के पास दोस्तों की सहज टीम, जो दुख, समस्या से निकालने, बचाने का काम करने वाली ‘शॉक एब्जार्बर’ की तरह होती है, नहीं होती.
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तो जब कोई ऐसा संकट सामने आता है, जो अपने ही पाखंड, गलत चुनाव से सामने आया है, तो ऐसे लोग जो बाहर से दिखने में खासे शक्तिशाली होते हैं, एकदम फूल की पंखुड़ियों जैसे बिखर जाते हैं.
इसकी वजह साफ है, टॉप पर बैठे लोग संबंधों, रिश्तों में निवेश, स्नेह, आत्मीयता की जड़ों को बचाए रखने के लिए कुछ नहीं करना चाहते. वह भूल जाते हैं कि ब्रह्मांड में उनकी हैसियत उतनी ही है, जितनी समंदर में एक लहर की. जबकि वह अपनी भूमिका को अच्छे से निभाने की जगह समंदर की चिंता में घुले जा रहे हैं.
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सबसे बड़ी बीमारी, उदासी का कारण खुद को अत्यधिक गंभीरता से लेना है. गंभीर, चुनौती भरे काम करने का अर्थ यह नहीं होना चाहिए कि आपका दिल एक इंच मुस्कान के लिए तरसता रह जाए.
इसलिए, दोस्तों और परिवार की छांव की ओर लौटिए, उनसे दिल का हाल साझा कीजिए. बात कितनी भी क्यों न बिगड़ जाए, उसे संभाला जा सकता है. यह बात अपने दिल, दिमाग और दीवार पर साफ-साफ लिख दीजिए.
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