अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण का शिलान्यास एक महान अंतर्राष्ट्रीय घटना है. भावनात्मक जुड़ाव के इस अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य में जितनी आस्था भारत के बहुसंख्या लोगों की है, उतनी ही आस्था विश्व के ऐसे कई देशों में रहने वाले विभिन्न धर्मावलम्बियों की भी है, जिनकी आस्था और उपासना के केंद्र में श्री राम हैं.
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5 अगस्त को अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण का शिलान्यास एक महान अंतर्राष्ट्रीय घटना है. भावनात्मक जुड़ाव के इस अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य में जितनी आस्था भारत के बहुसंख्या लोगों की है, उतनी ही आस्था विश्व के ऐसे कई देशों में रहने वाले विभिन्न धर्मावलम्बियों की भी है, जिनकी आस्था और उपासना के केंद्र में श्री राम हैं. श्री राम के नाम का प्रताप और महिमा ही कुछ ऐसी है कि उसका विस्तार अनंत और असीमित है. इसीलिए श्री राम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण की घटना को भारत की भौगोलिक परिधि से परे जाकर भारत की सांस्कृतिक परिधि के दायरे में देखा जाना समयानुकूल तो है ही भावनानुकूल भी है.
कंबोडिया के अंकोरवाट मंदिर की प्रदक्षिणा में उत्कीर्ण राम कथा के प्रसंगों को देखते हुए शायद ही कोई भारतीय होगा जिसके मन में ये प्रश्न नहीं कौंधा होगा कि जब श्री राम यहां विराज सकते हैं तो मेरे देश में उनकी अपनी जन्मभूमि पर क्यों नहीं विराज सकते. वहां राम रावण युद्ध का दृश्य देखते समय किसके मन में ये विचार नहीं आया होगा कि अपने पराक्रम से रावण को तो हराना श्री राम के लिए सरल था लेकिन युगों बाद अपनी ही जन्मभूमि पर अपने अस्तित्व को सिद्ध करने का कानूनी उपक्रम कितना कठिन और दुष्कर हो गया.
वैसे श्री राम की व्याप्ति ऐसी है कि उन्हें किसी भौगोलिक सीमा में बांधना कठिन है. श्री राम का महात्म्य सभी भौगोलिक सीमाओं को लांघ कर कई हजार योजन की यात्रा कर हर काल में परिवेश, संस्कृति, सभ्यता और परिस्थिति के अनुरूप प्रकट होता है. भारत में ही हम श्री राम के आख्यान के कई रूप देखते हैं, जिसमें वाल्मिकी रामायण से लेकर रामचरितमानस और कम्ब रामायण से होती हुई ये यात्रा दो सौ से तीन सौ रूपों तक तो निश्चित ही जाती है. भारत के हर प्रांत में, हर भाषा में राम कथा का अपना स्वरूप है और उसके प्रति आस्था प्रकट करने का अपना तरीका है. इसमें अकबर द्वारा फारसी में अनुवाद करवाई गई रामायण और 1776 में उर्दू में आई पोथी रामायण भी शामिल है. इसके अलावा विभिन्न लोक शैलियों में राम कथा के अपने अपने संस्करण हैं, जिसमें उस स्थान के देशज आख्यानों और संदर्भों का भी समावेश है. भारत के बाहर थाइलैण्ड में ‘रामाकिन', इंडोनेशिया में ‘काकबिन', मलेशिया में ‘हिकयत सेरी राम', फिलिपींस में ‘मछिंद्र लावन', म्यांमार में ‘राम तायगिन', कंबोडिया में ‘राम केरती' जैसे संस्करण हैं, जिसमें राम कथा अपनी पूरी सांस्कृतिकता के साथ प्रकट होती है.
रामलीला के माध्यम से राम कथा का प्रकटीकरण भारत का एक लोकप्रिय संप्रेषण और मनोरंजन का माध्यम है, जो समाज को शिक्षित और प्रबोधित करने का काम भी करता है. भारत में नवरात्रि के समय रामलीला का आयोजन विभिन्न जगहों पर होता है. ऐसे ही रामलीलाएं आपको त्रिनिदाद, सूरीनाम, फिजी, घाना, मॉरीशस, हॉलैंड, इंडोनेशिया में देखने को मिल जाएंगी. देश, काल, परिस्थिति के अनुसार उनमें समय-समय पर परिवर्तन होते रहे हैं लेकिन सबका मूल तत्व राम ही हैं. वही सबको बांधे रखता है, जोड़े रखता है. श्री राम की व्याप्ति किसी धर्म विशेष, संप्रदाय या पंथ तक सीमित नहीं है. श्री राम तो धर्म, संप्रदाय, पंथ, मन के व्यापों से परे जाकर पूरी सृष्टि पर अपना आत्मीय आधिपत्य स्थापित करता है. इंडोनेशिया से लेकर खेरिया (भारत) की रामलीला में सांप्रदायिक सद्भाव के अनेकों उदाहरणों को उद्घाटित होते देखा जा सकता है.
रा शब्दो विश्ववचनो मः च अपि ईश्वर वाचकः।
विश्व अधीन ईश्वरों यो हि तेन रामः प्रकीर्तितः।।
‘रा' अक्षर तीनों लोकों का प्रतिनिधित्व करता है और ‘म' अक्षर ईश्वर का या सर्वशक्तिमान का इसीलिए श्री राम वो जो पूरे विश्व का स्वामी या नियंता. किसी भी रूप में भारत की सांस्कृतिक आस्था का प्रकटन करना हो तो सबसे पहले ‘श्री राम' याद आते हैं.
राकारोच्चारमात्रेण मुखान्निर्याति पातकम:।
पुनः प्रवेशशड.कायां मकारोऽस्ति कपाटवत्।।
‘रा' अक्षर के उच्चारण मात्र से सारे संचित पाप शरीर से निकल जाते हैं. ‘म' अक्षर वो द्वार है जो पापों के निकलते ही बंद हो जाता है और पुनः पापों के संचय को रोकता है.
राम भारत की सांस्कृतिक चेतना हैं और इसीलिए उनके प्रति आस्था, धर्म के विचार के परे जाकर प्रकट होती है. ऐसा उदाहरण संभवतः विश्व की किसी भी अन्य संस्कृति में नहीं है जहां किसी एक आराध्य की जीवन गाथा को मानवीय धरातल पर इतने गहरे तक एकाकार होकर अंगीकृत किया जाता हो. ये इसीलिए भी संभव हो पाता है क्योंकि राम के जीवन के सभी पहलू कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में सबके जीवन के साथ एकाकार होते हैं. इसीलिए गिरमिटिया देशों में अपने पूर्वजों की धरोहर को संजोकर रखने वाले संग्रहालय में रामचरितमानस का गुटका प्रमुख आकर्षण होता है. जिसने ‘श्री राम' को नहीं जाना उसने अपने आपको नहीं जाना. जिससे ‘श्री राम' का परिचय नहीं हुआ वो अपने आपसे अपरिचित रह गया.
देव होते हुए भी श्री राम अपने लगते हैं. जो श्वास के साथ जीवन के प्रमुख तंतु के रूप में जुड़ जाते हैं और व्यक्ति को उसी में तल्लीन कर देते हैं. श्री राम जन्मभूमि तो पुण्य फलदायी है और सबके लिए मंगल की ही कामना करती है. इसके दर्शन करने से मानव मात्र के कष्ट दूर हो जाते हैं. इसके बदले में आपसे अपेक्षा कुछ भी नहीं है. सिर्फ स्वच्छ निर्मल मन से दर्शन करें यही अपेक्षा है. स्कंद पुराण में इसका उल्लेख है.
राम कथा की महिमा का महत्व हर युग, हर काल में सर्वोपरि रहा और बिना बंधनों के सभी ने इसे स्वीकार किया. इसीलिए तो जब तुलसीदास जी ने रामचरितमानस पूर्ण करने के बाद अभिप्राय के लिए अपने मित्र अब्दुर्रहीम खानखाना को भेजा तो उन्होंने लिखा:
रामचरितमानस विमल सत्य सकल सुभ खान।
हिन्दुआन को बेद है मुस्लिम को कुरान।।
अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर का शिलान्यास भारत के एक राज्य में किसी स्थान पर होने वाला कोई प्रासंगिक या पारंपरिक अनुष्ठान नहीं है. ये विश्व के सम्मुख भारत की सांस्कृतिक सौजन्यता और विराटता का उत्सव है, जिसकी विश्व मंगलमय ध्वनि से पूरा विश्व आह्लादित होगा. ये एक ऐसे वातावरण की निर्मित करने वाला प्रसंग है, जिसके माध्यम से भारत की सर्वसमावेषी सनातन संस्कृति का एक बार पुनः समूचे विश्व के सामने प्रदर्शन होगा. यह समूची मानव जाति के लिए उल्लास का उत्सव है, अपने ‘स्व’ को अनुभूत करने का उत्सव है.
रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड में हनुमान जी के मन में शंका उत्पन्न होने पर उन्होंने श्रीराम का ही स्मरण किया था.
प्रविसी नगर कीजे सब काजा।
हृदय राखि कोसलपुर राजा।।
अयोध्यापुरी के राजा श्री रघुनाथ जी को हृदय में रखते हुये नगर में प्रवेश करके सब काम कीजिए. हम सब भी मन में सबके प्रति सद्भाव और सद्विचार रखते हुए, अच्छे भाव रखते हुए राम कथा के इस नए पर्व में प्रवेश करें और समूचे विश्व के मंगल की कामना करें तो श्री राम में हमारी आस्था का सही प्रकटीकरण होगा.
(लेखक- डॉ. सच्चिदानंद जोशी इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव हैं)
(लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.)