सेल्फी के क्रेज में गुम होती जिंदगी
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सेल्फी के क्रेज में गुम होती जिंदगी

सेल्फी के क्रेज में गुम होती जिंदगी

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संजीव कुमार दुबे

गुरुवार सुबह सेल्फी से जुड़ी एक दुखद घटना मन को विचलित करती है। यूपी के कानपुर में गंगा बैराज में कुछ छात्र मौज-मस्ती के लिए गए थे। सेल्फी का शौक और उसका क्रेज उनकी जिंदगी पर इस कदर भारी पड़ा कि इस चक्कर में सात लोगों की डूबकर मौत हो गई। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सेल्फी के चक्कर में कभी-कभी हमें इसकी बहुत बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ती हैं, जिसका हमें अंदाजा भी नहीं होता है। युवाओं में इसका क्रेज कुछ ज्यादा ही है जो अब जानलेवा साबित हो रहा है। इसी खबर को मैंने जब टीवी पर देखा तो एक न्यूज चैनल में हेडलाइन कुछ यूं थी - 'परफेक्ट सेल्फी के चक्कर में लील गई गंगा'।

सेल्फी का क्रेज दरअसल एक जानलेवा एडवेंचर साबित हो रहा है जहां मौज-मस्ती की चाह और कुछ नया कर गुजरने ख्वाहिश रखनेवाले (ज्यादातर युवाओं) को जान से हाथ धोना पड़ता है या अन्य दुर्घटना का शिकार होना पड़ता है। यह अजीब विडंबना है कि महज एक सेल्फी का क्रेज युवाओं की जिंदगी को लील रहा है। अब सेल्फी स्टिक के जरिए युवा इस लेकर ज्यादा क्रेजी हो उठे है। सेल्फी से जुड़ा एक्सपेरिमेंट दरअसल जानलेवा साबित हो रहा है लेकिन ज्यादातर युवा इसे नजरअंदाज कर रहे है जिससे भयावह स्वरूप हम सामने देख रहे है, जो चिंतित करनेवाला है।

सेल्फी स्मार्टफोन की तकनीक की देन है जिसमें उसमें लगे कैमरा की अहम भूमिका होती है। अगर स्मार्टफोन है तभी सेल्फी ली जा सकती है। भारत की आबादी 125 करोड़ को पार कर चुकी है लेकिन देश में मोबाइल की संख्या उसका पीछा करती हुई दिख रही है। देश में इस वक्त कुल 105.92 करोड़ मोबाइल यूजर्स है। ऐसा लगता है कि कुछ साल में देश की आबादी से ज्यादा मोबाइल यूजर्स की संख्या हो जाएगी। क्योंकि ज्यादातर लोग एक से ज्यादा मोबाइल रखने लगे हैं। देश में 103.42 करोड़ वाई-फाई उपभोक्ता है जो वाई-फाई नेटवर्क का इस्तेमाल करते है। लगभग 16 करोड़ लोग ब्रॉडबैंड के जरिए इंटरनेट का प्रयोग करते है। यह कुछ आंकड़े है जिनसे यह पता चलता है कि देश में मोबाइल,स्मार्टफोन और इंटरनेट का इस्तेमाल दिन-ब-दिन कितनी तेजी से बढ़ता चला जा रहा है।

94 मिलियन सेल्फी प्रतिदिन दुनिया में क्लिक होते हैं। सेल्फी यानी खुद की फोटो खींचना। भारत ही नहीं पूरे देश में इसके प्रति लोगों की दीवानगी बढ़ी है लेकिन युवाओं में इसका क्रेज सर चढ़कर बोलता है। युवाओं के अलावा शायद ही कोई ऐसा वर्ग होगा जो इसके क्रेज से अछूता हो। वर्ष 2013 में 'सेल्फी', ऑक्सफोर्ड वर्ड ऑफ द इयर बना जो इसके क्रेज की दास्तां बयां करता है। अगर देखा जाए तो इसका चलन पिछले तीन से चार साल में ज्यादा बढ़ा है। स्मार्टफोन कल्चर के दौर में इसे सबसे ज्यादा बढ़ावा मिला। क्योंकि सेल्फी लेना फ्रंट कैमरे से मुमकिन होता है। गूगल के सर्वे से पता चलता है कि स्मार्टफोन के इस दौर में आज के युवक-युवतियां जो पूरे दिन में रोजाना औसतन 11 घंटे अपने फोन पर बिताते हैं वे पूरे दिन में एक-दो नहीं बल्कि 14-14 सेल्फी लेते हैं।  

सेल्फी का क्रेज कितना जानलेवा साबित हो रहा है, यह हम देख रहे है। लेकिन लोगों की स्मार्टफोन से बढ़ती अनावश्यक आसक्ति चिंतित करनेवाली है। एक सर्वे के मुताबिक पुरुष 20 सेकेंड से ज्यादा समय तक भी अपने मोबाइल फोन या स्मार्टफोन से दूर नहीं रह पाते। दूसरी तरफ महिलाओं की स्थिति इस मामले में पुरुषों से थोड़ी बेहतर है। महिलाएं अपने करीब से मोबाइल की दूरी 57 सेकेंड से ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर पाती है। मतलब साफ है कि पुरुषों को अगर 20 सेकेंड और महिलाओं को 57 सेकेंड में मोबाइल की गैर-मौजूदगी उन्हें बैचन करती है।
 
दूसरी तरफ भारत अब भी 'सेल्फी डेथ कंट्री' में शुमार होता है जहां रिपोर्ट के मुताबिक सेल्फी के दौरान सबसे ज्यादा मौतें होती है। 'द वाशिंगटन पोस्ट' ने चंद महीने पहले अपनी एक रिपोर्ट में यह दावा किया था कि साल 2015 में भारत में कई लोगों ने खतरनाक तरीके से सेल्फी लेने की कोशिश की। इस वजह से उनकी जान चली गई।  दुनियाभर में सेल्फी के चक्कर में 27 लोगों की जान गई जिनमें 15 से ज्यादा मौतें सिर्फ भारत में हुईं। यह आंकड़ा चिंतित करनेवाला है।

ज्यादातर ये देखा गया है कि लोग या फिर युवा खतरनाक जगहों पर और खतरनाक स्थिति में सेल्फी के दीवाने होते है। एक ऐसी स्थिति जिस जगह सेल्फी की चाहत एक दुर्घटना को जन्म देती है और यह मौत का भी कारण बन सकती है। युवाओं को इस तरह की सेल्फी लेने और फिर उसे व्हाट्सएप पर भेजने या सोशल साइट पर अपलोड करने की जल्दी होती है। यही जल्दी एक लापरवाही में तब्दील होती है जिससे लोग अपनी जिंदगी की अपने हाथों बलि दे रहे हैं। जनवरी 2016 में सेल्फी लेने के चक्कर में मुंबई में पुलिस ने 16 पिकनिक स्पॉट को 'नो सेल्‍फी जोन्स' जोन बनाया। मकसद यही था कि फिर सेल्फी के चक्कर में किसी की जिंदगी नहीं जाए। इन्हीं सब चीजों को ध्यान में रखते हुए पिछले साल नासिक कुंभ मेले के दौरान कुछ जगहों पर भी 'नो सेल्फी जोन्स' बनाए गए थे। पिकनिक स्पॉट, समंदर की लहरों, ऊंची चट्टानों, नदी की जलधारा युवाओं को सेल्फी लेने के लिए आकर्षित करती है और यही दीवानगी जानलेवा साबित हो रही है।

सेल्फी का शौक अपनी गलती और लापरवाही से एक तरफ जानलेवा साबित हो रहा है तो दूसरी तरफ स्मार्टफोन के इस्तेमाल के और भी कई नुकसान है जिसका सीधा संबंध हमारे सेहत से है। त्वचा विशेषज्ञों के मुताबिक चेहरे पर लगातार स्मार्टफोन की लाइट और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से त्वचा को नुकसान पहुंच सकता है। इससे चेहरे की झुर्रियां भी बढ़ सकती हैं। शोध में यह भी पाया गया है कि व्यक्ति जिस साइड से स्मार्टफोन यूज करता है उसका वह हिस्सा दूसरे हिस्से की बजाय ज्यादा प्रभावित होता है। मिसाल के तौर पर अगर कोई व्यक्ति बाई तरफ से मोबाइल से बातचीत करने का आदि है तो उसके इस हिस्से में त्वचा संबंधी और श्रवण शक्ति संबंधी तकलीफें बढ़ सकती है।

हालियां सर्वे में यह बात सामने आई है कि ज्यादा सेल्फी लेने के भी नुकसान है। जानकारों के मुताबिक फोन की स्क्रीन की नीली रोशनी भी त्वचा को नुकसान पहुंचा सकती है। रोशनी का मैगनेटिक प्रभाव होता है जो त्वचा पर असर डालने के साथ चेहरे के रंग को भी प्रभावित करता है। कुछ विशेषज्ञों यह भी मानना है कि मोबाइल फोन की विद्युतचुंबकीय तरंगें डीएनए को नुकसान पहुंचाकर त्वचा की उम्र बढ़ा देती है। ये त्वचा की खुद को सुधारने की क्षमता को खत्म कर देती है। लिहाजा आम मॉस्चेराइजर्स और तेल इन पर काम नहीं कर पाते और इससे त्वचा को ज्यादा नुकसान होता है।

सेल्फी जानलेवा साबित हो रही है तो उसके लिए सावधानी बरतना जरूरी है। पहला सिर्फ सेल्फी की आस में ऐसे 'जानलेवा एवडेंचर' से बचा जाए जहां जान का खतरा हो, किसी दुर्घटना का अंदेशा हो। इसके लिए जरूरी है कि चलती ट्रेन, चलती गाड़ी ,पहाड़ों और छत पर सेल्फी खींचने से बचना चाहिए। ऐसी जगहों पर ज्यादातर ये देखा गया है कि 'परफेक्ट' सेल्फी पिक्चर के चक्कर में दुर्घटना हो जाती है जिसका हमें कतई अंदाजा नहीं होता। सेल्फी का शौक या क्रेज बुरा नहीं कहा जा सकता लेकिन यह उस हद तक नहीं होना चाहिए जहां जिंदगी सुरक्षित नहीं रह जाती और मुश्किलों में घिर जाती है। समंदर की लहरों या पहाड़ की ऊंची चट्टानों के अलावा बागानों के फूल या फिर घर में कमरे के अंदर भी सेल्फी ली जा सकती है। सेल्फी की 'अति' पर नियंत्रण रखने की जरूरत है। ख्वाहिशों या क्रेज के समंदर में ऐसा भंवर हर्गिज ना हो जिससे आपकी जिंदगी पर किसी भी प्रकार का खतरा मंडराता हो। जिंदगी अनमोल है, इसे सेल्फी जैसे क्रेज से खत्म करना कहां की समझदारी है?

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