उस समय जब दुनिया के बहुत सारे पत्रकार वहां जाने के ख्याल से भी डरते थे. मैं ऐसे-ऐसे असाइन्मेंट्स पर गया जिनमें जान भी जा सकती थी.
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मैं पिछले 26 साल से पत्रकारिता कर रहा हूं. इस दौरान मैंने आपको अच्छी खबरें भी बताई और बुरी खबरें भी बताई. कुछ खबरें देखकर आप उदास हो गए होंगे तो कुछ खबरों से आपको उम्मीद बंधी होगी. इस दौरान मैं ऐसी बहुत सारी जगहों पर गया जहां मेरी खुद की जान खतरे में आ गई.
इन 26 वर्षों में मैंने सियाचिन में माइनस 50 डिग्री तापमान में रिपोर्टिंग की. जब भारत की संसद पर आतंकवादियों ने हमला किया तब मैंने संसद के ठीक सामने से आपके लिए रिपोर्टिंग की. मैंने कारगिल युद्ध की भी रिपोर्टिंग की. आतंकवादी संगठन ISIS को करीब से देखने के लिए मैं सीरिया तक पहुंच गया. उस समय जब दुनिया के बहुत सारे पत्रकार वहां जाने के ख्याल से भी डरते थे. ये सारे ऐसे असाइन्मेंट्स थे जिनमें जान भी जा सकती थी.
मेरा परिवार मुझसे पूछता था कि ऐसी खतरनाक जगहों पर जाने की आखिर क्या जरूरत थी? लेकिन मैं आपको अनदेखी और अनसुनी कहानियां बताना चाहता था और सच कहूं तो ऐसा करके मुझे एक अजीब तरह की संतुष्टि मिलती थी. संतुष्टि इस बात की कि मैंने आपको वो दिखाया जो शायद आप घर बैठे ना देख पाते.
पिछले 2 महीनों से भारत समेत पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जूझ रही है. लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं. इस दौरान भी मैं हर रोज दफ्तर आया और ज़ी न्यूज़ की पूरी टीम भी अपनी जान जोखिम में डालकर हर रोज दफ्तर आई. उनके परिवार वाले भी यही पूछ रहे हैं कि क्या वो वर्क फ्रॉम होम नहीं कर सकते?
लेकिन हमने ये सब किसी पुरस्कार की उम्मीद में नहीं किया. किसी पद या पैसे के लालच में नहीं किया. हमने ये सब सिर्फ आपके प्यार के लिए किया और इस देश के लिए किया.
लेकिन इतना सब करने के बाद भी जब देश के कोने-कोने से हमें इनाम के तौर पर सिर्फ FIR और लीगल नोटिस मिलते हैं तो कई बार हम अपने आपसे ये सवाल पूछते हैं कि ये हो क्या रहा है?
आज मैं आपके सामने विक्टिम कार्ड नहीं खेल रहा हूं. बल्कि आपको ये बता रहा हूं कि आप सबकी जो शक्ति है वो ऐसे मुट्ठी भर लोगों की शक्ति से कहीं ज्यादा है. हो सकता है कि आज भी हमें बहुत सारे पत्रकारों और बुद्धिजीवियों का साथ ना मिल रहा हो, बहुत सारे नेता भी चुप हैं. हमारी ये खबर विदेशी मीडिया में भी नहीं छपेगी. लेकिन हमारे साथ आप खड़े हैं, इस देश की जनता खड़ी है. हम भी आपको आश्वासन देना चाहते हैं कि हम आपके साथ हमेशा ऐसे ही खड़े रहेंगे और आपके भरोसे को कभी टूटने नहीं देंगे.
11 मार्च को हमने सिर्फ जमीन जेहाद का ही सच नहीं दिखाया, बल्कि हमने लगातार उन लोगों को एक्सपोज किया जो देश को बांटने की साजिश रच रहे हैं. ये सच दिखाना ही हमारा सबसे बड़ा गुनाह है और आज हमने खुद अपने गुनाहों की एक लिस्ट तैयार की है. क्योंकि अगर सच दिखाना अपराध है तो हम बार-बार ये अपराध करते रहेंगे. फिर चाहे इसकी हमें जो सजा दी जाए.
इसकी शुरुआत इस साल जनवरी के महीने से हुई थी. तब हमने आपको PFI यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का सच दिखाया था. हमने आपको बताया था कि कैसे ये संगठन देश में इस्लामिक राज की स्थापना का सपना देख रहा है. हमने आपको ये भी बताया था कि कैसे इस संगठन के तार केरल में लव जेहाद से जुड़ते रहे हैं और ये संगठन नागरिकता कानून का विरोध करने वालों की फंडिंग करने का भी आरोपी है.
हमने आपको केरल की उन लड़कियों की गवाही भी सुनवाई थी जिनका जबरन धर्म परिवर्तन कर दिया गया था. हमने उस हादिया केस का भी जिक्र किया था, जिसमें अखिला को हादिया बना दिया गया था और अखिला के पिता पूर्व सैनिक होते हुए भी इसे रोक नहीं पाए. कहा जाता है कि हादिया का पति PFI का एक्टिविस्ट था और इसीलिए सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की पैरवी करने के लिए PFI ने एक करोड़ रुपये खर्च कर दिए थे. लेकिन ये सच भी जेहादी गैंग को पसंद नहीं आया.
अपनी एक रिपोर्टिंग में हमने आपको ये भी बताया था कि कैसे PFI के तार आतंकवादी संगठनों से भी जुड़े हुए हैं.
PFI पर किए गए इस DNA से ठीक दो दिन पहले मैं खुद शाहीन बाग गया था. शाहीन बाग में उन दिनों नए नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहा था. लेकिन प्रदर्शनकारियों ने मुझे वहां भी घुसने नहीं दिया.
मेरे ठीक सामने PFI के कई दफ्तर थे मैं वहां जाना चाहता था और इन विरोध प्रदर्शनों के लिए की गई फंडिंग का सच जानना चाहता था. लेकिन बीच में शाहीन बाग के प्रदर्शनकारी थे जो ज़ी न्यूज़ को वहां देखकर परेशान हो गए थे और हमें आगे बढ़ने से रोक रहे थे. मुझे ऐसा लग रहा था कि मुझे अपने ही देश के एक इलाके में जाने के लिए शायद वीजा लेना होगा.
इसके बाद इसी वर्ष फरवरी में मैंने ग्राउंड जीरो पर जाकर दिल्ली दंगों का सच आपको दिखाया था. मैंने आपके दिखाया था कि कैसे ये दंगे एक सोची समझी साजिश का हिस्सा थे.
हमने दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन का भी सच आपको दिखाया था. ताहिर हुसैन का नाम लेना ही इन लोगों को बुरा लग गया.
पिछले कुछ दिनों से हम आपको लगातार तबलीगी जमात का सच भी दिखा रहे थे. इस दौरान हमने देश के मान सम्मान पर थूकने वालों को भी एक्सपोज किया और इसी बात पर ये लोग हमारे दुश्मन बन गए.
इससे पहले देश के शहरों में छिपकर बैठे अर्बन नक्सल्स के बारे में हमने आपको बताया था और JNU में देश विरोधी नारेबाजी का सच भी आपको दिखाया था. लेकिन ये सारे सच ना तो टुकड़े-टुकड़े गैंग को पसंद आए, ना ही अफजल प्रेमी गैंग को, ना ही बुद्धिजीवियों को, और ना ही कुछ राजनीतिक पार्टियों को.
ऐसी ही रिपोर्टिंग की वजह से ज़ी न्यूज़ इन सब लोगों का दुश्मन नंबर 1 बन गया. केरल में मेरे खिलाफ दर्ज की गई FIR भी इसी दुश्मनी का नतीजा है. लेकिन हम इस FIR को असली पुलित्जर पुरस्कार मानते हैं क्योंकि कम से कम ये FIR सच दिखाने का नतीजा तो है.
ये FIR IPC की धारा 295A के तहत दर्ज की गई है. जिसके तहत ज़ी न्यूज़ पर मुसलमानों की धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप लगाए गए हैं. ये धारा सच बोलने वाले पत्रकारों के खिलाफ बदले की कार्रवाई का हथियार बन गई है. आप वर्ष 2020 को पत्रकारिता का आपातकाल भी कह सकते हैं क्योंकि इस वर्ष कई राज्यों की सरकारों ने पत्रकारों के खिलाफ ऐसे ही बदले की कार्रवाई की है.
लेकिन सवाल ये है कि जेहाद का सच दिखाना गुनाह कैसे हो सकता है? जिस विचारधारा के दम पर पूरी दुनिया में हजारों लोगों का खून बहाया जाता है. बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन किया जाता है. आतंकवादी हमले किए जाते हैं उस विचारधारा पर बात करना अपराध कैसे हो सकता है?
DNA में जमीन जेहाद पर बात करने से किसी मुसलमान की भावना कैसे आहत हो सकती है? लव जिहाद का सच कैसे किसी को चोट पहुंचा सकता है? अपने ही देश के एक इलाके में जाना गुनाह कैसे हो सकता है? कोई भी समझदार व्यक्ति कहेगा कि इन सारी बातों में कुछ गलत नहीं है.
लेकिन हमारे देश में एक ऐसा धार्मिक ईको सिस्टम तैयार किया जा रहा है जिसके तहत ये सारी बातें गुनाह हैं.
(सुधीर चौधरी ZEE NEWS के एडिटर इन चीफ हैं)
(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)