हॉकी के पूर्व दिग्गजों ने कहा, बेहतर प्रदर्शन के लिए भारतीय कोच नियुक्त करे हॉकी इंडिया
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हॉकी के पूर्व दिग्गजों ने कहा, बेहतर प्रदर्शन के लिए भारतीय कोच नियुक्त करे हॉकी इंडिया

सोढी और सिंह ने एक सुर में सवाल उठाया, ‘‘क्या हॉकी इंडिया को आठ बार के ओलंपिक चैंपियन भारत में कोई ऐसा खिला​ड़ी नहीं दिखता जिसे टीम का कोच बनाकर महंगे विदेशी कोच का आयात बंद किया जा सके.’’

कोच रोलेंट ओल्टमेंस को 2 सितंबर को हॉकी इंडिया ने बाहर का रास्ता दिखा दिया. (फाइल फोटो)

जालंधर: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हॉकी टीम के लगातार औसत प्रदर्शन को देखते हुए कोच रोलेंट ओल्टमेंस को हटाये जाने के बाद पूर्व खिलाड़ियों ने कहा कि बेहतर करने और अतीत के गौरव को दोबारा प्राप्त करने के लिए प्रशासकों को भारतीय कोच नियुक्त करना चाहिए ताकि खिलाड़ियों और कोच के बीच किसी प्रकार की संवादहीनता की स्थिति पैदा नहीं हो. ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता सुरिंदर सिंह सोढी ने कहा, ‘‘हॉकी इंडिया को इस विदेशी कोच को बहुत पहले हटा देना चाहिए था. ओल्टमेंस को हटाने में काफी देर हो गयी. हालांकि, अब उन्हें टीम के अच्छे प्रदर्शन के लिए खास तौर से विश्वकप को ध्यान में रखते हुए देश के किसी खिलाड़ी को टीम का कोच नियुक्त करने पर गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए.’’

हॉकी टीम के पूर्व कोच राजिंदर सिंह ने भी विदेशी की बजाए देसी कोच नियुक्त किये जाने की वकालत की. उन्होंने कहा, ‘‘विदेशी कोच भारत के खिलाड़ियों के हिसाब से उपयुक्त नहीं हैं. और अब यह जरूरी है विश्व स्तर पर हॉकी के खोये गौरव को प्राप्त करने के लिए हॉकी इंडिया देश के किसी खिलाड़ी को कोच नियुक्त करे.’’ सोढी और सिंह ने एक सुर में सवाल उठाया, ‘‘क्या हॉकी इंडिया को आठ बार के ओलंपिक चैंपियन भारत में कोई ऐसा खिला​ड़ी नहीं दिखता जिसे टीम का कोच बनाकर महंगे विदेशी कोच का आयात बंद किया जा सके.’’

पेनल्टी कॉर्नर ​विशेषज्ञ रहे सोढी ने कहा, ‘‘ओल्टमेंस छठा विदेशी कोच है जिसे समय से पहले हटा दिया गया. तो हॉकी इंडिया के प्रशासक यह क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि विदेशी कोच से हॉकी टीम का प्रदर्शन ठीक नहीं हो रहा है और जैसा प्रदर्शन हो रहा है वैसा तो भारतीय टीम बिना कोच के भी कर सकती है.’’ द्रोणाचार्य पुरस्कार प्राप्त सिंह ने कहा, ‘‘मैं शुरू से विदेशी कोच का विरोध करता रहा हूं. आज भी विरोध करता हूं. यह हॉकी इंडिया ही नहीं, खिलाड़ियों और सभी हॉकी प्रेमियों को पता है कि विदेशी कोच से कुछ हासिल नहीं होने वाला है. अगर हासिल हुआ होता तो छह-छह विदेशी कोच की नियुक्ति के बाद उन्हें समय से पहले बर्खास्त नहीं किया जाता.’’

दोनों पूर्व खिलाड़ियों ने कहा, ‘‘भारत की संस्कृति विदेशियों से मेल नहीं खाती है. उनकी भाषायें भी अलग हैं. कई खिलाड़ियों को अग्रेंजी समझने में कुछ कठिनाई भी आती है. ऐसे में कोच और खिलाड़ियों में संवादहीनता की स्थिति आ जाती है और दोनों एक दूसरे की बात को समझ ही नहीं पाते हैं.’’ हॉकी के दोनों पूर्व दिग्गजों ने कहा कि वह हॉकी इंडिया के प्रशासकों से अपील करते हैं कि विश्वकप को ध्यान में रखते हुए इस बार किसी भारतीय को कोच पद पर नियुक्त करें और उन्हें भी वही सुविधा प्रदान करें जो विदेशी कोच को दी जाती है जिससे निश्चित तौर पर टीम के प्रदर्शन की दशा में सुधार देखने को मिलेगा.

सोढी ने यह भी कहा कि अगर हॉकी इंडिया को लगता है कि विदेशी कोच ही प्रदर्शन सुधार सकता है तो आठ दस अच्छे भारतीय कोचों का चयन कर उन्हें प्रशिक्षण के लिए विदेश भेज दिया जाए ता​कि वे वापस आ कर खिलाडियों को अपनी भाषा में कोचिंग दे सकें. उन्होंने कहा कि एक तरफ जहां कोच और खिलाड़ियों को एक दूसरे की बात समझने में कोई कठिनाई नहीं होगी, वहीं दूसरी ओर हॉकी इंडिया के लाखों रुपये के संसाधान की भी बचत हेागी जिसे खिलाडियों के प्रशिक्षण पर खर्च किया जा सकेगा.

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