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क्या कभी ऐसा हुआ है कि आपने किसी को फोन या मैसेज किया हो, लेकिन मन ही मन आप यही सोच रहे हों कि उन्हें फोन ना ही उठाएं? अगर ऐसा होता है, तो हो सकता है आपको "टेलीफोनोफोबिया" हो. इसे "टेलीफोबिया" या "फोन फोबिया" भी कहते हैं. एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम में, ब्रिटेन के नॉटिंघम कॉलेज ने छात्रों को टेलीफोनोफोबिया से उबरने में मदद करने के लिए कोचिंग सेशन शुरू किए हैं...
क्या है Telephonophobia?
"टेलीफोनोफोबिया" शब्द का इस्तेमाल पहली बार साल 1992 में किया गया था. टेलीफोनोफोबिया का मतलब है फोन कॉल करना या उठाना का डर. रिसर्च के मुताबिक, यह एक तरह का सामाजिक डर है. वेबएमडी के अनुसार, 'टेलीफोनोफोबिया की तुलना ग्लोसोफोबिया (मंच पर बोलने का डर) से की जाती है क्योंकि दोनों में ही लोगों के सामने कुछ करना पड़ता है.'
यह एगोरफोबिया (खुले स्थानों का डर) से भी जुड़ा हो सकता है. कुछ लोग फोन पर बात करने से बचते हैं, मैसेज करना पसंद करते हैं, सामाजिक चिंता विकार से पीड़ित होते हैं, या उन्हें फोन पर बुरी खबरें मिली हैं.
निकाला गया नया कोर्स
ब्रिटेन के नॉटिंघम कॉलेज में करियर गाइडेंस देने वाली लिज़ बैक्स्टर ने एक प्रमुख ब्रिटिश मीडिया संस्थान को बताया कि छात्रों में फोन करने का डर एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. बैक्स्टर ने कहा, 'युवाओं में फोन का इस्तेमाल करने का आत्मविश्वास बहुत कम है.'
ब्रिटेन के नॉटिंघम कॉलेज में शुरू किया गया नया कोर्स प्रैक्टिकल क्लासरूम एक्सरसाइज पर केंद्रित होगा. बैक्स्टर ने एक प्रमुख ब्रिटिश मीडिया को बताया कि छात्र भूमिका निभाएंगे. उन्होंने कहा, 'ये अभ्यास छात्रों को धीरे-धीरे अपने डर से बाहर निकलने में मदद करेंगे.'
इस कोर्स का मुख्य मकसद छात्रों में आत्मविश्वास बढ़ाना है. आज के समय में जहां सब कुछ बहुत तेजी से होता है, इस कोर्स में छात्रों को फोन पर बात करने की कला सिखाई जाएगी.