Kamal Nath: छिंदवाड़ा लोकसभा सीट कमलनाथ का गढ़ माना जाता रहा है और वो यहां से लगातार चुनाव जीतते रहे हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की आंधी के बीच भी कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ लोकसभा का चुनाव जीत कर संसद पहुंचे थे.
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Madhya Pradesh Chunav 2023: मध्य प्रदेश का छिंदवाड़ा लोकसभा सीट कमलनाथ का गढ़ माना जाता रहा है. कमलनाथ यहां से लगातार चुनाव जीतते रहे हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में भाजपा की आंधी चली थी. इसके बाद भी कांग्रेस जिस एकमात्र लोकसभा सीट को बचा पाई थी, वह छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र ही था. इस सीट से कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ लोकसभा का चुनाव जीत कर संसद पहुंचे थे.
कमलनाथ इस वजह से नहीं लड़ पाए थे चुनाव
कमलनाथ 2019 में लोकसभा चुनाव इसलिए नहीं लड़ पाए थे, क्योंकि वह उस समय राज्य के मुख्यमंत्री थे. छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र के छिंदवाड़ा विधान सभा से ही विधायक थे. कमलनाथ एक बार फिर से छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले छिंदवाड़ा विधानसभा सीट से ही विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. इसके साथ ही कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भी हैं. यानी अगर कांग्रेस जीतती है तो राज्य के अगले मुख्यमंत्री कमलनाथ ही होंगे.
BJP की कमलनाथ को छिंदवाड़ा में घेरने की तैयारी
बीजेपी विपक्ष के बड़े नेताओं को घेरने की तैयारी कर रही है. पार्टी कमजोर सीटों को जीतने की कोशिश में लगी है. इसकी के तहत कमलनाथ को उनके ही गढ़ छिंदवाड़ा में घेरने की कोशिश शुरू कर दी है. दरअसल, भाजपा एक साथ दो मंसूबों को लेकर कमलनाथ के गढ़ में काम कर रही है. भाजपा का पहला मंसूबा कमलनाथ को छिंदवाड़ा में कड़ी टक्कर देकर छिंदवाड़ा तक ही सीमित रखने की है. ताकि वह पूरे प्रदेश में बहुत ज्यादा ध्यान ना दे पाएं. भाजपा का दूसरा मकसद यह है कि विधानसभा चुनाव में बतौर विधायक भले ही कमलनाथ चुनाव जीत जाएं, लेकिन बीजेपी इस इलाके की अन्य विधानसभा सीटों पर अपना जनाधार बढ़ाए, ताकि लोकसभा चुनाव में वह छिंदवाड़ा संसदीय सीट जीत सके.
विधानसभा सीट, नहीं तो लोकसभा सही
पार्टी का मकसद छिंदवाड़ा जीतना है, विधानसभा सीट नहीं तो लोकसभा ही सही और 2023 नहीं तो 2024 ही सही. इसके लिए भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह हिंदुत्व की रणनीति और माइक्रो मैनेजमेंट के अपने असरदार नुस्खे को कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में आजमा रहे हैं.
वैसे तो भाजपा ने पहले ही छिंदवाड़ा को अपने लिए कमजोर सीटों वाली सूची में शामिल कर इस पर बड़े नेताओं की ड्यूटी लगा रखी थी, लेकिन चुनाव को देखते हुए भाजपा अब बूथ स्तर तक जाकर माइक्रो मैनेजमेंट कर रही है.
माइक्रो मैनेजमेंट के जरिए घेरने की तैयारी
छिंदवाड़ा क्षेत्र में बिहार और उत्तर प्रदेश मूल के रहने वाले लोग बड़ी संख्या में हैं. इन वोटर्स को साधने के लिए बीजेपी ने खासतौर से बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को तैनात किया है. सुशील मोदी के साथ-साथ केंद्रीय मंत्री भानु प्रताप वर्मा भी छिंदवाड़ा में डेरा जमाए हुए हैं. लोध मतदाताओं को साधने के लिए केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल तैनात हैं. ब्राह्मण वोटर्स को साधने के लिए प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के कार्यक्रम लगातार आयोजित किए जा रहे हैं. मोदी सरकार के आधा दर्जन से ज्यादा मंत्री छिंदवाड़ा जा चुके हैं. माइक्रो मैनेजमेंट की समीक्षा के लिए अमित शाह स्वयं छिंदवाड़ा का दौरा कर चुके हैं.
हिंदुत्व के एजेंडे पर कमलनाथ को घेरने की कोशिश
हाल के दिनों में कमलनाथ भाजपा की हिंदुत्व की पिच पर आकर ही बैटिंग कर रहे हैं. कमलनाथ अपनी छवि हिंदुत्ववादी नेता के तौर पर बनाने का लगातार प्रयास कर रहे हैं. कमलनाथ की इस राजनीतिक चाल को भांपकर अमित शाह ने स्वयं उनके गढ़ में रैली कर इस छवि को तोड़ने का प्रयास किया. अमित शाह ने हाल ही में छिंदवाड़ा में एक बड़ी रैली कर अगले साल 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम का जिक्र किया. कांग्रेस, कांग्रेस आलाकमान और कमलनाथ पर जमकर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस ने किस तरह से हमेशा राम मंदिर निर्माण को अटकाने की कोशिश की. अमित शाह का मकसद बिल्कुल साफ था कि कमलनाथ के कोर वोटरों को यह समझाने का प्रयास किया जाए कि कमलनाथ सिर्फ चुनाव को देखते हुए हिंदुत्ववादी नेता की छवि बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
1980 से छिंदवाड़ा में रहा है कमलनाथ का दबदबा
आपको याद दिला दें कि छिंदवाड़ा लोकसीट से 1980 में कमलनाथ ने पहली बार लोकसभा का चुनाव जीता था. उसके बाद से लेकर कमलनाथ 9 बार छिंदवाड़ा से सांसद चुने गए हैं और एक-एक बार उनकी पत्नी और बेटे ने यहां से लोकसभा का चुनाव जीता है. कमलनाथ को सिर्फ एक बार 1997 में भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन, ना तो उससे पहले और ना ही उसके बाद कमलनाथ या उनके परिवार को यहां हार का मुंह देखना पड़ा. छिंदवाड़ा आज़ादी के बाद से ही कांग्रेस का गढ़ बना हुआ है और भाजपा इसी गढ़ में सेंध लगाने में जुट गई है.
(इनपुट- न्यूज़ एजेंसी भाषा)