ब्रिटेन ने सोमवार को कहा है कि कोरोना वायरस प्रकोप के बारे में चीन ने जो अब तक जानकारी साझा की है उसे लेकर चीन से कई सवाल हैं.
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नई दिल्ली: ब्रिटेन ने सोमवार को कहा है कि कोरोना वायरस प्रकोप के बारे में चीन ने जो अब तक जानकारी साझा की है उसे लेकर चीन से कई सवाल हैं. जबकि अमेरिका ने हाल ही के दिनों में की गई बयानबाजी में कोरोना वायरस के लिए चीन को साफ तौर पर दोषी ठहराया है. अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपिओ ने रविवार को कहा था कि यह बीमारी एक चीनी लैब से आई थी.
बात दें कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने निष्कर्ष निकाला है कि वायरस मानव निर्मित या आनुवंशिक रूप से संशोधित नहीं था. हालांकि वॉशिंगटन ने अब तक सार्वजनिक रूप से इस बात को लेकर कोई सबूत पेश नहीं किया है कि यह वायरस एक लैब से आया है. जबकि बीजिंग इस बात को दृढ़ता से मना करता आ रहा है.
चीन ने जानबूझकर मिटाए सबूत
ऑस्ट्रेलियन टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक अमेरिका के नेतृत्व वाली फाइव आईज इंटेलिजेंस कंसोर्टियम ने 15 पन्नों के एक शोध डोजियर में कहा था कि चीन ने "अंतरराष्ट्रीय पारदर्शिता पर हमला करके " उन सबूतों को जानबूझकर दबाया या नष्ट कर दिया, जिससे हजारों लोगों की जान चली गई है.
फाइव आईज ग्रुप्स में यूएस, ब्रिटिश, कनाडाई, ऑस्ट्रेलियन और न्यूजीलैंड की खुफिया सेवाएं शामिल हैं.
फाइव आईज की इस रिसर्च को लेकर ब्रिटिश रक्षा सचिव बेन वालेस ने कहा, "हर दिन मुझे दुनिया भर में हमारी एजेंसियों से खुफिया बुलेटिन मिलते हैं. मैं व्यक्तिगत बुलेटिनों पर टिप्पणी नहीं करता, जो मेरे पास नहीं है और जो मैंने नहीं देखा है. ऐसा करना गलत होगा."
उन्होंने यह भी कहा, '' चीन को इस बारे में खुले और पारदर्शी होने की जरूरत है कि क्योंकि उनके यहां इसका प्रकोप बाकी देशों की तुलना में कम रहा है और वह इसे खत्म करने में सफल भी हुआ है. गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को कहा कि उन्हें विश्वास है कि कोरोनोवायरस की उत्पत्ति एक चाइनीज वायरोलॉजी लैब में हुई है.