चीन (China) केवल भारत ही नहीं दुनिया के अधिकांश देशों के लिए खतरा बना हुआ है. वह सीमा विवाद को हवा दे रहा है, दूसरे देशों की जमीन पर दावा ठोक रहा है और अपने दावों को सही ठहराने के लिए सारी हदें पार कर रहा है.
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नई दिल्ली: चीन (China) केवल भारत ही नहीं दुनिया के अधिकांश देशों के लिए खतरा बना हुआ है. वह सीमा विवाद को हवा दे रहा है, दूसरे देशों की जमीन पर दावा ठोक रहा है और अपने दावों को सही ठहराने के लिए सारी हदें पार कर रहा है. मौजूदा वक्त में ऐसे 18 देश हैं, जिनके साथ ड्रैगन सीमा विवाद को जानबूझकर तूल दे रहा है.
चीन ने अक्साई चिन में भारत की 38,000 वर्ग किमी भूमि पर अवैध कब्जा कर रखा है. पूर्वी क्षेत्र में, चीन अरुणाचल प्रदेश के लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर दावा जताता है. मध्य क्षेत्र, जो ज्यादातर उत्तराखंड को कवर करता है, में भारत की चीन के साथ 545 किलोमीटर लंबी सीमा है. बीजिंग अलग-अलग इलाकों के लगभग 2,450 वर्ग किमी क्षेत्र को अपना बता रहा है.
नेपाल-चीन सीमा विवाद (Nepal-China border dispute)
चीन ने नेपाल के भी कई इलाकों पर कब्ज़ा जमाया हुआ है. इस संबंध में नेपाली कांग्रेस के सांसदों ने प्रतिनिधि सभा में एक प्रस्ताव भी रखा है, जिसमें ओली सरकार से मांग की गई है कि चीन द्वारा कब्जाए क्षेत्रों को मुक्त कराया जाए. नेपाली सांसदों का आरोप है कि चीन द्वारा नेपाल के दोलखा, हुमला, सिंधुपलचौक, संखूवसाभा, गोरखा और रसुवा जिलों में 64 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण किया गया है. साथ ही यह भी दावा किया गया है कि सीमा पर चीन द्वारा 35 खंभों को हटाया गया है, जिसके चलते उत्तरी गोरखा का रूई गांव चीन के तिब्बत क्षेत्र में चला गया है. गोरखा के रूई के 72 और दारचुला के 18 घरों पर बीजिंग का कज्बा है. इतना ही नहीं, मई में चीनी सरकार द्वारा संचालित ‘ग्लोबल टेलीविज़न नेटवर्क’ ने ट्वीट करके माउंट एवरेस्ट पर भी अपना दावा जताया था. हालांकि, बवाल मचने के बाद उसने ट्वीट हटा दिया.
चीन-भूटान विवाद (China-Bhutan border row)
जुलाई 2017 में भूटान ने सीमा पर चीनी अतिक्रमण का विरोध किया था. भूटान की तरफ से कहा गया था कि चीन को सीमा विवाद के निपटारे के लिए उस प्रक्रिया का पालन करना चाहिए, जिस पर सहमति बनी है. हाल ही में चीन ने भूटान के सकतेंग वनजीव अभयारण्य (Sakteng Wildlife Sanctuary) की जमीन को भी विवादित करार दिया है.चीन का ताइवान, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम और जापान के साथ भी समुद्री सीमा विवाद चल रहा है. यहां मौजूद प्राकृतिक संसाधनों पर चीन की नजर है, इसलिए वह सागर में स्थित द्वीपों को अपना बताता रहा है.
पूर्वी चीन सागर विवाद (Eastern China Sea)
चीन का उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया और जापान के साथ Yellow Sea (उत्तर कोरिया/दक्षिण कोरिया) और पूर्वी चीन सागर (दक्षिण कोरिया/जापान) को लेकर विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone) विवाद है.
चीन, पेरासेल द्वीप समूह सहित लगभग समूचे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है. वहीं, वियतनाम जैसे अन्य पक्ष भी इन द्वीपों पर अपनी संप्रभुता का दावा करते हैं. चीन ने Woody Island पर अपना सैन्य अड्डा बनाया है. इसके अलावा, चीन का जापान से भी विवाद चल रहा है. यह विवाद पूर्वी चीन सागर में आने वाले सेनकाकुश द्वीपों की श्रृंखला को लेकर है. वैसे तो ये द्वीप 1890 के बाद से जापान के नियंत्रण में रहे हैं, लेकिन यहां के प्राकृतिक संसाधनों ने चीन को आकर्षित किया है और वह इन पर अपना कब्जा चाहता है.
चीन पूरे ताइवान पर अपना अधिकार जताता है, लेकिन विवाद मुख्य रूप से मैकड्रेसफील्ड बैंक, पेरासेल आइलैंड्स, स्कारबोरो शोअल, दक्षिण चीन सागर के कुछ हिस्सों और स्प्रैटली द्वीप समूह पर है. पेरासेल द्वीप समूह, जिसे वियतनामी में ज़िशा द्वीप (Xisha Islands) के रूप में भी जाना जाता है, दक्षिण चीन सागर में द्वीपों का एक समूह है, जिस पर चीन, ताइवान, वियतनाम और म्यांमार (बर्मा) दावा जताते आये हैं.
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दक्षिण चीन सागर के कुछ हिस्सों को लेकर चीन और फिलीपींस के बीच विवाद है. फिलीपींस इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय भी ले गया था, जहां फैसला उसके पक्ष में आया, लेकिन चीन कुछ सुनने को तैयार नहीं है. वहीं, बेकडू पर्वत और जियानडाओ चीन और उत्तर कोरिया के बीच विवाद की जड़ हैं. चीन ने ऐतिहासिक आधार पर पूरे उत्तर कोरिया (युआन राजवंश, 1271-1368) पर भी अपना अधिकार जताया है. इसी तरह कई समझौतों पर हस्ताक्षर के बावजूद, चीन ने रूस के 160,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर एकतरफा दावा किया है. इसके अलावा, दक्षिण चीन सागर के कुछ हिस्सों पर चीन का सिंगापुर के साथ विवाद है.
दक्षिण कोरिया, लाओस, ताजिकिस्तान, कंबोडिया और मंगोलिया भी चीन के साथ विवाद का सामना कर रहे हैं. तिब्बत 1913 और 1950 के दौरान एक स्वतंत्र देश था, लेकिन अब यहां चीन का कब्जा है. चीनी सेना ने तिब्बत की पूर्वी सीमाओं पर आक्रमण किया और 1950 में उस पर कब्जा कर लिया. इतना ही नहीं, चीन ने पूर्वी तुर्केस्तान (शिनजियांग प्रांत) का 16.6 लाख वर्ग किमी, इनर मंगोलिया के 11.83 लाख वर्ग किमी, ताइवान के 36197 वर्ग किमी, हांगकांग के 1106.66 वर्ग किमी और मकाउ के 32.9 वर्ग किमी क्षेत्र पर कब्जा किया हुआ है.