Korean War Armistic: उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच 25 जून 1950 से 26 जुलाई 1953 तक लड़ाई चली थी. उस लड़ाई में जहां उत्तर कोरिया का साथ चीन दे रहा था वहीं दक्षिण कोरिया के पक्ष में अमेरिका खड़ा था.
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China Thretens America: 70 साल पहले 27 जुलाई को उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच युद्धविराम के लिए समझौता हुआ था. पारंपरिक तौर पर चीन को उत्तर कोरिया और अमेरिका को दक्षिण कोरिया को समर्थक माना जाता रहा है. इन 70 वर्षों में उत्तर कोरिया-दक्षिण कोरिया के साथ साथ चीन और अमेरिका के रिश्तों में उतार-चढ़ाव से दुनिया वाकिफ है. 27 जुलाई को जब कोरियाई युद्धविराम की सालगिरह मनाई जा रही है तो चीन की तरफ से बड़ा बयान आया. इस खास दिन से ठीक पहले दक्षिण कोरिया के बुसान में बैलिस्टिक मिसाइल से लैस अमेरिकी पनडुब्बी पर उत्तर कोरिया की तरफ से प्रतिक्रिया भी आई. उत्तर कोरिया ने ट्विन बैलिस्टिक मिसाइल टेस्ट किया जो जापान के करीब जाकर समंदर में गिरा. अब बात करते हैं कि चीन ने अमेरिका को क्या सीख दी है.
अमेरिका को क्या कर रहा है बार बार गलती
ग्लोबल टाइम्स के एडिटोरियल ने कहा कि अमेरिका ने जिस तरह की नीति पर 70 साल पहले चला था उसी रास्ते पर एक बार फिर आगे बढ़ रहा है. चीन का कहना है कि 1981 के बाद पहली बार अमेरिका ने अपने पनडुब्बी को भेजा. यही नहीं कांग्रेस के कुछ सीनेटर्स ने तो यहां तक कहा कि यह ना सिर्फ उत्तर कोरिया के लिए चेतावनी है बल्कि चीन पर लगाम लगाने का काम भी करेगा. इस तरह की कवायद पर चीन ने कहा कि ऐसा लगता है कि अमेरिका ने गलतियों से सीख नहीं ली है बल्कि बार बार एक जैसी गलती कर रहे हैं. जरूरत है कि अमेरिका भी 70 साल पहले जो कुछ हुआ उससे सबक ले.विश्व युद्ध-2 के बाद कोरियन लड़ाई का क्षेत्रीय राजनीति पर व्यापक असर पड़ा. उसे अमेरिका की बड़ी हार के तौर पर भी देखा जाता है लेकिन दुख की बात यह है कि वो बुरी हार जो किसी भयावह सपने से कम नहीं था उसे भुला दिया गया. उस घटना से सबक ना लेकर जिस तरह अमिरेका आगे बढ़ रहा है वो अमेरिकी लोगों के लिए खतरनाक साबित होने वाला है. आश्चर्य की बात यह कि ज्यादातर अमेरिकी नेता उस सच को स्वीकार नहीं करना चाहते. अमेरिका की विदेश नीति गलत रास्ते पर जा रही है.
एक नजर में कोरिया युद्ध
25 जून 1950 को कोरिया युद्ध की हुई थी शुरुआत
कोरियाई युद्ध के दौरान चीन द्वारा अमेरिकी आक्रामकता का विरोध करने और उत्तर कोरिया को सहायता देने का निर्णय लेने से पहले, उसने बार-बार कड़ी चेतावनी दी थी कि यदि अमेरिकी सेना 38वें समानांतर को पार करती है तो चीन चुप नहीं बैठेगा। हालाँकि, अमेरिका ने यह सोचकर इसे गंभीरता से नहीं लिया कि चीन केवल खोखली धमकियाँ दे रहा है और कार्रवाई नहीं करेगा। परिणामस्वरूप, जब युद्ध के मैदान में उनका सामना चीनी पीपुल्स वालंटियर्स आर्मी से हुआ तो वे घबरा गए। आज, चीन के प्रति एक ऐसी ही बड़ी ग़लतफ़हमी वाशिंगटन में हो रही है। अब और कोरियाई युद्ध के दौर में सबसे बड़ा अंतर यह है कि चीन की ताकत बहुत बढ़ गई है। चीन के सुरक्षा हितों और राष्ट्रीय संप्रभुता का उल्लंघन करने के परिणाम निस्संदेह बहुत अधिक गंभीर होंगे।