Coronavirus Research: कोरोना महामारी के लिए कहीं न कहीं चीन को जिम्मेदार माना जा रहा है. कई रिपोर्ट में यह दावा किया जा चुका है कि चीन की वुहान लैब से ही कोरोना वायरस पूरी दुनिया में फैला. अब अमेरिका ने कोरोना वायरस पर रिसर्च के लिए चीन की वुहान लैब से ही समझौता कर लिया.
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Coronavirus Research: कोरोना महामारी के लिए कहीं न कहीं चीन को जिम्मेदार माना जा रहा है. कई रिपोर्ट में यह दावा किया जा चुका है कि चीन की वुहान लैब से ही कोरोना वायरस पूरी दुनिया में फैला. अब अमेरिका ने कोरोना वायरस पर रिसर्च के लिए चीन की वुहान लैब से ही समझौता कर लिया. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अमेरिका में चीन की वुहान लैब से लाए गए कोरोना वायरस पर रिसर्च किया जा रहा था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह लैब अमेरिका के मोंटाना में है. इस लैब का नेतृत्व अमेरिकी प्रतिरक्षाविज्ञानी डॉ. एंथोनी फौसी कर रहे थे. अमेरिकी लैब में कथित तौर पर चीन के वुहान की लैब से लाए गए कोरोना वायरस पर प्रयोग किया जा रहा था, जिसे कोविड महामारी का स्रोत माना जाता है. यह खुलासा 2018 में जर्नल वाइरस में प्रकाशित एक शोध पत्र के फिर से सामने आने के बाद हुआ, जिसमें अस्तित्व के साथ-साथ वहां किए गए प्रयोगों की प्रकृति का भी पता चला.
कथित तौर पर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) ने 2018 में मोंटाना की एक लैब में 12 मिस्र के चमगादड़ों को WIV1 नामक 'SARS-जैसे' वायरस से संक्रमित किया था. यह खुलासा सीधे तौर पर अमेरिकी सरकार और वुहान लैब को दुनिया भर में खतरनाक वायरस अनुसंधान की संबंधित फंडिंग से जोड़ता है.
2018 में यह प्रयोग मोंटाना में NIH की रॉकी माउंटेन लेबोरेटरीज में किया गया था. लैब की देखरेख डॉ. एंथोनी फौसी द्वारा की गई थी. यह शोध एनआईएच की रॉकी माउंटेन लेबोरेटरीज और उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के सहयोगी राल्फ बारिक के बीच एक संयुक्त परियोजना थी. वैज्ञानिकों ने एक चिड़ियाघर से मिस्र के 12 फल वाले चमगादड़ों को लिया और उन्हें WIV1-कोरोनावायरस का टीका लगाया. यह कोरोनोवायरस सबसे पहले चीनी रूफस हॉर्सशू चमगादड़ों में पाया गया था.
शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि WIV1-कोरोनावायरस 'एक मजबूत संक्रमण' का कारण नहीं बना और 'वायरस की प्रतिकृति के बहुत सीमित सबूत देखे गए.' चमगादड़ों को कैटोसिन वन्यजीव अभयारण्य से लाया गया था. इस वन्यजीव अभयारण्य में पशु अधिकारों के उल्लंघन का इतिहास रहा है. बता दें कि दुनिया के अधिकांश गेन-ऑफ-फंक्शन वायरस अनुसंधान अमेरिका में आयोजित किए जाते हैं. इस तरह के शोध में कथित तौर पर रोगजनकों को अधिक संक्रामक बनाना शामिल है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वैज्ञानिक भविष्य के प्रकोप से आगे रहें.
लेकिन इस तरह के शोध की हमेशा आलोचना की गई है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसे शोध में हमेशा वायरस के लीक होने का खतरा बना रहता है.