DNA ANALYSIS: ओलंपिक खेलों में डबल स्टैंडर्ड्स, जानिए ताइवान क्यों नहीं गा सकता अपना राष्ट्रगान?
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DNA ANALYSIS: ओलंपिक खेलों में डबल स्टैंडर्ड्स, जानिए ताइवान क्यों नहीं गा सकता अपना राष्ट्रगान?

ताइवान में इसे लेकर कई मुहिम भी चलाई जा चुकी हैं, लेकिन इसके बावजूद ये दोहरे मापदंड आज भी जारी हैं. दुनिया के इतिहासकार और बड़े लेखक इसे उसके लिए अपमानजनक मानते हैं क्योंकि, ओलंपिक खेलों में उस पर पहले ये बंदिशें नहीं थीं.

DNA ANALYSIS: ओलंपिक खेलों में डबल स्टैंडर्ड्स, जानिए ताइवान क्यों नहीं गा सकता अपना राष्ट्रगान?

नई दिल्ली: आज हम आपको ओलंपिक खेलों से जुड़े कुछ Double Standards के बारे में बताएंगे. भारत की बॉक्सर लवलीना ने दूसरे क्वार्टर फाइनल में ताइवान की बॉक्सर को हरा कर सेमीफाइनल में अपनी जगह पक्की की है, लेकिन ओलंपिक खेलों में ये हार ताइवान की खिलाड़ी की नहीं, बल्कि चाइनीज ताइपे की खिलाड़ी की है. ताइवान इसी नाम से ओलंपिक खेलों में भाग लेता है. यानी इन खेलों में ताइवान खुद को ताइवान भी नहीं कह सकता. सोचिए, एक देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा?

  1. वर्ष 1981 में ताइवान को Chinese Taipei नाम दिया था.
  2. तभी ये नियम बनाया गया कि ताइवान अपने राष्ट्र ध्वज के साथ नहीं खेलेगा.
  3. Tokyo Olympics में ताइवान का जो झंडा है, उसमें ओलंपिक खेलों वाली रिंग्स बनी हुई हैं.

चीन के डर से नहीं मिलता ये सम्मान

27 जुलाई को ताइवान की वेट लिफ्टर ने जब 59 किलोग्राम भार वर्ग में गोल्ड मेडल जीता था तो उन्हें ये कहने की भी इजाजत नहीं थी कि ये मेडल उन्होंने ताइवान के लिए जीता है. गोल्ड मेडल लेने के लिए जब वो पोडियम पर खड़ी हुईं तो इस दौरान न तो ताइवान का राष्ट्रीय ध्वज ऊपर किया गया और न ही ताइवान का राष्ट्रगान इस दौरान बजाया गया, जबकि किसी और देश का खिलाड़ी गोल्ड मेडल जीतता है, तो उसके देश का राष्ट्रीय ध्वज भी ऊपर किया जाता है और उस देश का राष्ट्रगान भी होता है, लेकिन इस देश को चीन के डर से ये सम्मान ओलंपिक खेलों में कभी नहीं मिलता.

ताइवान एक स्वतंत्र और सम्प्रभु देश है, वहां लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार का शासन है, ताइवान का अपना राष्ट्रीय ध्वज है, अपना राष्ट्रगान है और अपनी अलग मुद्रा भी है, लेकिन इसके बावजूद चीन के डर से वो ओलंपिक में खुद को एक देश के तौर पर स्थापित नहीं कर सकता और इस पर International Olympic Committee भी चीन के पक्ष में दिखती है.

इसी कमेटी ने वर्ष 1981 में ताइवान को Chinese Taipei नाम दिया था और तभी ये नियम बनाया गया कि ताइवान अपने राष्ट्र ध्वज के साथ नहीं खेलेगा. अभी Tokyo Olympics में ताइवान का जो झंडा है, उसमें ओलंपिक खेलों वाली रिंग्स बनी हुई हैं.

समझने वाली बात ये है कि International Olympic Committee चीन के डर से इस देश को इसके नाम से नहीं खेलने देती, लेकिन इन्हीं खेलों में फिलिस्तीन के खिलाड़ियों को फिलिस्तीन ओलंपिक कमेटी के नाम के खेलने की इजाजत है, जबकि मौजूदा समय में फिलिस्तीन नाम का कोई देश, दुनिया के नक्शे पर नहीं है और इजरायल और फिलिस्तीनियों के बीच इसी को लेकर संघर्ष है.

यहां सवाल ये है कि अगर International Olympic Committee निष्पक्ष होती तो वो ताइवान के स्टेट्स को भी उसी नजरिए देखती, जिस नजरिए से फिलिस्तीन के स्टेट्स को देखा जाता है.

मेडल जीतने पर भी राष्ट्रगान नहीं बजाया जाता

जिन देशों पर चीन अपना दावा करता है, उन पर Olympic Committee का भी पक्ष चीन से मिलता जुलता है. इसे आप हॉन्ग कॉन्ग के एक उदाहरण से भी समझ सकते हैं. चीन, हॉन्ग कॉन्ग पर अपना दावा करता है और इस वजह से ओलंपिक्स में हॉन्ग कॉन्ग को इस नाम से खेलने की इजाजत नहीं है. ओलंपिक खेलों में ये देश हॉन्ग कॉन्ग चीन के नाम से भाग लेता है और यहां के खिलाड़ियों के गोल्ड मेडल जीतने पर भी वहां का राष्ट्रगान नहीं बजाया जाता.

पिछले दिनों जब Tokyo Olympics में हॉन्ग कॉन्ग के Fencer ने गोल्ड मेडल जीता था तो मेडल सेरेमनी में चीन का राष्ट्रगान बजाया गया था, लेकिन जब हॉन्ग कॉन्ग के एक मॉल में इस सेरेमनी को देख रहे लोगों ने इसका विरोध किया तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इनमें वहां के एक 40 वर्षीय पत्रकार भी थे.

ताइवान में तो इसे लेकर कई मुहिम भी चलाई जा चुकी हैं, लेकिन इसके बावजूद ये दोहरे मापदंड आज भी जारी हैं. दुनिया के इतिहासकार और बड़े लेखक इसे उसके लिए अपमानजनक मानते हैं क्योंकि, ओलंपिक खेलों में उस पर पहले ये बंदिशें नहीं थीं.

ओलंपिक खेलों का बहिष्कार

1952 के ओलंपिक खेलों के लिए जब ताइवान और चीन दोनों को निमंत्रण भेजा गया था तो दोनों देशों की सरकारों ने खुद को चीन का असली प्रतिनिधि होने का दावा किया था. हालांकि चीन के दबाव के बाद तब ताइवान को पीछे हटना पड़ा. वर्ष 1956 में जब ताइवान ने Formosa China नाम से ओलंपिक खेलों में भाग लिया तो चीन को ये बात पसंद नहीं आई और उसने ओलंपिक खेलों का बहिष्कार करने का फैसला किया. 

ताइवान को Formosa नाम Portugal ने 16वीं सदी में दिया था, जिसका मतलब होता है सुंदर. ये विवाद लम्बे समय तक चला और 1972 में ताइवान Republic of China के नाम से ओलंपिक्स में शामिल हुआ.

चीन ने ओलंपिक खेलों में 32 वर्षों तक हिस्सा नहीं लिया

हालांकि चीन के दबाव के बाद वर्ष 1979 में ये नाम रद्द हो गया और International Olympic Committee ने बीजिंग की सरकार को चीन का आधिकारिक प्रतिनिधि मान लिया और उसके बाद से ताइवान कभी ताइवान के नाम से ओलंपिक्स में नहीं जा पाया और एक देश के तौर पर उसके लिए ये सबसे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण है. बड़ी बात ये है कि ताइवान पर अपने दावे को मजबूत करने के लिए चीन ने ओलंपिक खेलों में 32 वर्षों तक हिस्सा नहीं लिया.

International Olympic Committee के डबल स्टैंडर्ड्स 

International Olympic Committee के डबल स्टैंडर्ड्स का एक और उदाहरण आप रूस से समझ सकते हैं. इस समय आप ओलंपिक खेलों की मेडल टैली देखेंगे तो उसमें आपको रूस का नाम कहीं नजर नहीं आएगा.

रूस की जगह आप ROC नाम का एक देश देखेंगे, जिसके नाम से रूस के खिलाड़ी Tokyo Olympics में खेल रहे हैं. ROC का मतलब है, Russian Olympic Committee.

वर्ष 2016 के रियो ओलंपिक्स में डोपिंग स्कैंडल के बाद रूस पर इन खेलों में भाग लेने पर प्रतिबंध लग गया था, लेकिन क्योंकि रूस इन खेलों में मेडल जीतने वालों में पूरी दुनिया में दूसरे स्थान पर है, इसलिए कमेटी ने रूस पर बैन तो लगाया, लेकिन साथ ही उसके खेलने के लिए नया रास्ता भी निकाल दिया. अब सोचिए, ये कैसा बैन हुआ?

यहां एक सवाल ये भी है कि अगर यही स्कैंडल किसी और देश ने किया होता तो क्या उसके साथ भी ऐसा ही रवैया अपनाया जाता. 

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