China: जब भारतीय राजा 'सिंहपुर' में बस गए... वरना चीन आज भारत में होता
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China: जब भारतीय राजा 'सिंहपुर' में बस गए... वरना चीन आज भारत में होता

Singapore News: सिंगापुर का भारत से सदियों पुराना नाता है. पीएम मोदी ने हाल ही में कहा था कि भारत में कई सिंगापुर बनाने हैं. इसके बाद सिंगापुर का इतिहास सर्च होने लगा. आइए आपको सुनाते हैं सिंगापुर की अनसुनी कहानी.

China: जब भारतीय राजा 'सिंहपुर' में बस गए... वरना चीन आज भारत में होता

Singapore origin History: प्रधानमंत्री मोदी ने सिंगापुर के सक्सेस रेट को देखते हुए, भारत में खुद के ‘कई सिंगापुर’ बनाने की बात कही है. सिंगापुर की उत्पत्ति का भारत से सदियों पुराना यानी एतिहासिक नाता है. खासकर सिंगापुर कैसे बना? ये कहानी बहुत कम लोगों को ही मालूम होगी. सिंगापुर की कहानी की बात करें तो इसका कनेक्शन चीन के दस्तावेजों के हिसाब से तीसरी शताब्दी से जुड़ता है. उस मलय दस्तावेज में सिंगापुर का वर्णन एक आइलैंड के रूप में हुआ है. 

सिंगापुर नहीं सिंहपुर....

सिंगापुर की उत्पत्ति और इतिहास की बात करें तो सिंगापुर का नाम संस्कृत भाषा से लिया गया है. इसकी उत्पत्ति से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं. एक किंवदंती के मुताबिक सिंगापुर की स्थापना 1299 में सुमात्रा के राजकुमार ने की थी. जब वो इस द्वीप पर उतरा तो उसने एक शेर को देखा. शेर को अच्छा शगुन मानते हुए, उसने वहां शहर बसाया और नाम सिंहपुरा यानी 'शेर का शहर' रखा. आगे चलकर यही सिंगापुर बन गया. 

भारतीय राजा की कहानी

दूसरी थ्योरी के मुताबिक उस दौर में कलिंग के राजा शुलन ने दक्षिण भारत के एक राजा के साथ मिलकर चीन के राजा को हराकर उसे अपने साम्राज्य में मिलाने का संकल्प लिया था. इस सिलसिले में दोनों मलय राज्य के एक द्वीप तक पहुंचे, जिसे स्थानीय भाषा में टेमासेक कहा जाता था. यहां पहुंचने के बाद अचानक उन्होंने आगे न बढ़ने का फैसला किया. जब मन बना ही लिया था तो क्यों रुक गए, इसके पीछे की कहानी भी दिलचस्प और फेक न्यूज़ से जुड़ी है. दरअसल भारतीय राजा को उस समय बताया गया था कि चीन तो अभी बहुत दूर है... इसके बाद शुलन वहीं रुक गए. वहां की एक राजकुमारी से शादी करी और शान से अपने साम्राज्य (भारत) में लौट आए.

वरना आज चीन भारत का हिस्सा होता?

मलय इतिहास का पहला खंड भी महान भारतीय शासक राजा शुलन की कहानी बताता है. जिसने भारतीय भूभाग पर विजय पताका फहराने के बाद, चीन पर निगाहें टेढी की. इसे उनका कॉन्फिडेंस ही कहा जाएगा कि चीन को अपने साम्राज्य में मिलाने का टारगेट उन्होंने तब बनाया था जब उन्हें चीन की भौगोलिक स्थिति यानी लोकेशन का कुछ खास अंदाजा नहीं था, फिर भी उन्होंने चीन को फतह करने की योजना बनाई.

चीनियों ने, राजा शुलन का इरादा जानकर युद्ध से बचने के लिए एक तरकीब अपनाई. उन्होंने अपने कुछ बुजुर्ग लोगों के एक समूह को बहुत पुराने जहाज से सिंगापुर भेजा. उस समय राजा शुलन ने उन्हें मुसाफिर समझकर पूछा कि चीन कितनी दूर है? उन बूढ़े चीनी नाविकों ने बताया अरे चीन तो इतनी दूर है कि जब वो घर से निकले थे तो जवान थे अब बूढ़े हो गए तब जाकर चीन की धरती मिली. ये सुनकर कुछ निराश हुए राजा शुलन ने सिंहपुर (आज के सिंगापुर) से आगे न बढ़ने और अपनी जड़ों की ओर लौटने का फैसला किया.

ब्रिटिश इंडिया का सिंगापुर

हिस्ट्री ऑफ मॉर्डन सिंगापुर (A History of Modern Singapore 1819-2005) नाम की किताब समेत कई विदेशी लेखकों की पुस्तकों में सिंगापुर के इतिहास भूगोल का जिक्र है. करीब आधी दुनिया पर जब अंग्रेजों का राज था तब सिंगापुर एक व्यापारिक बंदरगाह था. मछली पालन यहां का मुख्य व्यवसाय था. सिंगापुर का बंदरगाह उस दौर के 3 प्रमुख बंदरगाहों में एक था.

1867 तक ये ब्रिटिश भारत का हिस्सा था. इसलिए, भारतीयों को आने जाने की दिक्कत नहीं थी. archive.org की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीयों की पहली खेप यहां कारोबार और रोजगार के लिए पहुंची थी. यहां चीनी, मसालों और नारियल के बागानों से जुड़ा कारोबार होता था. बंगाल की खाड़ी का इससे कनेक्शन था.

सबूत को कई हैं...

सिंगापुर जब एक कमर्सियल सेंटर बना तब भारतीय लोग सिंगापुर नदी के किनारे और टेलोक आयर में बस गए. ये वो इलाके थे, जिन्हें भारतीयों को रहने के लिए आवंटित किया गया था. 1926 में फोर्ट कैनिंग में प्राचीन सोने के आभूषणों का भंडार मिला था. उनका कनेक्शन भी भारत से मिलता है. ये ज्वैलरी सिंगापुर के हिस्ट्री म्यूजियम का हिस्सा है.

उन आभूषणों पर भारतीय कला की झलक है. ऐसे आभूषणों का वर्णन भारत की पौराणिक कथाओं में मिलता है. महिलाओं के ऐसे गहने प्राचीन भारत में लोकप्रिय थे. फोर्ट कैनिंग में पुरातत्व अनुसंधान से हजारों प्राचीन कलाकृतियां भी मिली हैं. इनमें से कांच से बनी कई रंगबिरंगी चूड़िया भी हैं. गौरतलब है कि चूड़ी 13वीं शताब्दी में उत्तर पश्चिम भारत में प्रमुखता से बनाई जाती थी.

दक्षिण एशिया के साथ संपर्क के ऐसे कई जीते जागते सबूत सिंगापुर के म्यूजियम में मौजूद है. खुदाई के दौरान 1995 में वहां तांबे का एक सिक्का मिला था. जो 13वी सदी के अंत में श्रीलंका में ढाला गया था. प्राचीन भारत का राज-काज वहां तक फैला था.

यूनानी सबूत

यूनानी साक्ष्यों की बात करें तो भारत और सिंगापुर के बीच संबंध प्राचीन काल से हैं. पहली शताब्दी के दौरान यूनानी खगोलशास्त्री क्लॉडियस टॉलेमीयस ने हिंद महासागर के आसपास के देशों से उनके स्थान निर्धारित करने के लिए कुछ जगहों की पहचान की थी. उसने अपने दस्तावेजों में 'सबाना' का जिक्र किया था जो आज आधुनिक सिंगापुर में है. तब सबाना एक नामांकित साम्राज्य और व्यापारिक बंदरगाह था.

ये इलाका  व्यापारिक केंद्रों की उस श्रृंखला का हिस्सा था, जो 2000 साल पहले दक्षिण पूर्व एशिया को भारत और भूमध्य सागर से जोड़ते थे. 

मोदी भारत में क्यों बनाना चाहते हैं कई सिंगापुर?

अपनी भौगोलिक स्थिति के चलते ये इलाका सामरिक और कारोबारी रूप से अहम रहा है. आज यहां छोटी-बड़ी हजारों मल्टीनेशनल कंपनियां है. जिनका कारोबार पूरी दुनिया में फैला है. इसकी कामयाबी की कहानियों की वजह से ही पीएम मोदी ने कहा है कि उन्हें भारत में कई सिंगापुर बनाने हैं. सिंगापुर 719 वर्ग किमी में फैला एक आइलैंड कंट्री है.

सिंगापुर सबसे अमीर देशों की सूची में चौथे नंबर पर

सिंगापुर इतना छोटा है कि भारत के कई शहर इससे बहुत बड़े होंगे. इसके बावजूद सिंगापुर दुनिया के सबसे अमीर देशों की सूची में चौथे नंबर पर है. सिंगापुर में प्रति व्यक्ति आय यानी सालाना इनकम 1.07 लाख अमेरिकी डॉलर यानी करीब 90 लाख रुपए है. जबकि भारत की प्रति व्यक्ति सालाना इनकम  मात्र 2239 डॉलर यानी करीब 1 लाख 87 हजार रुपए है. सिंगापुर हमेशा से इतना रईस नहीं था. सिंगापुर 1819 से पहले एक वीरान टापू था जो आज एक बड़ा बिजनेस हब बन चुका है. यहां आज 7 हजार से ज्यादा विदेशी कंपनियां हैं, जबकि अपने भारत में मात्र 3291 मल्टी नेशनल कंपनियां हैं.

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