Japan News: न्यूयॉर्क के स्कॉट स्टैन के मन में बचपन से एक सवाल था कि उनके दादाजी के घर पर जो जापानी झंडा फहराता रहता है उसका इतिहास क्या है?
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World News in Hindi: न्यूयॉर्क के स्कॉट स्टैन के मन में बचपन से एक सवाल था कि उनके दादाजी के घर पर जो जापानी झंडा फहराता रहता है उसका इतिहास क्या है? दरअसल उनके स्टैन के दादाजी यूएस आर्मी में थे और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसको जापान से विजेता ट्रॉफी की तरह लाए थे. इसको उन्होंने जीवनभर भरे जतन से रखा और दुनिया से जाते वक्त स्कॉट को दे गए.
दादाजी ने स्कॉट को इस झंडे के इतिहास के बारे में बताया था कि उस जमाने में जापान में एक चलन था कि वहां के हर सैनिक के पास इस तरह का अपना गुडलक फ्लैग (Yosegaki Hinomaru) होता था. इस पर उस सैनिक का नाम होता था और पूरे परिवार, दोस्त, रिश्तेदारों की उसके प्रति शुभकामनाएं इस पर लिखी होती थीं. जापानी सैनिक इसको हमेशा अपने साथ रखते थे. उनके जीते जी कोई इसको नहीं पा सकता था. ये जापानी सैनिकों की अपनी मिट्टी से प्यार और उनकी आन-बान-शान का प्रतीक होता था. दादाजी ने बताया कि युद्ध में जबर्दस्त फाइटिंग के बाद जब इस जापानी सैनिक की शहादत हुई उसके बाद ही ये झंडा अमेरिकी सैनिक के पास आया.
दादाजी के गुजरने के बाद स्टैन को ख्याल आया कि क्यों न आखिर इस झंडे पर लिखे उस जापानी सैनिक की फैमिली की तलाश की जाए और उनकी अमानत दे दी जाए. झंडे पर जापानी सैनिक का नाम लिखा था- युकीकाजू हियामा (Yukikaju Hiyama). उस पर उनके ढेर सारे रिश्तेदारों, परिवार और दोस्तों द्वारा दी गई शुभकामनाएं लिखी थीं. स्टैन ने इस फ्लैग के बारे में एक नॉन प्रॉफिट संगठन OBON सोसाइटी को पत्र लिखा. ये संस्था इस तरह का ही काम करती है और अब तक ऐसे 600 झंडों को उनके घरों तक पहुंचा चुकी है.
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भावुक पल...
वर्षों खोजने के बाद आखिरकार इस संस्था ने उस जापानी शहीद सैनिक की फैमिली का पता लगा लिया. उनको पता चला कि युकीकाजू हियामा की फैमिली का आखिरी जीवित सदस्य उनका बेटा सुकासा हियामा (81) है और वो जापानी आइलैंड होंशू में रहते हैं. सुकासा ने अपने पिता को कभी नहीं देखा क्योंकि 1945 में जब वो शहीद हुए तो सुकासा की उम्र दो साल थी. 81 साल के सुकासा के लिए ये फ्लैग बेहद भावुक कर देने वाला पल था. उन्होंने कहा कि जब उन्होंने अपने पिता के फ्लैग को अपने हाथों में लिया तो उनको ऐसा लगा कि जैसे पहली बार उन्होंने अपने पिता के हाथों को छुआ है. उनके खुशी के आंसू निकलने लगे. वह दौड़कर अपनी मां की कब्र पर गए और उस झंडे को उसके ऊपर चादर की तरह फैला दिया. ये एक तरह से उनकी फैमिली के लिए भी उस ट्रैजिक कहानी का अंत था जिसकी शहादत की बात उन तक पहुंचने में 81 साल लग गए.
स्कॉट स्टैन को भी बेहद सुकून मिला. उनको ऐसा लग रहा है कि जैसे ये काम पूरा करना उनके ही भाग्य में लिखा था.