Muslim World League: अल-ईसा का भारत दौरा 5 दिन का होगा. इस दौरान वह एनएसए अजित डोभाल, विदेश मंत्री एस जयशंकर, अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी से मुलाकात करेंगे. सूत्रों के मुताबिक, वह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी मिल सकते हैं.
Trending Photos
UCC Controversy: भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है. इस बीच सऊदी अरब के पूर्व न्याय मंत्री मोहम्मदबिन अब्दुलकरीम अल-ईसा अगले हफ्ते भारत दौरे पर आ रहे हैं. वह मुस्लिमों के प्रभावशाली संगठन मुस्लिम वर्ल्ड लीग (एमडब्ल्यूएल) के महासचिव भी हैं, जिसका पूरी दुनिया के मुसलमानों पर गहरा असर है. दरअसल भारत सरकार चाहती है कि यूसीसी को लागू करने में मुस्लिम समुदाय की भी सहमति हो. इस लिहाज से ईसा का भारत दौरा बेहद खास है.
अल-ईसा का भारत दौरा 5 दिन का होगा. इस दौरान वह एनएसए अजित डोभाल, विदेश मंत्री एस जयशंकर, अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी से मुलाकात करेंगे. सूत्रों के मुताबिक, वह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी मिल सकते हैं.
न्याय मंत्री पद पर काम करते हुए अल-ईसा ने महिलाओं के अधिकारों के लिए काफी काम किए. वह उदार इस्लाम के समर्थन कहे जाते हैं. इसके अलावा विभिन्न देशों, धर्मों और समुदायों के बीच रिश्तों को बेहतर करने के साथ-साथ उन्होंने पारिवारिक और मानवीय मामलों पर भी काम किया.
डोभाल से करेंगे मुलाकात
10 जुलाई को उनकी मुलाकात एनएसए अजित डोभाल से होगी. अगले दिन वह दिल्ली स्थित खुसरो फाउंडेशन के न्योते पर धार्मिक, शिक्षाविदों और सामुदायिक नेताओं की एक सभा को संबोधित करेंगे. इसमें डोभाल भी शरीक होंगे.
चूंकि मुस्लिम वर्ल्ड लीग का पूरी दुनिया के मुसलमानों के बीच गहरा प्रभाव है और ईसा भी मुसलमानों के बीच पॉपुलर हैं, ऐसे में उनका भारत आना और बड़े नेताओं से मुलाकात करना अहम है. मोदी सरकार कानून बनाकर समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पूरे देश में लागू करना चाहती है. इससे सभी धर्मों के निजी कानून खत्म हो जाएंगे और यह धार्मिक, विवाह, गोद और विरासत पर लागू होगा.
क्या बोले आलोचक
सरकार के आलोचक कहते हैं कि विविधता से भरे देश भारत के लिए यूसीसी लागू करना मुश्किल काम है क्योंकि यह कदम भारत के सांस्कृतिक ताने-बाने को कमजोर कर सकता है. इसके अलावा धार्मिक स्वतंत्रता को भी आहत कर सकता है. कई मुस्लिम स्कॉलर्स ने इसका जमकर विरोध किया है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने यह कहते हुए इसका विरोध किया है कि मुस्लिम समाज अपनी पहचान खोना नहीं चाहता.