PAK अदालत का ये कैसा फैसला? पिता की विरासत पर सिर्फ मुस्लिम संतान का होगा हक
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PAK अदालत का ये कैसा फैसला? पिता की विरासत पर सिर्फ मुस्लिम संतान का होगा हक

Pakistani Court: न्यायमूर्ति ने कहा कि शरियत के अनुसार, एक गैर-मुस्लिम किसी मुस्लिम की संपत्ति में उत्तराधिकारी नहीं हो सकता. उन्होंने इस तर्क को मजबूत करने के लिए हदीस का हवाला दिया, जिसमें कई बातें कही गईं हैं.

PAK अदालत का ये कैसा फैसला? पिता की विरासत पर सिर्फ मुस्लिम संतान का होगा हक

Father Inheritance in Pak: पाकिस्तान के हुक्मरान ही नहीं कई बार वहां की अन्य संस्थाएं भी अपने अजीब फैसलों के चलते दुनिया में चर्चा का विषय बन जाती हैं. इसी कड़ी में कोर्ट का एक फैसला सामने आया है. लाहौर हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि कोई भी गैर-मुस्लिम व्यक्ति अपने मुस्लिम रिश्तेदार की संपत्ति में हिस्सा नहीं ले सकता. यह फैसला तब आया जब एक मुस्लिम पोते ने अपने चाचा के खिलाफ दावा किया कि वे अहमदी हैं और इसलिए उनके मुस्लिम पिता की संपत्ति में उनका अधिकार नहीं बनता.

कैसे हुई इस विवाद की शुरुआत
दरअसल, डॉन की एक रिपोर्ट के मुताबिक यह मामला तब शुरू हुआ जब पंजाब के टोबा टेक सिंह जिले के गोजरा तहसील में 83 कनाल ज़मीन के उत्तराधिकार को लेकर विवाद खड़ा हुआ. मृतक की संपत्ति उसके तीन बेटों और दो बेटियों में बांटी गई थी. लेकिन पोते ने अदालत में यह कहते हुए चाचा के हिस्से को चुनौती दी कि वे अहमदी हैं और मुस्लिम शरियत के अनुसार उन्हें विरासत में हिस्सा नहीं मिल सकता.

अदालत का तर्क और फैसला
फिर निचली अदालतों ने पोते के पक्ष में फैसला सुनाया जिसे हाई कोर्ट ने भी सही ठहराया. न्यायमूर्ति चौधरी मुहम्मद इकबाल ने कहा कि शरियत के अनुसार, एक गैर-मुस्लिम किसी मुस्लिम की संपत्ति में उत्तराधिकारी नहीं हो सकता. उन्होंने इस तर्क को मजबूत करने के लिए हदीस का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि "मुसलमान गैर-मुस्लिम से और गैर-मुस्लिम मुसलमान से विरासत नहीं ले सकते."

कानून और शरियत का संदर्भ
न्यायमूर्ति ने कहा कि 1937 के मुस्लिम शरियत एप्लिकेशन एक्ट के अनुसार, मुस्लिमों के लिए शरियत के नियम ही संपत्ति के बंटवारे में लागू होते हैं. साथ ही, पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 260(3) के तहत मुस्लिम और गैर-मुस्लिम की परिभाषा दी गई है, जो इस मामले में लागू होती है. लाहौर हाई कोर्ट ने पोते की याचिका को सही ठहराते हुए चाचा के हिस्से को रद्द कर दिया. अदालत ने स्पष्ट किया कि गैर-मुस्लिम होने के कारण चाचा का मुस्लिम पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं बनता. न्यायालय ने इस फैसले में किसी भी त्रुटि की संभावना से इनकार किया और निचली अदालत के निर्णय को बरकरार रखा. Photo: AI

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