'खुदा के घर' में लगा है 300 किलो सोने का दरवाजा, बिना इजाजत सऊदी किंग की भी नहीं एंट्री
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'खुदा के घर' में लगा है 300 किलो सोने का दरवाजा, बिना इजाजत सऊदी किंग की भी नहीं एंट्री

Kaaba: सऊदी अरब में हज करने गए 1300 लोगों की मौत के बाद इन दिनों मक्का-मदीना की खूब बात हो रही है, आपको क्या पता है कि सऊदी अरब के मक्का में इस्लाम का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल भी है. इसे खुदा का घर भी कहा जाता है. इस स्‍थल के अंदर जाने के लिए सऊदी के किंग को भी अनुमति लेनी होती है, अगर इस तरह की खबर आप नहीं जानते हैं तो कोई बात नहीं, आइए हम आपको बताते हैं. 

'खुदा के घर' में लगा है 300 किलो सोने का दरवाजा, बिना इजाजत सऊदी किंग की भी नहीं एंट्री

सऊदी अरब में इस साल इस्लाम के सबसे पवित्र स्थल काबा की लाखों संख्या में हज करने वाले यात्रियों ने परिक्रमा की. काबा दुनियाभर के मुसलमानों के लिए बेहद पवित्र जगह मानी जाती है. सऊदी अरब में मुस्लिमों के सबसे पवित्र स्‍थान मक्‍का में काबा को खुदा का घर कहा जाता है. काबा को सिर्फ उसी परिवार की इजाजत से खोला जाता है जिसके पास इसकी चाभी रहती है. यहां हर साल दुनियाभर से करोड़ों मुस्लिम आते हैं, जिनके लिए वीजा से लेकर रहने तक का इंतजाम खासतौर पर सऊदी सरकार करती है.

चाभी रखने वाले की मौत
इन दिनों काबा की चाभी को लेकर चर्चा तेज हो गई है. उसकी वजह है कि काबा की देखभाल के लिए जिम्मेदार और चाबी रखने वाले शेख डॉक्टर सालेह अल शेबी का 22 जून को निधन हो गया है.  शेख सालेह अल शेबी पैगंबर मुहम्मद के साथी उथमान बिन तलहा के 109वें वारिस थे. काबा की चाबी पैगंबर ने उथमान बिन तलहा को सौंपी थी. इसके बाद से उथमान बिन तलहा के वंशजों को काबा की चाबी और देखभाल की जिम्मेदारी मिलती रही है.

पवित्र काबा की चाबी किसके पास रहती है?
सऊदी के शाही परिवार या प्रशासन का काबा से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है.  काबा की चाबी 16वीं सदी से ही शायबा परिवार के पास है. इतना ही नहीं, बगैर उनकी इजाजत के कोई भी काबा के अंदर दाखिल तक नहीं हो सकता है. काबा की देखरेख और गेट खोलना समेत हर काम की जिम्मेदारी शायबा परिवार के पास है. 

शायबा परिवार के पास कैसे आई चाबी?
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक शायबा परिवार के पास काबा की चाबी आने की कहानी काफी पुरानी और दिलचस्प है. जानकारी के मुताबिक, पैगंबर इब्राहिम ने अपने बेटे पैगंबर इस्माइल को काबा की गार्जियनशिप सौंपी थी, जो उनके बेटों को ट्रांसफर हो गई. इसके बाद काबा का संरक्षण जुरहम जनजाति और फिर खुज़ा जनजाति के पास आया. इसके बाद पैगंबर के पूर्वज माने जाने वाले कुसै-बिन-किलाब ने गार्जियनशिप हासिल की. इस तरह एक हाथ से दूसरे हाथ होते हुए चाबी उस्मान बिन तल्हा तक पहुंची.

बता दें कि उस्मान पहले मुसलमान नहीं थे. वर्ष 630 ईस्वी (8 हिजरी) में मक्का पर जीत हासिल करने के बाद पैगंबर मोहम्मद और शहाबा जब शहर में दाखिल हुए तो पाया कि काबा का दरवाजा बंद है और उस्मान बिन तल्हा ने चाबी छिपा दी है. पैगंबर ने अली को उस्मान से चाबी लेने के लिए भेजा. इस तरह चाबी पैगंबर के हाथ में आई और वह काबा का दरवाजा खोलकर अंदर गए और दो रकअत की नमाज अदा की.

खुदा का हुआ हुक्म 
पैगंबर मोहम्मद के चाचा अब्बास ने उनसे अनुरोध किया कि हमारा परिवार हज के लिए आने वाले तीर्थ यात्रियों की जिम्मेदारी उठाता है, इसलिये आप चाहें तो चाबी हमें सौंप सकते हैं. कहा जाता है कि उसी दौरान कुरान की एक आयत नाजिल हुई, जिसका अर्थ था, 'अल्लाह तुम्हें आदेश दे रहा है कि अमानत उन लोगों को लौटा दो, जिसकी है.' इसके बाद पैगंबर मोहम्मद फौरन इसका मतलब समझ गए और उन्होंने चाबी उस्मान बिन तल्हा को लौटा दी. जानकारी के मुताबिक, इसके बाद उस्मान ने इस्लाम कबूल कर लिया था. पैगंबर ने उन्हें बुलाकर कहा कि आज से चाबी तुम्हारे पास रहेगी. कोई और नहीं, बल्कि एक अत्याचारी तुमसे इसे छीन सकता है. उस्मान बिन तल्हा के निधन के बाद उनके चचेरे भाई शायबा को चाबी मिली और पीढ़ी दर पीढ़ी एक हाथ से दूसरे हाथ में ट्रांसफर होती आ रही है. 

अब किसके पास है चाबी?
काबा की चाबी रखने वाले को 'सादीन' कहा जाता है. अभी शायबा के परिवार के सालेह-अल-शाइबी काबा के संरक्षक हैं और चाबी उन्हीं के पास थी. अरब न्यूज के मुताबिक, अब तक 110 लोगों को काबा की देखभाल का सम्मान मिल चुका है. सादीन यानी मुख्य चाबीधारक और देखभालकर्ता डॉक्टर सालेह अल-शैबी का 79 वर्ष की उम्र में शनिवार को निधन हो गया.

डॉक्टर सालेह अल-शैबी साल कौन हैं?
डॉक्टर सालेह अल-शैबी साल 2013 से खाना-ए-काबा के 109वें सादिन के तौर पर जिम्मेदारी निभा रहे थे. डॉक्टर सालेह का जन्म सन 1945 में  मक्का में हुआ था. उन्हें इस्लामिक शोधकार्य के लिए PHD उपाधि प्रदान की गई थी.  डॉ सालेह मक्का की उम्मुल क़ुरा University में बतौर प्रोफेसर सेवाएं दीं थीं और वहीं से वह सेवानिवृत्त भी हुए थे. इस्लामिक इतिहास और अकीदे पर डॉ सालेह ने करीब एक दर्जन पुस्तकों को लिखा है.

सोने की बनी है चाबी 
काबा की चाबी सोने की बनी है और बहुत हिफाजत से रखी जाती है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 14वीं सदी के बाद से चाबी बदली नहीं गई है. काबा से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, चाबी इसलिए भी नहीं बदली गई है, क्योंकि डिजाइन में जरा सी हेर-फेर से ताला खोलने में परेशानी आ सकती है. वहीं, काबा के केयरटेकर कहते हैं कि चाबी बहुत खास है और डिजाइन आम चाबी से बहुत अलग है. इसको इस तरीके से बनाया गया है कि सिर्फ जिसके पास चाबी रहती है, वही इससे लॉक खोलना जानता है. उनके अलावा दूसरा कोई ताला नहीं खोल सकता है. 

300 किलो का शुद्ध सोने का दरवाजा
काबा का मौजूदा दरवाजा भी सोने का है. सऊदी के मशहूर ज्वेलर अहमद बिन इब्राहिम ने किंग खालिद-बिन-अब्दुल-अजीज के कार्यकाल में इस दरवाजे को तैयार किया था. रिपोर्ट्स के मुताबिक, काबा का दरवाजा 300 किलो शुद्ध सोने का बना है.

केयरटेकर का क्या काम?
सऊदी गैजेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, काबा की देखभाल करने वाले का काम गेट खोलना और बंद करवाना है. इसके अलावा साफ-सफाई और धुलाई जैसी चीजों की निगरानी भी शामिल है. काबा की धुलाई पवित्र जमजम और गुलाब के पानी से होती है. इसकी चारों दीवारें हर दिन सुगंधित पानी से साफ की जाती हैं और इस दौरान इबादत भी की जाती है.

बिना इजाजत शाही परिवार को भी एंट्री नहीं
अरब न्यूज के मुताबिक, यदि सऊदी के शाही परिवार का भी कोई सदस्य काबा आना चाहता है तो उन्हें भी शायबा परिवार से इजाजत लेनी होती है. सऊदी गैजेट के मुताबिक, रॉयल कोर्ट और मिनिस्ट्री ऑफ इंटीरियर ही शाही परिवार और शायबा परिवार के बीच को-ऑर्डिनेशन का काम करता है.

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