Shigemi Fukohori: शिगेमी फुकोहोरी का 93 साल की उम्र में निधन, 14 साल की उम्र में परमाणु हमले में बाल-बाल बचे थे
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Shigemi Fukohori: शिगेमी फुकोहोरी का 93 साल की उम्र में निधन, 14 साल की उम्र में परमाणु हमले में बाल-बाल बचे थे

Shigemi Fukohori Paased Away: जापान के नागासाकी में 1945 में परमाणु बम गिराये जाने की घटना में बाल-बाल बच गये तथा परमाणु हथियारों के विरुद्ध मुहिम चलाने वाले शिगेमी फुकाहोरी का निधन हो गया है.

Shigemi Fukohori: शिगेमी फुकोहोरी का 93 साल की उम्र में निधन, 14 साल की उम्र में परमाणु हमले में बाल-बाल बचे थे

Shigemi Fukohori Paased Away: जापान के नागासाकी में 1945 में परमाणु बम गिराये जाने की घटना में बाल-बाल बच गये तथा परमाणु हथियारों के विरुद्ध मुहिम चलाने वाले शिगेमी फुकाहोरी का निधन हो गया है. वह 93 साल के थे. उराकामी कैथोलिक गिरजाघर ने रविवार को बताया कि फुकोहोरी ने तीन जनवरी को दक्षिण-पश्चिम जापान के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली. वह पिछले साल आखिरी दिन तक इस गिरजाघर में तकरीबन रोजाना प्रार्थना करते थे. 

नागासाकी परमाणु हमले में बाल-बाल बचे थे

स्थानीय मीडिया ने बताया कि उनकी मृत्यु अधिक उम्र के कारण हुई. जब अमेरिका ने नौ अगस्त, 1945 को नागासाकी पर बम गिराया था तब फुकोहोरी केवल 14 साल के थे. उस घटना में हजारों लोगों की मौत हो गयी थी. उससे तीन दिन पहले हिरोशिमा पर परमाणु हमला किया गया था जिसमें 140000 लोगों की मौत हो गयी थी. परमाणु हमले के कुछ दिनों बाद जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया था और फिर द्वितीय विश्वयुद्ध का समापन हुआ था. फुकाहोरी बम गिराए जाने के स्थान से लगभग तीन किलोमीटर दूर एक शिपयार्ड में काम करते थे. 

सालों तक नहीं कर सके थे बात

वह सालों तक उस घटना के बारे में बात नहीं कर सके, न केवल उन दर्दनाक यादों के कारण, बल्कि इसलिए भी कि उस समय वह कितने असहाय महसूस करते थे. करीब 15 साल पहले स्पेन की यात्रा के दौरान एक ऐसे व्यक्ति से मिलने के बाद वह और अधिक मुखर हो गये, जिसने 1937 में स्पेन गृहयुद्ध के दौरान ग्वेर्निका पर बमबारी का अनुभव किया था. वह व्यक्ति भी तब 14 साल का था. 

साझा किया था दर्दनाक अनुभव

आपस में अनुभव साझा करने के बाद फुकाहोरी खुलकर अपनी बात रखने लगे. फुकाहोरी ने 2019 में जापान के राष्ट्रीय प्रसारक एनएचके से कहा, ‘‘जिस दिन बम गिरा, मैंने मदद के लिए एक आवाज सुनी. जब मैं उसके पास गया और अपना हाथ बढ़ाया, तो (मैंने देखा कि) उस व्यक्ति की त्वचा पिघल गई. मुझे अब भी याद है कि तब कैसा महसूस हुआ था.’’ वह अक्सर यह उम्मीद करते हुए विद्यार्थियों को संबोधित करते थे कि वे ‘शांति की मुहिम को आगे बढ़ायेंगे.

(एजेंसी इनपुट के साथ)

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