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नई दिल्ली: तालिबान अब एक खतरनाक विचार पर काम कर रहा है. इसलिए आज हम उस जेहादी सोच के बारे में आपको बताएंगे, जो जन्नत और 72 हूरें पाने के लिए दुनिया को जहन्नुम बनाना चाहती हैं. अफगानिस्तान की तालिबान (Taliban) सरकार ने उन सुसाइड बॉमर (Suicide Bomber) के परिवारों को सम्मानित किया है, जिन्होंने पिछले 20 वर्षों के दौरान आत्महघाती हमलों में अमेरिकी सैनिकों (US Army) और अफगानिस्तान के नागरिकों की जान ली.
तालिबान सरकार में गृह मंत्री और आतंकवादी संगठन हक्कानी नेटवर्क के सुप्रीम लीडर सिराजुद्दीन हक्कानी (Sirajuddin Haqqani) ने प्रत्येक परिवार को 112 यूएस डॉलर्स यानी भारतीय रुपये में लगभग साढ़े 8 हजार रुपये और अफगानिस्तान के हिसाब से 10 हजार रुपये का नकद इनाम और कुछ जमीन दी है. सोचिए, दुनिया के अमन पसंद लोगों के साथ इससे बड़ा और इससे भद्दा मजाक क्या हो सकता है.
एक अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2019 में सुसाइड बॉम्बिंग (Suicide Bombings) की 149 घटनाएं हुई थीं, जिनमें 1855 लोग मारे गए थे. यानी औसतन एक सुसाइड बॉम्बिंग में 12 लोगों की जान गई. इस हिसाब से देखें तो तालिबानी सरकार ने सुसाइड बॉम्बर के परिवारों को साढ़े 8 हजार रुपये का जो नकद इनाम दिया है, उससे एक आम आदमी की जान की कीमत 708 रुपये निकलती है. यानी आतंकवादियों के लिए दुनिया के बाजार में एक आम आदमी की जान की कीमत किसी ओटीटी प्लेटफॉर्म (OTT Platform) की सालाना सब्सक्रिप्शन फीस से भी कम है.
अफगानिस्तान में इस समय बहुत बुरे हालात हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, वहां लगभग 4 करोड़ की आबादी में से 50 लाख लोग तो ऐसे हैं, जिनके पास अपना घर तक नहीं है. लेकिन तालिबान की सरकार सुसाइड बॉम्बर के परिवारों को मकान बनाने के लिए जमीन दे रही है. सोचकर देखिए, जब किसी देश में इस तरह से आत्मघाती हमलावरों को शहीद बता कर उनका सम्मान किया जाएगा, उन्हें नकद इनाम और जमीन दी जाएगी, तो फिर क्यों नहीं दुनिया में और लोग सुसाइड बॉम्बर बनेंगे और ज्यादा हमले होंगे और ज्यादा बेगुनाह लोगों की बम धमाकों में हत्या की जाएगी.
आज एक बड़ा सवाल ये भी है कि जो आत्मघाती हमलावर कश्मीर में आ रहे हैं, उनको भी इनाम देना शुरू कर दिया गया तो क्या होगा? काबुल में हुए इस सम्मान समारोह में बहुत कुछ ऐसा हुआ, जिसकी कल्पना शायद ही दुनिया ने की होगी. जिन आतंकवादियों ने इस्लामिक जेहाद के लिए खुद को बम धमाकों में उड़ा लिया, उनके परिवारों को एक शानदार होटेल में बुला कर खाना खिलाया गया. उन्हें अच्छे अच्छे तोहफे दिए गए. उन्हें गले लगा कर सांत्वना दी गई, उनके साथ आंसू बहाए गए और ये प्रार्थना भी की गई कि अल्लाह इन जेहादियों को जन्नत नसीब करे.
सुसाइड बॉम्बिंग की दुनिया में नकद इनाम और मकान के लिए जमीन जैसे ऑफर नए नहीं है. ऐसा माना जाता है कि इसकी शुरुआत ईरान ने की थी. वर्ष 1980 से 1988 के बीच जब ईरान और इराक के बीच युद्ध लड़ा गया, तब ईरान के उस समय के सर्वोच्च नेता रुहोल्ला खोमैनी ने इराक के सैन्य वाहनों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए लोगों को अपने शरीर पर बम बांधकर उनके सामने कूद जाने के लिए कहा था. इसके बाद कई लोगों ने ऐसा ही किया और बाद में इन आत्मघाती हमलावरों के परिवारों को ईरान की ओर से नकद इनाम और कुछ जमीन मुआवजे के रूप में दी गई.
हालांकि एक ताजा अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2000 के बाद दुनिया में जितनी भी सुसाइड बॉम्बिंग हुईं, उनके पीछे इस्लामिक कट्टरपंथी ताकते ही थीं और ये सारी सुसाइड बॉम्बिंग धर्म के नाम पर हुईं. ऐसा माना जाता है कि इस्लाम धर्म में शहीद का दर्जा उसी व्यक्ति को प्राप्त होता है, जिसने धर्म के लिए कुर्बानी दी है. और धर्म के ईंधन पर ही सुसाइड बॉम्बिंग की पूरी दुनिया चलती है. इसके लिए बकायदा आतंकवादियों को ट्रेनिंग दी जाती है, जिसमें उन्हें बताया जाता है कि अगर वो अपने धर्म के लिए आत्मघाती हमला करते हैं तो मरने के बाद उन्हें जन्नत और 72 हूरें नसीब होंगी. यानी जन्नत वाले पैकेज के लिए ये आतंकवादी दुनिया को जहन्नुम बना देना चाहते हैं.
तालिबान जब ये सब कर रहा है, तब दुनिया क्या कर रही है, आज ये समझना भी बेहद जरूरी है. बुधवार को रूस में मॉस्को फॉर्मेट (Moscow Format) सम्मेलन का आयोजन हुआ है, जिसमें चीन, रूस, ईरान, पाकिस्तान और भारत समेत कुल 10 देशों ने तालिबान के प्रतिनिधिमंडल के साथ एक टेबल पर बैठ कर बातचीत की. इससे बड़ा विरोधाभास कुछ नहीं हो सकता कि जब दुनिया के ये देश ऐसा कह रहे हैं कि वो तालिबान की सरकार को मान्यता देने के मामले में कोई जल्दबाजी नहीं करेंगे, तब तालिबानी सरकार के साथ अफगानिस्तान के मुद्दों पर चर्चा की जा रही हैं.
इस बैठक में तालिबान का नेतृत्व उप प्रधानमंत्री अब्दुल सलाम हनाफी (Abdul Salam Hanafi) ने किया, जिनका नाम संयुक्त राष्ट्र की ब्लैक लिस्ट में भी है. यानी जिस आतंकवादी को संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंधित किया है, वो दुनिया के बड़े बड़े देशों के साथ अफगानिस्तान और तालिबान के भविष्य की योजनाओं पर बात कर रहा है. हालांकि आज अमेरिका ने बड़ी चालाकी से अंतिम समय में खुद को शर्मिंदा होने से बचा लिया और बैठक में शामिल नहीं हुआ. यही अमेरिका का असली चरित्र है.
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