तालिबान अफगानिस्तान (Afghanistan) पर कब्जे के लिए सब तरीके अपना रहा है. अब उसने अपने कब्जे को मान्यता देने के लिए चीन को भी एक ऑफर किया है.
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बीजिंग: अमेरिका के जाने के बाद अफगानिस्तान (Afghanistan) पर कब्जे के लिए तालिबान साम-दाम-दंड-भेद सब तरीके अपना रहा है. उसने अब पड़ोसी देश चीन पर भी डोरे डाले हैं.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक तालिबान (Taliban) ने कहा है कि वह चीन (China) को अफगानिस्तान के ‘मित्र’ के रूप में देखता है. उसने बीजिंग को आश्वस्त किया कि वह अशांत शिंजियांग प्रांत के वीगर इस्लामी चरमपंथियों को अपने यहां पनाह नहीं देगा.
बताते चलें कि चीन के संसाधन बहुल शिंजियांग की करीब 80 किलोमीटर लंबी सीमा अफगानिस्तान से लगी हुई है. जहां पर वीगर इस्लामी (Uighur Muslim) चरमपंथी चीन में हरकतें करते रहते हैं. अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बीच चीन को चिंता सता रही है कि तालिबान के शासन में अफगानिस्तान ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) का केंद्र बन जाएगा. चीन इस संगठन को आतंकी समूह मानता है और कहता है कि यह आतंकी संगठन अलकायदा से जुड़ा हुआ है.
चीन की इन चिंताओं को देखते हुए तालिबान (Taliban) के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा कि वे चीन को अफगानिस्तान के एक मित्र के रूप में देखते हैं. सुहैल ने कहा कि तालिबान चीन के वीगर अलगाववादी लड़ाकों को देश में प्रवेश की अनुमति नहीं देगा. दरअसल, उनमें से कुछ ने पूर्व में अफगानिस्तान में शरण मांगी थी.
‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’से बात करते हुए सुहैल शाहीन ने कहा, ‘चीन के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं. हम अफगानिस्तान के पुनर्निमाण कार्य में निवेश के लिए बीजिंग से बात करने की आशा करते हैं. हम अलकायदा या किसी अन्य आतंकी संगठन को अफगानिस्तान से संचालित होने से रोकेंगे.’
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गौर करने वाली बात ये है कि अफगानिस्तान (Afghanistan) में चीन बड़े पैमाने पर निवेश करने की सोच रहा है. चीन का आकलन है कि अफगानिस्तान में तांबा, कोयला, लोहा, गैस, कोबाल्ट, पारा, सोना, लिथियम और थोरियम का विश्व का सबसे बड़ा भंडार है. जिसका अब तक दोहन नहीं किया जा सका है.
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