UNSC Reforms: ‘नई बोतलों में पुरानी शराब रखने से परिवर्तन नहीं हो जाता', भारत की UN में सुधारों पर दो टूक
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UNSC Reforms: ‘नई बोतलों में पुरानी शराब रखने से परिवर्तन नहीं हो जाता', भारत की UN में सुधारों पर दो टूक

UNSC News: भारत सुरक्षा परिषद में सुधार की वर्षों से कोशिश कर रहा है. भारत का मानना है कि वह सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता पाने का हकदार है.

UNSC Reforms: ‘नई बोतलों में पुरानी शराब रखने से परिवर्तन नहीं हो जाता', भारत की UN में सुधारों पर दो टूक

UNSC Reforms Discussions: सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए नई दिल्ली के रुख को दोहराते हुए यूएन में भारत की स्थायी राजदूत रुचिरा कंबोज ने कहा कि हम नई बोतलों में पुरानी शराब रखकर नए परिणामों की उम्मीद नहीं कर सकते हैं.’ वह बुधवार को न्यूयॉर्क में सुरक्षा परिषद सुधारों पर अंतर सरकारी वार्ता में बोल रही थीं. बता दें भारत सुरक्षा परिषद में सुधार की वर्षों से कोशिश कर रहा है. भारत का मानना है कि वह सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता पाने का हकदार है.

कंबोज ने अपने संबोधन में इस बात पर प्रकाश डाला कि इस सितंबर में,  यूएनजीए ने 85 से अधिक वैश्विक नेताओं से व्यापक और सार्थक सुधारों के सर्मथन की मांग सुनी.

बहुपक्षीय संस्थान मरते नहीं अप्रसांगिक हो जाते हैं
कंबोज ने कहा, ‘इन आवाजों का उत्तर दिया जाना चाहिए. हम सभी को यह महसूस करना चाहिए कि घड़ी टिक-टिक कर रही है, और वैश्विक चुनौतियों के सामने दूसरी दिशा में मुड़ना कोई विकल्प नहीं है, मैंने सह-अध्यक्षों के समक्ष यह कहा है और मैं फिर से कहती हूं, बहुपक्षीय संस्थान शायद ही कभी मरते हैं, वे बस अप्रासंगिकता में लुप्त हो जाते हैं.’

भारतीय दूत ने नई दिल्ली की अध्यक्षता के दौरान अफ्रीकी संघ को G20 में शामिल करने का भी हवाला दिया, जिससे समूह अधिक ‘प्रतिनिधि और प्रासंगिक संस्थान’ बन गया. उन्होंने कहा, ‘सुधार के इस महत्वपूर्ण कदम से संयुक्त राष्ट्र (जो कि एक बहुत पुराना संगठन है) को भी सुरक्षा परिषद को समसामयिक बनाने के लिए प्रेरणा लेनी चाहिए.’

नहीं रख सकते नई  बोतलों में पुरानी शराब
भारतीय दूत ने ने कहा, ‘मेरे प्रतिनिधिमंडल का दृढ़ विचार है कि हम नई बोतलों में पुरानी शराब नहीं रख सकते हैं और ऐसा कर नए परिणामों की उम्मीद नहीं की जा सकती, जो कि व्यापक सुधार हैं. राजनयिकों के रूप में हम जानते हैं कि देश तब तक अपनी स्थिति नहीं बदलते, जब तक कि हम बातचीत के तरीके से वास्तविक और सार्थक आदान-प्रदान की संभावनाएं पैदा न करें.’

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