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नई दिल्ली: रशिया को चुनौती सिर्फ युद्ध के मोर्चे पर नहीं मिल रही. बल्कि आर्थिक मोर्चे पर भी उसके लिए लड़ाई बहुत मुश्किल हो गई है. रशिया यूक्रेन युद्ध पर प्रति दिन 15 Billion Pound यानी डेढ़ लाख करोड़ रुपये खर्च कर रहा है. इस हिसाब से इस युद्ध पर हर मिनट का खर्च हुआ 100 करोड़ रुपये. ये इतना पैसा है कि इससे अफगानिस्तान में भुखमरी का सामना कर रहे लाखों लोगों का चार साल तक पेट भरा जा सकता है. यानी रशिया को इस युद्ध की एक बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है. रशिया की कम्पनियों को भी यूक्रेन संकट से प्रति दिन लगभग 15 Billion Dollar यानी एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो रहा है.
इसके अलावा रशिया के कुछ बैंकों को वित्तीय लेन-देन के लिए इस्तेमाल होने वाले अंतर्राष्ट्रीय मंच SWIFT से भी बैन कर दिया है. इनमें रशिया का Central Bank भी है. आज ही European Union ने SWIFT से 7 रूसी बैंकों को बाहर करने का फैसला किया.
SWIFT से रशिया के बैंकों को हटाने का उसकी अर्थव्यवस्था पर गहरा असर हो सकता है. SWIFT का अर्थ है, Society for Worldwide Interbank Financial Telecommunication. ये एक ऐसा अंतर्राष्ट्रीय मंच है, जिसके जरिए दुनियाभर के Banks और वित्तीय संस्थाएं, एक दूसरे के साथ विश्वसनीय और गोपनीय तरीके से कारोबार करती हैं, सूचनाएं साझा करती हैं और एक दूसरे को Loans भी देती हैं.
ये पूरी व्यवस्था काफी जटिल होती है और इसमें ये सुनिश्चित करना होता है कि वित्तीय लेन-देन के समय कोई हैकर्स इसे नुकसान ना पहुंचा पाए और SWIFT का इस्तेमाल इसी के लिए होता है। वर्ष 2021 में दुनिया की 11 हजार वित्तीय संस्थाएं SWIFT पर रजिस्टर्ड थीं और इन संस्थाओं द्वारा प्रतिदिन 4 से साढ़े 4 करोड़ Messages यानी संदेश और सचूनाएं इस मंच के जरिए एक दूसरे के साथ शेयर की गईं और इस समय दुनिया के 200 देश इसका इस्तेमाल करते हैं. SWIFT से किसी देश को बैन करना, कैसे उस देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर सकता है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण ईरान है.
वर्ष 2012 में ईरान के बैकों को SWIFT से बाहर कर दिया गया था, जिसके बाद ईरान का तेल निर्यात, 30 लाख बैरल प्रति दिन से घट कर 10 लाख लाख बैरल प्रति दिन रह गया था. दरअसल, होता ये है कि, जब किसी देश को इस Platform से हटाया जाता है तो उस देश की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करने की क्षमता सीमित हो जाती है. अगर आप अब भी इस बात को नहीं समझे तो हम आपको एक सरल उदाहरण से समझाते हैं.
मान लीजिए आप बाजार में किसी दुकान से कोई सामान खरीदने गए हैं और उस दुकान पर लेन-देन के लिए केवल डिजिटल पेमेंट Apps का इस्तेमाल होता है. लेकिन इन सभी पेमेंट Apps ने कुछ कारणों से आपको ब्लॉक किया हुआ है तो आप उस दुकान से चाह कर भी कुछ नहीं खरीद पाएंगे. ठीक इसी तरह SWIFT Platform पर होता है. जिन देशों की वित्तीय संस्थाएं और Banks इस Platform पर नहीं होते, उन देशों के लिए दूसरे देशों के साथ व्यापार करना काफी मुश्किल हो जाता है और रशिया के सामने भी यही चुनौती है.
इससे रशिया के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल, गैस और हथियारों का कारोबार करना मुश्किल हो जाएगा. रशिया अतंर्राष्ट्रीय Loans नहीं ले पाएगा और डॉलर में उसके लिए व्यापार करना मुश्किल हो जाएगा. वैसे रशिया वर्ष 2014 में ही समझ गया था कि भविष्य में उसे अलग-थलग करने के लिए अमेरिका जैसे देश उसे SWIFT से बैन कर सकते हैं, इसलिए वो पिछले 8 वर्षों में SWIFT जैसी की एक और व्यवस्था को विकसित कर चुका है. इसे System for Transfer of Financial Message यानी SPFS कहा जाता है. हालांकि, SWIFT की तुलना में ये मंच अभी काफी अस्थिर और कमजोर है. SWIFT पर दुनिया की 11 हजार वित्तीय संस्थाएं है और इस पर केवल 400 संस्थाएं हैं.
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