South Korea News in Hindi: दक्षिण कोरिया समेत चीन और जापान में तेजी से जनसंख्या घटती जा रही है. दक्षिण कोरिया में 76 साल बाद इसके आधे होने का अनुमान है. ऐसे में इस समस्या को भारत के लिए फायदेमंद क्यों बताया जा रहा है.
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South Korea Population News: भारत जहां सघन आबादी के बोझ से दबा जा रहा है और इसे कम करने के उपाय ढूंढ रहा है. वहीं दुनिया दक्षिण कोरिया में कई छूट और सुविधाओं के बाद भी आबादी लगातार घटती जा रही है. आखिर ऐसा क्यों है? क्या वजह है कि महिलाएं बच्चे पैदा करने से कतरा रही हैं. BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण कोरिया की तमाम महिलाएं वहां के सामाजिक ताने बाने से नाखुश हैं. दक्षिण कोरियाई महिलाओं का कहना है कि शादी के बाद भी घर के सारे काम उनको अकेली ही करने पड़ते हैं और बच्चे पालने की ज़िम्मेदारी भी उन पर ही होती है.
नौकरी के साथ बच्चों की देखभाल मुश्किल
दक्षिण कोरिया का वर्क कल्चर भी घटते जन्म दर की एक बड़ी वजह है. महिलाओं की दलील है कि यहां काम के घंटे लंबे हैं और उनके लिए कोई रियायत नहीं है. ऐसे में नौकरी के साथ घर और बच्चों की देखभाल कर पाना उनके लिए मुमकिन नहीं है. कई महिलाओं का कहना है कि नौकरी के दौरान बच्चे पैदा करने की वजह से उनकी नौकरी ख़तरे में पड़ जाती है क्योंकि कंपनियां ये मानती हैं कि बच्चे होने के बाद उनकी कार्य क्षमता पर बुरा असर पड़ता है.
दक्षिण कोरिया में लंबी मैटरनिटी लीव भी महिलाओं के करियर को नुकसान पहुंचाती है. वहां नियम है कि बच्चे के जन्म से लेकर उसके 8 साल का होने तक महिला और पुरुष एक साल की छुट्टी ले सकते हैं. आंकड़े बताते हैं कि एक साल की छुट्टी लेने वालों में पुरुष सिर्फ़ 7 प्रतिशत हैं और महिलाएं 70 प्रतिशत. साथ ही बच्चों को पालने और उनकी पढ़ाई पर होने वाला मोटे खर्च की वजह से भी लोग बच्चे पैदा करने से कतराते हैं.
कंपनियां कपल को दे रही प्रोत्साहन
कामकाजी महिलाओं की मुश्किल और घटती आबादी के खतरों को देखते हुए निजी क्षेत्र की कई कंपनियां भी बच्चे पैदा करने पर शादीशुदा जोड़ों की आर्थिक मदद के लिए आगे आई हैं. बो यंग नाम की निजी कंपनी ने बच्चे पैदा करने वाले कर्मचारियों को 75 हज़ार अमेरिकी डॉलर यानी क़रीब 62 लाख रुपये देने की घोषणा की है. दक्षिण कोरिया की सबसे बड़ी कार कंपनी ह्यूंडई ने भी अपने कर्मचारियों को हर बच्चे के जन्म पर 3750 डॉलर यानी करीब 3 लाख रुपये देने की घोषणा की है.
चीन और जापान का हाल भी दक्षिण कोरिया जैसा ही है. दोनों देशों में जन्म दर घट रही है. अनुमान जताया जा रहा है कि अगले कुछ वर्षों में वहां युवाओं की आबादी तेज़ी से घटेगी और बुज़ुर्गों की आबादी बढ़ेगी, जिसके चलते वहां कामगारों की कमी हो सकती है. इसका सीधा असर भविष्य में दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा.
भारत के लिए बन सकती है अवसर
घटती जन्म दर दक्षिण कोरिया, जापान और चीन जैसे देशों के लिए आपदा बनती जा रही है, लेकिन ये आपदा भारत जैसे देश के लिए अवसर बन सकती है. भारत की आबादी इस वक्त 140 करोड़ से ज़्यादा है और अगले कुछ वर्षों तक इसमें और बढ़ोतरी का अनुमान है. भारत की 65 प्रतिशत आबादी की 35 साल से कम उम्र के युवाओं की है. ऐसे में दक्षिण एशियाई देशों में भारतीय कामगारों की मांग बढ़ सकती है.
अभी भारत के युवा प्रोफ़ेशनल अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों का रुख करते हैं. एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगले कुछ वर्षों में जापान और दक्षिण कोरिया में भारतीय कामगारों की डिमांड में इज़ाफ़ा होगा. हालांकि उसके लिए भारत के नौजवानों को स्किल्स और वहां की भाषा सीखनी होगी. भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश समेत दुनिया के कई देश ऐसे हैं, जहां की आबादी बढ़ रही है लेकिन कई देश ऐसे भी हैं जहां आबादी घट रही है. कुछ देश तो ऐसे हैं, जहां आबादी इतनी तेज़ी से घट रही है कि वहां की सरकारें परेशान हो गई हैं.
महिलाएं क्यों पैदा नहीं करना चाह रही बच्चे?
दक्षिण कोरिया, जापान और चीन ऐसे ही देशों में शुमार हैं, जहां जन्म दर तेज़ी से घट रही है. ख़ासतौर पर दक्षिण कोरिया की. आंकड़ों के मुताबिक दक्षिण कोरिया में जन्म दर दुनिया में सबसे कम है और ये साल दर साल घटती ही जा रही है. इसकी एक बड़ी वजह ये है कि दक्षिण कोरिया की अधिकतर महिलाएं बच्चा पैदा नहीं पैदा करना चाहती हैं. वहां ऐसी महिलाओं की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, जो करियर ओरिएंटेड हैं और जीने की आज़ादी में कोई दखल नहीं चाहती हैं. ये महिलाएं अच्छी नौकरी, अच्छी तनख्वाह और अच्छी लाइफ़स्टाइल चाहती हैं और इनका मानना है कि शादी और बच्चे उनके सपनों की उड़ान पर ब्रेक लगा देंगे.
दक्षिण कोरिया की महिलाओं की इस सोच के पीछे कई वजहें भी हैं. क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि शादी और बच्चों की वजह से महिलाओं के करियर की ग्रोथ रुक जाती है. लंबी मैटरनिटी लीव के चलते वो अपने साथी पुरुषों से नौकरी में पिछड़ जाती हैं. जानकारों के मुताबिक दुनिया में आबादी का संतुलन बनाए रखने के लिए जन्म दर 2 दशमलव एक प्रतिशत होनी चाहिए. यानी एक महिला औसतन 2 बच्चों को जन्म दे लेकिन दक्षिण कोरिया में जन्म दर औसत से कई गुना कम है.
76 साल बाद आधी घट जाएगी दक्षिण कोरिया की आबादी!
2023 में दक्षिण कोरिया में जन्म दर शून्य दशमलव सात दो प्रतिशत रही, जबकि 2022 में ये दर शून्य दशमलव सात आठ प्रतिशत थी. यानी एक महिला औसतन एक से भी कम बच्चे को जन्म दे रही है. दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल का तो और भी बुरा हाल है. सोल में औसत जन्म दर शून्य दशमलव पांच पांच प्रतिशत है.
जानकारों का मानना है कि अगर जन्म दर यूं ही घटती रही तो 76 साल बाद यानी साल 2100 में दक्षिण कोरिया की आबादी आधी रह जाएगी. दक्षिण कोरिया की सरकार जानती है कि आबादी घटने के कई दुष्परिणाम हो सकते हैं. भविष्य में देश की आर्थिक तरक्की थम सकती है. लिहाज़ा वहां की सरकार बीते कई वर्षों से जन्म दर में तेज़ी लाने की कोशिश में जुटी है. इसके लिए कई सरकारी योजनाओं की शुरुआत की गई. जिसके तहत शादीशुदा जोड़ों को बच्चे पैदा करने पर आर्थिक मदद से लेकर मकान और गाड़ी जैसी सुविधाएं देना शामिल है.
मां-बाप को हर महीने मिलता है बेबी पेमेंट
दक्षिण कोरिया की सरकार हर बच्चे के जन्म पर उनके माता-पिता को सवा लाख रुपये 'बेबी पेमेंट' के तौर पर देती है. साथ ही बच्चे को 2 साल का होने तक माता-पिता को हर महीने औसतन तीन हज़ार रुपये दिए जाते हैं. इसके अलावा सरकार बच्चे के माता-पिता को मकान और टैक्सी किराये में भी छूट देती है. अस्पताल के बिल और यहां तक कि IVF ट्रीटमेंट तक के पैसे सरकार दे रही है. हालांकि ये सुविधाएं सिर्फ़ शादीशुदा जोड़ों के लिए ही हैं. कोरिया सरकार ऐसी योजनाओं पर बीते 18 सालों में 20 लाख करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है.